पर्यावरण प्रदूषण | Pryavran Prdushan

क्या आप जानते हैं ?

पर्यावरण प्रदूषण – विश्व पर्यावरण दिवस ‘World Environement Day’ पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में 5 जून को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र में पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी। 5 जून 1973 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया।

प्रदूषण
पर्यावरण प्रदूषण

पर्यावरण प्रदूषण KO ROKNE KE LIYE PRYASH

वर्षमेजबान देशथीम वाक्य
2015इटलीसेवन विलियन ड्रीम्स वन प्लेनेट
2016अंगोलाजीरो टालरेंस फॉर द इलीगल लाइफ ट्रेड
2017कनाडाकनेक्टिंग पीपुल टू नेचर
2018भारतबीट प्लास्टिक प्रदूषण
2019चीनबीट वायु प्रदूषण
2020कोलम्बियाप्रकृति के लिए समय
2021पाकिस्तान‘ पारिस्थितिकी तंत्र बहाली ‘
2022स्वीडन‘ केवल एक पृथ्वी ‘ ( one earth )
पर्यावरण प्रदूषण KO ROKNE KE LIYE PRYASH

प्रदूषण

  • ‘मानव गतिविधियों K कारण पर्यावरण ME अवांछित पदार्थों KA एकत्रित HONA प्रदूषण KAHLATA HAI । “
  • प्रदूषण पर्यावरण ME दूषक पदार्थों K प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन ME पैदा HONE वाले दोष KO कहते हैं। प्रदूषक पर्यावरण KO और जीव-जन्तुओं KO नुकसान पहुंचाते हैं। प्रदूषण KA अर्थ है- ‘हवा, पानी, मिट्टी आदि का अवांछित द्रव्यों से दूषित HONA’, जिसका सजीवों पर प्रत्यक्ष रूप SE विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा पारिस्थितिक तंत्र KO नुकसान द्वारा अन्य अप्रत्यक्ष है प्रभाव पड़ते हैं। वर्तमान समय ME पर्यावरणीय अवनयन KA यह EK प्रमुख कारण HAI।
  • प्रकृति द्वारा निर्मित वस्तुओं के अवशेष KO जब मानव निर्मित वस्तुओं KE अवशेष के साथ मिला दिया जाता है तब दूषक पदार्थों का निर्माण होता है। दूषक पदार्थों का पुनर्चक्रण NAHI किया JA सकता HAI ।
  • KISI भी कार्य KO पूर्ण करने K पश्चात् अवशेषों KO पृथक रखने SE इनका पुनःचक्रण वस्तु KA वस्तु एवं उर्जा ME किया JATA है।
  • पृथ्वी KA वातावरण स्तरीय है। पृथ्वी K नजदीक लगभग 50km ऊँचाई पर स्ट्रेटोस्फीयर HAI जिसमें ओजोन स्तर होता है। यह स्तर सूर्य प्रकाश KI पराबैंगनी (UV) किरणों KO शोषित KAR उसे पृथ्वी TAK पहुंचने से रोकता है। AAJ ओजोन स्तर KA तेजी से विघटन हो रहा है, वातावरण में स्थित क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) गैस के कारण ओजोन स्तर का विघटन हो रहा है।
  • यह सर्वप्रथम 1980 K वर्ष में NOTE किया गया KI ओजोन स्तर KA विघटन संपूर्ण पृथ्वी K चारों OR हो रहा है। दक्षिण ध्रुव विस्तारों ME OJONE स्तर का विघटन 40%-50% हुआ है। इस विशाल घटना को OJONE छिद्र (OJONE होल) कहतें है। मानव आवास वाले विस्तारों में भी OJONE छिद्रों के फैलने की संभावना हो सकता है।
  • OJONE स्तर के घटने के कारण ध्रुवीय प्रदेशों पर जमा बर्फ पिघलने लगी HAI तथा मानव KO अनेक प्रकार K चर्म रोगों KA सामना करना पड़ रहा है। YE रेफ्रिजरेटर OR एयरकंडिशनर में उपयोग ME होने WALE फ़ियोन OR क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) गैस K कारण उत्पन्न HO रही समस्या है। आज हमारा वातावरण दूषित हो गया है। वाहनों तथा फैक्ट्रियों से निकलने वाले गैसों के कारण हवा (वायु) प्रदूषित होती है। मानव कृतियों से निकलने वाले कचरे को नदियों में छोड़ा जाता HAI, जिससे JAL (जल ) प्रदूषण होता है। लोंगों द्वारा बनाये गये अवशेष KO पृथक NA करने KE कारण बने कचरे KO फेंके जाने SE भूमि (जमीन) प्रदूषण HOTA है।

प्रदूषक – PRADUSHAK

  • JO पदार्थ पर्यावरण KO दूषित करते HAI, प्रदूषक कहलाते है।

प्रदूषकों का वर्गीकरण

प्राकृतिक प्रदूषक (Natural Pollutant) : YE प्राकृतिक स्त्रोतों KI क्रियाविधि SE उत्पन्न HOTE HAI, जैसे-ज्वालामुखी विस्फोट, भूकम्प, जैविक पदार्थों KE सड़ने SE तथा वनाग्नि इत्यादि।

मानवजनित प्रदूषक (Human Oriented Pollutant) : गैस, धूल, ऊष्मा तथा कणकीय पदार्थ आदि कुछ मानवजनित प्रदूषकों KE कारक हैं।

प्राथमिक प्रदूषक (Primary Pollutant): वे प्रदूषक पदार्थ जो सीधे किसी स्रोत SE उत्सर्जित होते HAI और अपने वास्तविक रूप ME बने रहते HAI उसे प्राथमिक प्रदूषक कहते हैं जैसे- DDT CO, Co, प्लास्टिक, अमोनिया (NH,), नाइट्रिक ऑक्साइड (NO), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO), कणकीय पदार्थ (PM), वॉलेंटाइन ऑर्गेनिक कम्पाउंड (VOCS) इत्यादि ।

द्वितीयक प्रदूषक (Secondary Pollutant) : VE पदार्थ JO प्राथमिक प्रदूषण OR वातावरणीय पदार्थों SE अंतर्क्रिया KE उत्पन्न होते HAI, द्वितीयक प्रदूषक कहलाते हैं। जैसे- परऑक्सीएसीटिल नाइट्रेट (PAN), ओजोन (O,), सल्फ्यूरिक अम्ल (H, SO.), सल्फर ट्राइऑक्साइड (SO) तथा हाइड्रोजन परऑक्साइड (H.O,) आदि।

सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटनीय प्रदूषक (Biodegradable pollut- ants by micro-organisms ) VE पदार्थ जो सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघिटित होकर APNE विषावत प्रभाव KO खो देते हैं, उसे अपघटनीय प्रदूषक (Biodegradable Pollutants) कहते हैं। जैसे वाहितम, कूड़ा-करकट इत्यादि, परन्तु इन पदार्थों KI एक सीमित मात्रा HI सूक्ष्म जीवों (जीवाणु एवं कवक) द्वारा अपघटित HOTI है।

सूक्ष्मजीवों DWARA अनपघटनीय प्रदूषक (Non-decomposing pol- lutants by micro organisms): VE पदार्थ JO सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटित नहीं HO PATE, अनअपघटनीय प्रदूषक (Non-Biodegrad- able Pollutants) कहलाते हैं। जैसे – सीसा, पारा, आर्सेनिक, D.D.T. 2-4-D इत्यादि।

ठोस कणिकीय प्रदूषक (Solid Particulate Pollutants) : ISKE अन्तर्गत, एरोसोल, धूल-कण, औद्योगिक अपशिष्ट और सिलिका इत्यादि KO शामिल किया जाता है।

तरल प्रदूषक (Liquid Pollutants) : ISKE अन्तर्गत यूरिया, अमोनिया, ऑयल स्लिक्स तथा, नाइट्रेट युक्त जल इत्यादि KO शामिल किया JATA है।

वायु प्रदूषण – VAYU PRADUSHAN

क्या AAP जानते हैं ?

  • वायुमण्डल में धूएँ सब कोहरे से बने मिश्रण को स्मोग कहते है। इसे धूम-कोहरा भी कहते है। यह एक प्रकार का वायु प्रदूषण है। जो पेड़-पौधों एवं जीव जन्तुओ पर हानिकारक प्रभाव डालता है।
  • अधिक धूम-कोहरे KE निर्माण SE दृश्यता घट JATI HAI तथा पर्यावरण PAR हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
  • लाइकेन वायू प्रदूषण का प्राकृतिक सूचक है। जहाँ वायू में सल्फर डाई ऑक्साइड गैस की अधिकता होती है वहाँ लाइकेन नहीं पाये जाते, जिसका अर्थ वहाँ की वायु प्रदूषित है।
  • ई-कोलाई EK अत्यन्त सूक्ष्म जीवाणु HAI जिससे आंत्र-शोध YA पेचिश होती है। यह जीवाणु JAL प्रदूषण KI सूचक होती है
  • सर्दियों K दिनों ME सुबह-सुबह दिखने वाला कोहरा JO धूएँ और कुहासे SE बना होता है : लन्दन धूम्र कहलाता है।
  • इससे दृष्टता बहुत कम होती HAI और दुर्घटना होने KI संभावना बढ़ जाती है।
  • इससे सांस सम्बन्धी बीमारिया BHI हो जाती है।
  • वायु प्रदूषण को कुछ इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि वायु में किसी हानिकारक ठोस, तरल या गैस का, जिसमें ध्वनि व रेडियोधर्मी विकिरण भी शामिल हैं, इतनी मात्रा में मिल जाना जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मानव और अन्य जीवधारियों को हानिकारक रूप से प्रभावित करते हैं तथा इनके कारण पौधे, मनुष्य और पर्यावरण की स्वाभाविक प्रक्रिया बाधित होती हो, वायु प्रदूषण कहते हैं।
  • जो पदार्थ वायु को संदूषित करते हैं उन्हें वायु प्रदूषक कहते हैं। कभी- कभी ये प्रदूषक प्राकृतिक स्त्रोतों जैसे ज्वालामुखी का फटना, वनों में लगने वाली आग से उठा धुआँ अथवा धूल द्वारा आ सकते हैं।
  • वायु प्रदूषकों का स्त्रोत फैक्टरी, विद्युत संयंत्र, स्वचालित वाहन निर्वातक, जलावन लकड़ी तथा उपलों के जलने से निकला हुआ धुआँ होता हैं। कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर के ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, क्लोरीन, सीसा, अमोनिया, कैडमियम, धूल आदि PRMUKH मानव जनित VAYU प्रदूषक HAI।

वायु प्रदूषण के प्रभाव

वायु प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  • प्रदूषित वायु के कारण सूर्य के प्रकाश की मात्रा में कमी आ जाती है जिससे पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है।
  • VAYU प्रदूषण SE मानव KA श्वसन तंत्र प्रभावित HOTA HAI और उसमें दमा, ब्रोंकाइटिस, सिरदर्द, फेफड़े KA कैंसर, खांसी, आंखों में जलन, गले KA दर्द, निमोनिया, हृदय रोग, उल्टी OR जुकाम आदि ROG हो SAKTE है।
  • वायु प्रदूषित क्षेत्रों ME जब बरसात HOTI है TO वर्षा में विभिन्न प्रकार KI गैसें एवं विषैले पदार्थ घुलकर धरती PAR आ जाते HAI, जिसे “अम्ल वर्षा” कहा JATA है।
  • वाहन अधिक मात्रा ME कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड तथा धुआँ उत्पन्न KARTE हैं ।
  • पेट्रोल तथा डीजल जैसे ईंधनों KE अपूर्ण दहन SE कार्बन मोनोऑक्साइड उत्पन्न HOTI है। यह EK विषैली गैस है। यह रुधिर ME ऑक्सीजन- वाहक क्षमता KO घटा देती है।
  • सर्दियों ME वायुमंडल में दिखने VALI कोहरे जैसी मोटी परत धूम-कोहरा होता HAI जो धुएँ तथा कोहरे SE बनता है। धुएँ ME नाइट्रोजन KE ऑक्साइड उपस्थित होते HAI जो अन्य वायु प्रदूषकों तथा कोहरे KE संयोग से कोहरा बनाते हैं।
  • कोहरे KE कारण साँस LENE ME कठिनाई वाले ROG, जैस- दमा, खाँसी तथा बच्चों ME साँस KE साथ हरहराहट उत्पन्न HO जाते हैं।
  • पेट्रोलियम परिष्करण शालाएँ सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषकों KI प्रमुख स्त्रोत हैं।
  • विद्युत संयंत्रों ME कोयला KE दहन से सल्फर डाइऑक्साइड उत्पन्न HOTI है। अन्य प्रदूषक क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) HAI जिनका उपयोग रेफ्रिजरेटरों, एयर कण्डीशनरों तथा ऐरोसॉल फुहार ME होता है।
  • CFCs KE द्वारा वायुमंडल KI OJONE परत क्षतिग्रस्त HO JATI है।
  • डीजल तथा पेट्रोल से चलने वाले स्वचालित वाहनों द्वारा अत्यन्त छोटे कण भी उत्पन्न होते है जो अत्यधिक समय तक वायु में निलंबित रहते है। ये दृश्यता को घटा देते हैं।
  • विशेषज्ञों NE यह चेतावनी DI HAI कि वायु प्रदूषक ताजमहल KE सफेद संगमरमर KO बदरंग कर रहे हैं।
  • उद्योग से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसी प्रदूषक गैसें वायुमंडल में उपस्थित जलवाष्प से अभिक्रिया करके सल्फ्यूरिक अम्ल तथा नाइट्रिक अम्ल बनाती हैं। ये वर्षा को अम्लीय बनाकर वर्षा के साथ पृथ्वी पर बरस जाते हैं। इसे अम्ल वर्षा कहते हैं।
  • अम्ल वर्षा के कारण स्मारको के संगमरमर का संक्षारण होता है। इस जिसे संगमरमर कैंसर भी कहते हैं।
  • पौधे प्रकाश-संश्लेषण के लिए वायुमंडल से CO, का उपयोग करते हैं जिसके कारण वायु में CO, की मात्रा कम हो जाती है।
  • CO, ऊष्मा को रोक लेती है और उसे वायुमंडल में नहीं जाने देती। परिणामस्वरूप वायुमंडल के औसत ताप में निरन्तर वृद्धि हो रही है। इसे
    विश्व ऊष्णन (Global warming) कहते हैं।
  • CO, मेथैन, नाइट्रस ऑक्साइड तथा जलवाष्प जैसी अन्य गैसें भी इस प्रभाव में योगदान करती हैं। की भांति इन्हें भी पौध-घर गैसें (Green
    House gases) कहते हैं।
  • विश्व ऊष्णन (Global warming) पौध-घर गैसें (Green House gases) उत्सर्जन में कमी करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अंतर्गत कयोटो प्रोटोकॉल के एक अनुबंध पर बहुत से देश हस्ताक्षर कर चुके है।
  • हिमालय के गंगोत्री हिमनद विश्व ऊष्णन (Global warming) के कारण पिघलने आरम्भ हो गए है।
  • शताब्दी के अंत तक पौध-घर गैसें (Green House gases) के कारण 2°C तक ताप में वृद्धि हो सकती है जो संकटकारी स्तर है।

वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण

वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  • वाहनों में जीवाश्म ईंधन का दहन।
  • रेफ्रीजरेटर, वातानुकूलन आदि DWARA निकालने VALI गैसें।
  • कृषि कार्यों ME कीटनाशी एवं जीवाणुनाशी दवा KA उपयोग।
  • फर्नीचरों PAR की JANE वाली पॉलिश OR स्प्रे पेंट बनाने ME प्रयुक्त HONE वाला विलायक।
  • कूड़े कचरे KA सड़ना एवं नालियों KI सफाई न HONA।
  • वाहनों SE निकलने VALA धुआँ।
  • औद्योगिक इकाइयों SE निकलने VALA धुँआ तथा रसायन।
  • आणविक संयंत्रों SE निकलने वाली गैसें तथा धूल-कण।
  • जंगलों ME पेड़ पौधें KE जलने से, कोयले KE जलने SE तथा तेल शोधन कारखानों आदि SE निकलने वाला धुआँ।
  • ज्वाला मुखी विस्फोट (जलवाष्प, So.)

वायु प्रदूषण KO नियंत्रित करने KE उपाय-

वायु प्रदूषण KO नियंत्रित करने KE उपाय निम्नलिखित हैं-

  • उद्योगों KI चिमनियों KI उंचाई अधिक HO।
  • कोयले अथवा डीज़ल KE इंजनों KA उपयोग कम KIYA जाए।
  • MOTAR वाहनों KE कारबुरेटर KI सफाई KAR कार्बन मोनो आक्साइड KA उत्सर्जन कम KIYA जा SAKTA है।
  • लेड रहित पेट्रोल KA ईंधन KE रूप ME प्रयोग KIYA जाए।
  • पुराने वाहन KE संचालन PAR प्रतिबंध लगाया जाए।
  • घरों ME सौर ऊर्जा KA उपयोग ज्यादा KIYA जाए।
  • यूरो मानकों KA कड़ाई SE पालन KARAYA जाए।
  • ओजोन परत KO क्षतिग्रस्त करने VALE क्लोरोफ्लोरो कार्बन (फ्रियॉन-11 तथा फ्रियॉन-12) KE उत्पादन एवं उपयोग PAR कटौती KI जानी चाहिए।
  • कारखानों KI चिमनियों ME बैग फिल्टर KA उपयोग KIYA जाना चाहिए।
  • ऊर्जा KI आवश्यकता की पूर्ति KE लिए जीवाश्मी ईंधन KE स्थान पर वैकल्पिक ईंधनों KO अपनाने की आवश्यकता है। YE वैकल्पिक ईंधन सौर ऊर्जा, JAL ऊर्जा तथा पवन ऊर्जा HO सकते हैं।
  • एरोसोल (Acrosole) : हवा में लटके तरल YA ठोस कण जो 1.0 SE 10 माइक्रोन आकार KE होते हैं। उन्हें एरोसोल KAHA जाता है। इनकी उत्पत्ति मुख्यतः बिजली घर, स्वचालित मोटर वाहनों तथा घरों ME जीवाश्म ईंधन KE प्रयोग तथा लकड़ी आदि KE दहन SE होती है।
  • एरोसोल एक कणकीय वायु प्रदूषक है, जो कि एक कोलाइडी कण है तथा वातावरणीय गैसों में फैला होता है। यह प्राकृतिक एवं मानवजनित किसी भी स्रोत से उत्पन्न हो सकते हैं ये प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जलवायु को प्रभावित करते हैं फैले एरोसोल हानिकारक रेडिएशन को ग्रहण करते हैं, साथ ही बादलों को भी प्रभावित करते हैं। मुख्यतः एरोसोल विकिरण परावर्तन को बढ़ाकर एल्बिडों में वृद्धि करते हैं, जिसके कारण ‘ग्लोबल कूलिंग’ की संभावना बन जाती है।
  • फ्लाई एंश (Fly Ash): थर्मल पावर प्लांट में कोयले के जलने की प्रक्रिया में राख उप-उत्पाद की तरह निष्कासित होती है, जिसे फ्लाई एश कहते हैं। यह राख वायु व जल को प्रदूषित करती है तथा पावर जलस्रोतों में भारी धातु प्रदूषण का कारण भी हो सकती हैं। यह राख वनस्पतियों पर भी प्रभाव छोड़ती है क्योंकि यह पत्तियों और मिट्टी पर पूरी तरह से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जम जाती है। यह राख ईंट बनाने और भरावन के लिए भी प्रयोग में लाई जाती हैं।
  • इस राख का निर्माण अल्युमीनियम सिलिकेट, सिलिकन डाइऑक्साइड (SIO,) तथा कैल्शियम डाइऑक्साइड आदि से होता है। इसमें सीसा, आर्सेनिक, कोबाल्ट एवं कॉपर जैसी जहरीली भारी धातुओं के कण भी होते हैं। जिनसे श्वसन संबंधी रोग होते हैं।
  • इसे इलेक्ट्रोस्टेटिक अवक्षेपक (Electrostatic Precipitation) या अन्य कण निस्पंदन उपकरणों के प्रयोग द्वारा वायु में मिलने से रोका जा सकता हैं।
  • निलम्बित कणकीय पदार्थ (Suspended Particular Matter – SPM): हवा में तैरते वे ठोस एवं निम्न वाष्प दाब वाले द्रव कण जिनका आकार 01 um से 100um तक होता है, निलम्बित कणकीय पदार्थ कहलाते हैं। 10um से छोटे आकार के कण ‘श्वसनशील निलम्बित कणकीय पदार्थ (Respirable Suspended Particular Matter RSPM) कहलाते हैं। 2.5um से छोटे आकार के कण साँस द्वारा फेफड़ों के अंदर जाकर ढेरों परेशानियां पैदा करते हैं तथा ये पदार्थ पौधों की प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को भी प्रभावित करते हैं।
  • प्रकाश रासायनिक धूम-कोहरा (Photo Chemical Smog) : धूम कोहरा एक प्रकार का सेकेंडरी प्रदूषक है जो जीवाश्म ईंधन को जलाने पर तब उत्पन्न होता है जब प्रदूषित रसायन वातावरण में सूरज की रोशनी से प्रतिक्रिया करते हैं। जब नाइट्रस ऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक सूर्य के प्रकाश के सम्पर्क में आते है तो द्वितीयक प्रदूषक बनते हैं, जैसे-ओजोन और पेरोक्सीसिटेंट। इन द्वितीयक प्रदूषकों को ही फोटोकैमिकल स्मॉग कहते हैं। सौर
    विकिरण को कम कर यह विटामिन D के उत्पादन को घटाते हैं, जिससे श्वसन तंत्र की समस्याएँ इत्यादि मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इसके नकारात्मक प्रभाव हैं।

क्या आप जानते हैं ?

भोपाल गैस त्रासदी – भोपाल में स्थित अमेरिकी बहराष्ट्रीय कम्पनी यूनियन कार्बाइड कारखाने में कीटनाशक रसायन के निर्माण के लिए मिक गैस का उत्पादन किया जाता था। 2-3 दिसम्बर 1984 की शीत रात्रि में जहरीली मिथाइल आइसो सायनाइट गैस का अचानक रिसाव हुआ, जिसके कारण वायु प्रदूषण से कुछ घंटों में ही हजारो व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। भारी संख्या में जानवर भी मारे गये। इस घटना को भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है।
विशाखापट्टनम गैस रिसाव – विशाखापट्टनम गैस रिसाव जिसे विजाग गैस रिसाव भी कहा जाता है, 7 मई, 2020 की रात को आन्ध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम के वेंकटपूरम गाँव में एलजी पालिमर उद्योग में विषाक्त गैस के रिसाव की एक दुर्घटना थी। इस दुर्घटना में स्टारियन नामक यौगिक वाष्पिकरण होकर रिस गया और हवा में मिलते हुए आसपास के गाँवों में फैल गया यह गैस सांन्द्र रूप में होने पर मानव के लिए घातक होती है।

जल प्रदूषणJAL PRADUSHAN

क्या आप जानते हैं ?

  • वायु में मौजूद सल्फर डाई ऑक्साइड (SO,) जल के साथ मिलकर सल्फ्यूरिक अम्ल (H, SO,) और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO,) जल के साथ मिलकर नाइट्रिक अम्ल (HNO,) का निर्माण करते हैं।
  • जब H, SO, और HNO, वारिश के साथ पृथ्वी पर आते हैं तो इसे अम्ल वर्षा कहते हैं। ऐसी वर्षा जिसका पीएच का मान 5.6 से कम हो, अम्ल वर्षा कहलाती है।
  • अम्ल वर्षा जलीय और स्थलीय दोनों प्रकार के जीवों को प्रभावित करती है। अम्ल वर्षा से पौधों को हानि पहुँचती है। वर्षा प्रकाश संश्लेषण को धीमा कर देती है।
  • यह वर्षा मिट्टी की अम्लीयता को बढ़ा देती है, जिससे जीवों को भी हानि पहुंचती है।
  • यह वर्षा भवनों/इमारतों का रंग उड़ा देती है या फिर उन्हें गला देती है। इसे स्टोन कैंसर/मार्बल कैंसर/स्टोन लेप्रोसी कहते हैं।
  • आगरा का ताजमहल मथुरा रिफाइनरी से निकले हुए सल्फर डाइऑक्साइड, सल्फ्यूरिक अम्ल एवं अन्य प्रदूषक से प्रभावित हो रहा है। जिससे इसका रंग पीला हो जाता है।
  • ताजमहल को प्रदूषण से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी समय- समय पर दिशा निर्देश दिया है। जैसे ताजमहल के आस-पास स्थित कारखानों को शहर से दूर स्थापित करना। इसके आस-पास बहुमंजिला इमारतों के निर्माण पर रोक लगाना आदि।
  • अम्ल वर्षा सूचना केन्द्र नावें में स्थित है। जल में अनिच्छित या अवांछनीय पदार्थों का मिला होना या पाया जाना ही जल प्रदूषण कहलाता है।
  • जल की गुणवत्ता का निर्धारण भौतिक, रासायनिक एवं जैविक आधारों पर किया जाता है। भौतिक आधार पर तापमान, रंग तथा गंध इत्यादि को शामिल किया जाता है। जल के रासायनिक मानकों में घुली ऑक्सीजन (DO), जैविक ऑक्सीजन (BOD), तथा रासायनिक मांग (COD) को शामिल किया जाता है। जैविक मानकों में जीवाणु, MPN, शैवाल आदि को शामिल किया जाता है।
  • सामान्यतः जल की गुणवत्ता का निर्धारण BOD, COD, DO तथा pH मानक के आधार पर किया जाता है।
  • जब वाहित मल, विषैले रसायन, गाद आदि जैसे हानिकर पदार्थ जल ME MIL JATE HAI TO जल प्रदूषित HO JATA है।
  • JAL ME निहित बाहरी पदार्थ JAB जल KE स्वाभाविक गुणों KO इस PRKAR परिवर्तित KAR DETE HAI कि वह मानव स्वास्थ्य KE लिए नुकसानदेह HO जाए YA उसकी उपयोगिता KAM HO जाए TO इसे JAL प्रदूषण कहलाता HAI । जो वस्तुएं एवं पदार्थ JAL KI शुद्धता एवं गुणों KO नष्ट KARTE हैं VE जल प्रदूषक कहलाते HAI ।

जल प्रदूषण के प्रभाव

जल प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  • प्रदूषित JAL ME शैवाल तेजी SE प्रस्फुटित HONE लगता HAI और कुछ विशेष PRKAR KE पौधों KO छोड़कर शेष नष्ट HO JATE हैं।
  • प्रदूषित JAL ME काई KI अधिकता HONE से सूर्य KA प्रकाश गहराई TAK नहीं पहुंच PATA जिससे जलीय पौधों KI प्रकाश संश्लेषण क्रिया OR उनकी वृद्धि प्रभावित HOTI है।
  • दूषित JAL KO पीने SE पशु-पक्षियों KO तरह-तरह KI बीमारियाँ HO JATI हैं।
  • प्रदूषित JAL SE मानव ME पोलियो, HEJA, पेचिस, पीलिया, मियादी बुखार, वायरल फीवर आदि बीमारियां फैलती HAI ।
  • विश्वव्यापी कोष (WWF) द्वारा किए गए अध्ययन में यह पाया गया कि गंगा संसार की दस ऐसी नदियों में से एक है जिनका अस्तित्व खतरे में है। कई स्थानों पर प्रदूषण स्तर इतना अधिक है कि इसके जल में जलजीव जीवित नहीं रह पाते, वहाँ यह नदी ‘निर्जीव’ हो गयी है।
  • 1985 में गंगा नदी को बचाने के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना आरम्भ की गयी जिसे गंगा कार्य परियोजना कहते हैं।
  • बहुत-सी औद्योगिक इकाइयाँ तेल परिष्करणशालाएँ, कागज फैक्ट्रियाँ, वस्त्र तथा चीनी मिलें एवं रासायनिक फैक्ट्रियाँ हानिकारक रसायनों को नदियों तथा नालों में प्रवाहित करती हैं जिसके कारण जल प्रदूषण होता है।
  • औद्योगिक इकाइयाँ विसर्जित के रसायनों में आर्सेनिक, लेड तथा फ्लुओराइड होते हैं जिनसे पौधों तथा पशुओं में आविषता उत्पन्न हो जाती है।
  • अशुद्ध जल से मृदा की अम्लीयता तथा कृमियों की वृद्धि में भी परिवर्तन हो जाता है।
  • तालाबों में उग रहे शैवाल के कारण अत्यधिक ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं। इससे जल में ऑक्सीजन के स्तर में कमी हो जाती है जिससे जलीय जीव मर जाते हैं।
  • वाहित मल द्वारा संदूषित जल में जीवाणु, वायरस, कवक तथा परजीवी हो सकते हैं जिनसे हैजा, मियादी बुखार, तथा पीलिया जैसे रोग फैलते है।
  • गर्म जल भी एक प्रदूषक हो सकता है। जो प्राय: विधुत संयंत्रों तथा उद्योगों से आता है। जब इसे नदियों में बहाया जाता है। यह जलाशयों के ताप में वृद्धि कर देता है जिससे उसमे रहने वाले पेड़ पौधे व जीव जन्तुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

जल प्रदूषण के स्त्रोत

JAL प्रदूषण KE स्रोत अथवा KARAN निम्नलिखित हैं

  • घरेलू कूड़े-कचरे KA जल ME बहाया JANA अथवा फेंका JANA ।
  • वाहित मल।
  • दोषपूर्ण कृषि पद्धतियों के कारण मृदाक्षरण
  • उर्वरकों के उपयोग में निरन्तर वृद्धि।
  • उद्योगों आदि DWARA भारी मात्रा ME अपशिष्ट पदार्थ JAL स्रोतों यथा नदियों एवं जलाशयों ME बहाया JANA ।
  • समुद्र KE किनारे स्थित तेल KE कुएं ME लीकेज HO जाने SE होने VALA तेल प्रदूषण।
  • मृत, जले, अधजले शवों KO जल ME बहाना, अस्थि विसर्जन KARNA , साबुन LAGAKAR नहाना एवं कपड़े धोना आदि।

जल प्रदूषण रोकने के उपाय

जल प्रदूषण रोकने के उपाय निम्नलिखित हैं-

  • जल स्रोतों ke पास गंदगी फैलाने, साबुन लगाकर नहाने तथा कपड़े धोने PAR प्रतिबन्ध HO ।
  • पशुओं KE नदियों, तालाबों आदि ME नहलाने PAR प्रतिबन्ध ।
  • सभी प्रकार KE अपशिष्टों तथा अपशिष्ट युक्त बहिःस्रावों KO नदियों तालाबों तथा अन्य जलस्रोतों ME बहाने पर प्रतिबन्ध ।
  • औद्योगिक बहिःस्राव या अपशिष्ट KA समुचित उपचार।
  • नदियो ME शवों, अधजले शवों, राख तथा अधजली लकड़ी KE बहाने पर प्रतिबन्ध ।
  • उर्वरकों तथा कीटनाशकों KA उपयोग आवश्यकता अनुसार HI हो।
  • प्रदूषित जल KO प्राकृतिक जल स्रोतों में गिराने SE पूर्व उसमें शैवाल KI कुछ जातियों एवं जलकुम्भी KE पौधों KO उगाकर प्रदूषित जल KO शुद्ध करना ।
  • ऐसी मछलियों KO जलाशयों ME छोड़ा जाना चाहिए JO मच्छरों KE अण्डे, लारवा एवं जलीय खरपतवार कार क्षरण करती है।
  • कछुओं KO नदियो एवं जलाशयो ME छोड़ा जाना।
  • जन जागरूकता KO बढ़ावा देना।
  • पीने KE लिए उपयुक्त जल KO पेय जल कहते हैं।
  • जल KO शुद्ध करने KI रासायनिक विधि क्लोरीनीकरण है। यह जल में क्लोरीन की गोलियाँ अथवा विरंजक चूर्ण मिलाकर किया जाता है।
  • जल की बचत करने के लिए कम उपयोग (Reduce), पुन: उपयोग (Reuse) पुन: चक्रण (Recycle) हमारा मूल मंत्र होना चाहिए।
  • घुली ऑक्सीजन (Desolve Oxygen DO) : जल में घुली ऑक्सीजन की वह मात्रा जो जलीय जीवों के श्वसन के लिए आवश्यक होती है। जब जल में प्रदूषण बढ़ता है तो प्रदूषक पदार्थों में फॉस्फोरस आदि कुछ ऐसे पोषक पदार्थ होते हैं, जिनकी उपस्थिति के कारण सुपोषण (Eutrophication) बढ़ता है और पादपों व सूक्ष्मजीवों की संख्या में वृद्धि होती है। जिसके परिणामस्वरूप BOD, बढ़ जाती है और जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। ऑक्सीजन की कमी से होने वाले अनॉक्सी श्वसन के चलते द्वितीयक प्रदूषक, जैसे- मीथेन, अमोनिया इत्यादि बनते हैं, जिससे जल में दुर्गन्ध उत्पन्न हो जाती है।

पर्यावरण प्रदूषण ME जल प्रदूषण रोकने के ANYA उपाय –

  • जैविक ऑक्सीजन मांग (Biological Oxygen Demand) : ऑक्सीजन KI वह मात्रा JO सामान्य ताप पर किसी जल KE एक लीटर भाग को 5 दिनों में सूक्ष्मजीवों ME अपापचयी क्रिया KE लिए आवश्यक होती है। यह परीक्षण जल ME जैव-ऑक्सीकरणीय (Bioxidisable) कार्बनिक पदार्थों KI मात्रा का आकलन करता HAI अर्थात् BOD का तात्पर्य जल ME घुलित ऑक्सीजन (DO) KI निम्न मात्रा SE है। जल जितना ही अधिक प्रदूषित होगा, प्रदूषित पदार्थों KE विघटन के लिए भी उसी अनुपात ME अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होगी।
  • स्पष्ट है कि BOD जल प्रदूषण KE निर्धारण का EK महत्त्वपूर्ण घटक परन्तु इसके माध्यम SE केवल जैविक घटकों KA ही पता चलता है। COD का मान सदैव BOD से अधिक HOTA है।
  • किसी नदी KE जल में BOD का स्तर 10 मिलीग्राम लीटर HONA चाहिए।
  • रासायनिक ऑक्सीजन माँग (Chemical Oxygen Demand) : COD उस ऑक्सीजन KI माँग है जो जल में उपस्थित कुल कार्बनिक पदार्थों- जैव क्षयकारी तथा जैव अक्षयकारी (Biodegrad- able + non Biodegrable) KE ऑक्सीजन के लिए आवश्यक है। अर्थात् जल ME उपस्थित अकार्बनिक पदार्थों में क्रिया-प्रतिक्रिया हेतुआवश्यक ऑक्सीजन KI मात्रा को COD कहते हैं। जल में COD KI सहनीय मात्रा 20 मिलीग्राम/लीटर है।
  • थर्मल प्रदूषण / तापीय प्रदूषण (Thermal Pollution) : पॉवर प्लांट्स ऊष्मीय, नाभिकीय OR अन्य अनेक उद्योगों KO ठंडा करने के उद्देश्य से बहुत अधिक मात्रा ME जल का प्रयोग करते है। (लगभग 30%) और प्रयोग गया पानी नदियों, समुद्र तथा जलधाराओं ME छोड़ दिया जाता है। बायलर SE निकली ऊष्मा ठंडा करने वाले जल KA ताप बढ़ा देती है। यह गर्म पानी जिस जल में मिलता है, उसका तापमान आसपास KE जल के तापमान से 10°-15° अधिक KAR देता है। यही तापीय प्रदूषण (Thermal Pollution) कहलाता है। पानी KA तापमान बढ़ने से जल में घुली ऑक्सीजन कम HO जाती है, जिसका जलीय जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • तेल अधिप्लाव (Oil Spillage) : जलीय सतह पर तेल का तीव्र गति से फैलना तेल अधिप्लाव (Oil Spillage) कहलाता है। तेल अधिप्लान के कारण होने वाले प्रदूषण से फ्लेक्टन, मछलियां व समुद्री जीवों इत्यादि की मृत्यु हो जाती है। तथा इससे खाद्य श्रृंखलाएँ भी प्रभावित होती हैं। तेल अधिप्लाव को नियंत्रित करने की कुछ निम्नलिखित विधियाँ निम्न है –

(i) भौतिक विधि (Physical Method) : इस विधि में अधिप्लावित तेल पर आग लगा दी जाती है, जिससे लगभग 98% तेल अधिप्लान समाप्त हो जाता है।
(ii) रासायनिक विधि (Chemical Method) : डिटर्जेन्ट का प्रयोग कर तेल के बुलबुलों को वाष्पीकृत किया जाता है।
(iii) जैविक विधि (Biological Method) : जंपिंग बैक्टीरिया (Oil Zapping) के माध्यम से तेल अधिप्लाव को समाप्त किया जाता है। जैपर बैक्टीरिया तेल में उपस्थित हाइड्रोकार्बन को खाकर गैर हानिकारक और H,O में परिवर्तित कर देते हैं। CO.
(iv) यांत्रिकी विधि (Mechanical Method) : बूम, सोइबेन्ट्स, स्कीमर कुछ ऐसी यांत्रिक विधियाँ है, जिनसे तेल अधिप्लाव को समाप्त किया जाता है। बूम में एक रक्षात्मक दीवार बनायी जाती है, सोरबेन्ट्स में तेल को अवशोषण द्वारा तथा स्कीमर में वैक्यूम क्लीनर द्वारा साफ किया जाता है।

सुपोषण (Eutrophication) : जल में जैविक और अजैविक पोषक तत्त्वों की सान्द्रण में वृद्धि को सुपोषण कहते हैं। जल में पोषण तत्त्वों की अधिकता भी जीवों को प्रभावित करती है। ये तत्व जल में पहुंचकर इसकी उत्पादकता को बढ़ा देते हैं। जिससे जलीय पौधे शैवाल आदि अधिक वृद्धि करते हैं तथा जलीय ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। परिणामस्वरूप जलीय जन्तु O, के अभाव में मरने लगते हैं। इस प्रकार सुपोषण भी जलीय प्रदूषण का एक कारण है।

क्या आप जानते हैं ?

  • जलवाष्प : ग्रीनहाउस प्रभाव ME वृद्धि करने WALA सबसे प्रभावी कारक है।
  • कार्बन डाइ ऑक्साइड – मानवजनित कारकों में भूमंडलीय तापन में वृद्धि हेतु सर्वाधिक प्रभावी गैस ।
  • मेथेन- अवरक्त किरणों (पार्थिव विकिरण) KE अवशोषण में CO. KI अपेक्षा 30 गुना ज्यादा सक्षम है। यह आर्द्र भूमि, बाढग्रस्त धान के खेत, कच्छे क्षेत्र, दीमक तथा गाय-भेड़ आदि जानवरों KI जुगाली SE उत्सर्जित होती है।
  • नाइट्रस ऑक्साइड – वैश्विक तापन हेतु अन्य CHG की तुलना में सबसे कम जिम्मेदार।
  • फ्लूरीनेटेड गैसें – CFC के प्रतिस्थापक KE रूप में आई ये गैसे सबसे प्रबल एवं दीर्घजीवी प्रकार की CHG है। उदाहरण – HFGs, PFCs, SF6 उपयुक्त गैसों KO बढ़ती मात्रा में वायुमंडलीय ऊष्मन KI दर में वृद्धि हो रही है।

ध्वनि प्रदूषण

  • किसी भी वस्तु स SE उत्पन्न आवाज KO हम ध्वनि (Sound) कहते हैं। जब इस ध्वनि KI तीव्रता अधिक हो जाती HAI तो इसे शोर कहते हैं।
  • इस प्रकार हम कह सकते HAI कि उच्च तीव्रता वाली वह ध्वनि जो शोर KE कारण इंसानों और जीव-जन्तुओं में अशान्ति एवं बेचैनी KI दशा उत्पन्न कर दे, उसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं।
  • ध्वनि तीव्रता (Sound Intensity) KO प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र ME वाट्स इकाई में नापा जाता है।
  • ध्वनि KI सामान्य मापन इकाई KO डेसिबेल कहते हैं। डेसिबेल मापक शून्य SE प्रारम्भ होता HAI जो मनुष्य के द्वारा सुनी जाने वाली धीमी आवाज को दर्शाता है।
  • ध्वनि KI आवृत्ति को हर्ट्ज ME मापा जाता है तथा इसी आवृत्ति KE आधार पर ध्वनि KO तीन वर्गों में विभक्त किया जाता है।
  • अवांछनीय अथवा उच्च तीव्रता वाली ध्वनि KO शोर कहते हैं। वायुमंडल ME अवांछनीय ध्वनि KI मौजूदगी या शोर KO ही ‘ध्वनि प्रदूषण’ कहा जाता है। शोर से मनुष्यों ME अशान्ति तथा बेचैनी उत्पन्न होती है। ध्वनि KI सामान्य मापन इकाई डेसिबल कहलाती है।

ध्वनि प्रदूषण KE प्रभाव

ध्वनि प्रदूषण KE प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  • जिन मजदूरों KO अधिक शोर ME काम करना होता HAI वे हृदय रोग, शारीरिक शिथिलता, रक्तचाप आदि अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाते है।
  • विस्फोटों तथा सोनिक बमों KI अचानक उच्च ध्वनि SE गर्भवती महिलाओं ME गर्भपात भी हो सकता है।
  • लगातार शोर Me रहने wali महिलाओ ke नवजात शिशुओं me विकृतियां उत्पन्न ho जाती हैं।
  • WHO KE अनुसार यदि ध्वनि की तीव्रता 90 dB से अधिक HO जाती है तो लोगों KI श्रवण शक्ति क्षीण होने लगती है।
  • ध्वनि KI तीव्रता के कारण मनुष्य में ‘न्यूरोटिक मेटल डिसार्डर’ की समस्या, मांसपेशियों में तनाव एवं खिंचाव की समस्या तथा स्नायुओं में उत्तेजना आदि की समस्या उत्पन्न HO जाती है।
  • पाचन तंत्र ME गड़बड़ी, हृदय रोग तथा आंख KI पुतलियों में खिंचाव इत्यादि KI समस्या।
  • समुद्री व्हेल पर ध्वनि प्रदूषण KA सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। जेब्रा फिंच भी ध्वनि प्रदूषण KE कारण अपने सहयोगियों SE संचार नहीं कर पाती।

ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख कारण

ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  • मोटर वाहनों SE उत्पन्न होने वाला शोर।
  • वायुयानो, मोटर वाहनों व रेलगाड़ियों तथा उनकी सीटी SE होने वाला शोर।
  • लाउडस्पीकरों एवं म्यूजिक सिस्टम SE होने वाला शोर।
  • कारखानों me मशीनों se होने wala शोर।

ध्वनि प्रदूषण रोकने के उपाय

ध्वनि प्रदूषण रोकने KE उपाय निम्नलिखित हैं-

  • अधिक SHOR उत्पन्न KARNE वाले वाहनो PAR प्रतिबंध।
  • मोटर KE इंजनो तथा अन्य शोर उत्पन्न करने वाली मशीनो KI संरचना में सुधार।
  • उद्योगों KO शहरी तथा आवासीय बस्तियों से बाहर स्थापित करना ।
  • उद्योगों KE श्रमिकों को कर्णप्लग अथवा कर्णबन्दक प्रदान करना।
  • वाहनो KE साइलेंसरो की समय समय पर जांच।
  • band-बाजों, लाउडस्पीकरों Evam नारेबाजी par उचित प्रतिबंध ।

अवश्रव्य (Infrasonic) – 20 हर्ट्ज SE कम आवृति KI तरंगें उदाहरण – हाथी

श्रव्य (Audible) – 20 से 20,000 हर्ट्ज तक की आवृति की तरंगें उदाहरण – मनुष्य

पराश्रव्य (Ultrasonic) – 20,000 हर्ट्ज से अधिक आवृत्ति की तरंगें।

उदाहरण- कुत्ता, बिल्ली

मृदा प्रदूषण

  • मृदा ki गुणवत्ता or इसकी उर्वरक शक्ति ko प्रतिकूल रूप se प्रभावित करने वाले किसी bhi पदार्थ ka भूमि में मिलना मृदा प्रदूषण कहलाता है।
  • प्लास्टिक, कपड़ा, काँच धातु और जैव पदार्थ, सीवेज गाद तथा ऐसा कोई भी कूड़ा जो घर या व्यवसायों और औद्योगिक संस्थानों से निकलता है वह मृदा प्रदूषण में वृद्धि करता है। इसके साथ ही उर्वरक और कीटनाशक जो खेती में प्रयोग किये जाते हैं, वे भी मृदा प्रदूषण को बढ़ाते हैं। कैडमियम, क्रोमियम, तांबा, कीटनाशक पदार्थ, रासायनिक उर्वरक, खरपतवारनाशी पदार्थ, विषैली गैसें आदि प्रमुख मृदा प्रदूषक हैं।

मृदा प्रदूषण के प्रभाव

मृदा प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  • मृदा प्रदूषण से मृदा के भौतिक एवं रासायनिक गुण प्रभावित होते हैं और मिट्टी की उत्पादन क्षमता पर प्रभाव पड़ता है।
  • कहीं-कहीं लोग मल जल से खेतों की सिंचाई करते हैं। इससे मृदा में उपस्थित शिद्रों की संख्या दिनों-दिन घटती जाती है और बाद में एक स्थिति ऐसी आती है कि भूमि की प्राकृतिक मल जल उपचार क्षमता पूरी
  • जब मृदा me प्रदूषित पदार्थ ki मात्रा बढ़ jati है तो ve जल स्रोतों me पहुंचकर उनमें लवणों तथा अन्य हानिकारक तत्वों ki सान्द्रता बढ़ा देते हैं। परिणाम स्वरूप ऐसे जल सोतो ka जल पीने योग्य नहीं रहता।

मृदा प्रदूषण के प्रमुख कारण

  • असतत कृषि गतिविधियाँ ।
  • औद्योगिक कचरा ।
  • लैंडफिल से होने वाला रिसाव ।
  • घरेलू कूड़ा-कचरा ।
  • खुली जगह पर कूड़ा फेंकना।
  • पालीथीन की थैलियों, प्लास्टिक के डिब्बे।
  • अनियंत्रित पशुचारण।

मृदा प्रदूषण रोकने के उपाय

  • कूड़े-करकट के संग्रहण, निष्कासन एवं निस्तारण की व्यवस्था।
  • कल-कारखानों से निकलने वाले सीवेज जल की मृदा पर पहुंचने से पूर्व उपचारित करना।
  • नगर पालिका और नगर निकायों द्वारा अपशिष्ट का उचित निस्तारण रासायनिक उर्वरकों का उपयोग अधिक न किया जाए।
  • कीटनाशी, कवकनाशी एवं शाकनाशी आदि का उपयोग कम से कम किया जाए।
  • आम जनता को मृदा प्रदूषण के दुष्प्रभावों की जानकारी दी जाए।

मृदा प्रदूषण नियंत्रण के उपाय

  • प्लास्टिक थैलियों का प्रयोग कम से कम। इसके स्थान पर कपड़े या
  • कागज की थैलियों का प्रयोग करना।
  • सीवेज का प्रयोग उर्वरकों या भराव के लिये से पूर्व अच्छी तरह उपचारित कर लेना चाहिए।
  • घर व खेतों से निकलने वाले पदार्थों को अलग-अलग छाँटना, जिससे वर्मिकम्पोस्टिंग (Vermicomposting) हो सके।
  • औद्योगिक कचरे को फेंकने से पहले हानिकारक पदार्थों को हटाने के लिए उचित रूप से उपचारित करना।
  • जैव चिकित्सा संबंधित कड़े को पृथक ही एकत्रित करना और उचित रूप से जलाने वाले उपकरणों (Incinerators) में भस्त करना।

रेडियोएक्टिव प्रदूषण

  • विकिरण प्रदूषण प्राकृतिक पृष्ठभूमि में पाये जाने वाले विकिरणों में वृद्धि के कारण होता है अर्थात् कह सकते हैं कि रेडियोएक्टिव पदार्थों के विकिरण से उत्पन्न प्रदूषण रेडियोएक्टिव प्रदूषण कहलाता हैं।
  • विकिरण प्रदूषण के अनेक स्रोत हैं, जैसे-नाभिकीय अपशिष्ट, खनन के तथा नाभिकीय पदार्थों की प्रतिक्रियाएँ इत्यादि।
  • विकिरण (Radiation) ऊर्जा का एक रूप है जो रेडियोएक्टिव विघटन के बाद उत्पन्न होता है। इस विकिरण को दो वर्गों में बाँटते हैं।
    (i) नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन (Non-lonising Radiation)
    (ii) आयोनाइजिंग रेडिएशन (Ionising Radiation)
  • वह विकिरण जो आयनों में परिवर्तित नहीं होता, नॉन आयोनाइजिंग रेडिएशन कहलाते हैं। यह रेडिएशन स्पैक्ट्रम की लम्बी तरंगदैर्ध्य पर विद्युत चुम्बकीय तरंगों से निर्मित होता है। इन तरंगों में इतनी ऊर्जा होती है कि जिस माध्यम से गुजरती है, उसके परमाणुओं और अणुओं को उत्तेजित कर देती है।
  • वह विकिरण जो आयनों में परिवर्तित हो जाता है, आयोनाइजिंग रेडिएशन कहते हैं अर्थात् यह रेडिएशन जिस माध्यम से गुजरता है, उसके परमाणु और अणुओं को आयनों में परिवर्तित कर देता है। विद्युत चुम्बकीय रेडिएशन जैसे-लघु तरंगदैर्ध्य, एक्स किरणें व गामा किरणें इत्यादि नाभिकीय प्रक्रिया में उत्पन्न होते हैं। विद्युत शक्ति से सम्पन्न कण जैसे अल्फा, बीटा कण जो नाभिकीय विखंडन में उत्पन्न होते हैं, रेडियोएक्टिव से संबंधित सभी जीवों के लिये हानिकारक होते हैं।
  • रेडियोएक्टिव पदार्थों के विकिरण से जनित प्रदूषण को रेडियोएक्टिव अथवा रेडियोधर्मी प्रदूषण कहते हैं। इन पदार्थों से स्वतः रेडियोधर्मी विकिरण निकलता रहता है। जैसे-थोरियम, स्कूटोनियम, यूरेनियम आदि। रेडियोधर्मी प्रदूषण की मापन की इकाई ‘रोन्टजन’ है। इसे रैम भी कहा जाता है। 20 उस रैम (रोन्टजन) तक का विकिरण जीवधारियों को कोई क्षति नहीं पहुँचता है। किन्तु इससे अधिक विकिरण जीवधारियों के लिए
    घातक होता है।
  • रेडियोएक्टिव प्रदूषण के स्त्रोत – प्राकृतिक तथा मानव जनित दोनों प्रकार से रेडियोएक्टिव प्रदूषण उत्पन्न होता है। मानव जनित स्त्रोतों से रेडियोधर्मी प्रदूषण मुख्यतः परमाणु रिएक्यों से होने वाले रिसाव, नाभिकीय प्रयोग, औषधि विज्ञान, रेडियोधर्मी पदार्थों के उत्खनन, रेडियोएक्टिव पदार्थों के निस्तारण व परमाणु बम के विस्फोट आदि से फैलता है। इसके अलावा मानव जनित स्रोतों में विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु आइसोटोप जैसे-कार्बन-14, कोबाल्ट-60, स्ट्रोशियम-90 ट्राइटियम आदि के प्रयोग भी रेडियोएक्टिव प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं। प्रकृति जनित रेडियोधर्मी प्रदूषण जीवों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं डालता है क्योंकि इसकी तीव्रता बहुत कम होती है। यह पृथ्वी के गर्भ में दबे रेडियोएक्टिव पदार्थों तथा सूर्य की किरणों से फैलता है।
  • रेडियोएक्टिव पदार्थों का खाद्य श्रृंखला में प्रवेश – उपर्युक्त स्रोतों से उत्पन्न हुए रेडियोएक्टिव पदार्थ वायुमण्डल की बाम परतों में प्रवेश कर जाते हैं। वहाँ संघनन द्वारा ठोस रूप में परिवर्तित होकर धूल के कणों के साथ मिल जाते हैं। वर्षा जल के साथ ये पुनः भूमि पर आते हैं तथा में मिल जाते हैं। मृदा से ये पदार्थ पौधों में जाते हैं। पौधों से शाकाहारी जन्तुओं और में मनुष्य में पहुँच जाते हैं।
    मृदा
  • रेडियोएक्टिव पदार्थों का जीवों पर प्रभाव – रेडियोधर्मी पदार्थों के परमाणु केन्द्रकों से अल्फा, बीटा और गामा कण किरणों के रूप में निकलते हैं। ये किरणें जीवित ऊतकों के जटिल अणुओं को विघटित कर कोशिकाओं को नष्ट कर देती हैं। इन मृत कोशिकाओं के कारण चर्म रोग व कैन्सर जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण जीन्स और गुणसूत्रों में हानिकारक उत्परिवर्तन हो जाता है। जिससे बच्चों की गर्भाशय में ही मृत्यु हो जाती है। कभी कभी बच्चों के अंग असाधारण प्रकार के हो जाते हैं। Radioactive Pollution के कारण मनुष्यों में असाध्य रोग हो जाते हैं। जैसे-रक्त कैंसर, अस्थि कैंसर और अस्थि टी. बी. | Radioactive radiation का प्रभाव कई हजार वर्षों तक रहता है। रेडियोधर्मी प्रदूषण सबसे अधिक घातक होता है। क्योंकि इसके प्रभाव se जल, वायु Evam मृदा तीनों प्रदूषित hote हैं।

रेडियोधर्मी प्रदूषण रोकने ke उपाय –

  • नाभिकीय रियक्टरों से विकिरण ke विसरण को रोका जाना चाहिए।
  • रेडियोएक्टिव अपशिष्ट को तर्कसंगत व सही ढंग se निवृत करना चाहिए।
  • मानव प्रयोग ke उपकरणों को रेडियोधर्मिता से मुक्त किया जाना चाहिए।
  • परमाणु अस्त्रों ka उत्पादन Evam प्रयोग प्रतिबन्धित hona चाहिए।
  • नाभिकीय पॉवर प्लांट ki दो बड़ी घटनाएँ उल्लेखनीय हैं
    (1) थ्री माइल आइलैण्ड मिडलटाउन यूएसए (USA) में (1979)
    (ii) चेरनोबिल यूएसए (USSR) (1979)
    उपर्युक्त दोनों मामलों में गलतियों के परिणामस्वरूप रिएक्टर अधिक गर्म ho गया, जिससे सा रेडिएशन बाहर निकल आया or वातावरण में फैल गया। थ्री माइल आइलैण्ड के रिएक्टर ka रिसाव अपेक्षाकृत कम था, जबकि चेरनोबिल के रिएक्टर ka रिसाव बहुत अधिक था, जिसमें अनेक कार्यकर्त्ता मारे गये और रेडिएशन पूरे यूरोप में जगह-जगह फैल गया। नाभिकीय पनडुब्बी me होने वाली दुर्घटनाएँ भी इसी or संकेत करती है।

निष्कर्ष –

आज के हमारे इस आर्टिकल में हमने प्रदूषण को लेकर जो भी प्रश्न सरकारी जॉब से सम्बंधित भर्तियों में पूछे जाते है उनकी पूरी जानकारी आज के इस आर्टिकल के माध्यम से दी गई है अगर आपको हमारा यह आर्टिकल पसंद आये तो अपने दोस्तों के सात ज्यादा से ज्यादा शेयर करे।

प्रदूषण FAQs ?

प्रश्न – विश्व पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है ?

उत्तर – 5 जून को।

प्रश्न – विश्व पर्यावरण दिवस प्रथम बार कब मनाया गया ?

उत्तर – 5 जून 1973 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया।

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