RAJASTHAN KE LOK DEVTA | राजस्थान के लोक देवता

RAJASTHAN KE LOK DEVTA – राजस्थान के अगर लोक देवताओं की बात करे तो इनमे ज्यादातर लोक देवता वो है जो लोगो के लिए या गायों की रक्षा के लिए या किसी भूमि की रक्षा करते हुए जिन्होंने अपने प्राण त्याग दिए समाज ने उन शहीदो को पूजने लगे और धीरे धीरे वो लोक देवता के रूप में पूजे जाने लगे आज हम इस आर्टिकल में राजस्थान के सभी लोक देवताओं के बारे में पढ़ेंगे।

पाबू हडबू रामदे , मांगलिया मेहा।
पाँचू पीर पधारज्यो , गोगाजी जेहा।

पीर – ऐसे लोक देवता जिनको हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगो द्वारा पूजे या माने जाते है पीर कहलाते है। ऐसे लोक देवता पांच है जो निम्न है। RAJASTHAN KE LOK DEVTA

पांच पीर – 1. पाबू 2. हडबू 3. रामदे 4. मेहा जी 5. गोगाजी।

पाबूजीRAJASTHAN KE LOK DEVTA

इनका जन्म 1239 ई./1296 वि.स. में चैत्र अमावस्या को कोलूमंड (फलौदी, जोधपुर) में हुआ। धांधलजी राठौड़ इनके पिता व कमला इनकी माता थी। इनकी शादी अमरकोट के सूरजमल सोढ़ा की पुत्री सुप्यार फूलम के साथ हुई। इन्हें ऊँटों के देवता, गौरक्षक देवता, प्लेग रक्षक देवता, लक्ष्मण का अवतार, हाड़ फाड़ के देवता, वचन पालक, शरणागत के रक्षक, अछुतोद्धारक देवता कहा जाता है। भाला लिये अश्वारोही/भाला इनका प्रतीक है। आसिया मोडजी व नैणसी के अनुसार पाबूजी का जन्म जोधापुर के जूना गांव में हुआ था। समरथ भारती पाबूजी के गुरू थे।

  • पाबूजी की पगड़ी बाईं ओर झुकी होती है। पाबूजी की बहिन सोहन बाई थी जिसकी शादी जायल (नागौर) के शासक जिन्द राव खींची के साथ हुई थी। केसर कालमी पाबूजी की घोड़ी थी जो देवचारणी बिगनियाई गांव (बाड़मेर) में दी थी, केसर कालमी काले रंग की थी। यह घोड़ी देवचारणी से पाबूजी के बहनोई जिंदराव खींची ने मांगी थी लेकिन देवल ने नहीं दी जिससे जिंदराव खींची पाबूजी व देवल चारणी से दुश्मनी रखने लगे। देवल चारणी ने पाबूजी को घोड़ी देते समय अपनी गायों की रक्षा का वचन लिया था। पाबूजी की शादी के समय जिंदराव खींची ने (जायल, नागौर) देवल चारणी की गायों का अपहरण कर लिया जिन्हें छुड़वाने के लिए जिंदराव खींची से पाबूजी का युद्ध हुआ। जिसमें देखूँ गांव (जोधपुर) में 1276 ई. को पाबूजी शहीद हो गये। चाँदा जी, हरमलजी, सलजी, डेम्बोजी पाबूजी का सहयोग करते हुए मारे गये।
  • पाबूजी के अनुयायी शादी में साढ़े तीन फेरे लेते हैं। मोडजी आसिया ने पाबू प्रकाश ग्रंथ की रचना की। मेहा बिठूजी ने पाबूजी रा छंद तथा लघराज जी ने पाबूजी रा दोहा ग्रंथों की रचना की। रामनाथ कविया ने पाबू सोरठा व लक्ष्मीकुमारी चूड़ावत ने पाबूजी री बात ग्रंथ की रचना की। पाबूजी की फड़ सबसे लोकप्रिय है जिसका वाचन नायक (आयड़) भोपा रावणहत्था वाद्य से ऊँट बीमार होने पर करता है।
  • ऊँट पालन – पोषण करने वाली रायका व रेबारी जाति है जो माठ वाद्य यंत्र से पाबूजी के पवाड़े/गाथागीत गाती है। चैत्र अमावस्या को पाबूजी का मेला है। थोरी जाति के लोग सारंगी वाद्य से पाबूजी का यश गाते हैं। थ्योरी जाति के 7 (चांदा, चासल, देवा, पेमा, खापू, खलमल, व्यक्तियों की पाबूजी ने गुजरात शासक आना बधेला से रक्षा की थी।

• मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊँट व सांडे (सिंधु से) लाने का श्रेय पाबूजी को जाता है। मेहर मुसलमान पाबूजी को पीर मानते हैं। पाबूजी के मन्दिर में थाली नृत्य किया जाता है। हड़मल राईका पाबूजी के ऊँटों की देखभाल करता था। पाबूजी की मौत का बदला पाबूजी के बड़े भाई बूढ़ोजी के पुत्र रुपनाथजी / झरड़ा जी ने जींदराव खीचीं को मारकर लिया। पाबूजी का प्रसिद्ध मन्दिर कोलूमण्ड (जोधपुर) तथा अन्य मन्दिर आहड़ (उदयपुर) में है। भील इन्हें अपना आराध्य देव मानते हैं।

हड़बूजीRAJASTHAN KE LOK DEVTA

इनका जन्म 15वीं सदी में भुंडेल (नागौर) में हुआ। मेहाजी मांगलिया में इनके पिता व बालीनाथ इनके गुरु थे। सौभाग्य देवी इनकी माता थी। ये सांखला राजपूत थे। सियार इनका वाहन है। ये रामदेवजी के मौसेरे भाई व राव जोधा के समकालीन थे। राव जोधा को इन्होंने मारवाड़ा का राज्य पुनः प्राप्त होने का आशीर्वाद तथा एक कटार दी। रावजोधा ने इन्हें राज्य प्राप्त होने पर वेंकटी गाँव (फलौदी, जोधपुर) दान में दिया जहां इनका मन्दिर बना है इनके मन्दिर में गाड़ी की पूजा होती है जिसमें हड़बूजी पंगू गायों के लिए चारा लाते थे। हड़बूजी के मन्दिर का निर्माण 1721 ई. में जोधपुर के शासक अजीत सिंह ने करवाया था। हड़बूजी ने चाखु गांव (जोधपुर) में तपस्या की थी। राव जोधा ने चाखु गांव के पास स्थित बावनी जागीर हड़बूजी को भेंट की थी।

हड़बूजी को सिद्ध पुरुष, चमत्कारी पुरुष, शकुन शास्त्र के ज्ञाता, योगी संन्यासी, वचन सिद्ध, वीर योद्धा कहते हैं। भाद्रपद शुक्लपक में इनका मेला भरता है। इनका पुजारी सांखला जाती का होता है। हडबू जी ने रामदेवजी के 8 वे दिन रुणेचा में समाधि ली थी।

मेहाजी मांगलिया – RAJASTHAN KE LOK DEVTA

इनका जन्म 14 वीं सदी में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (जन्माष्टमी) को हुआ। तापू गांव (जोधपुर) में हुआ। इस दिन इनका मेला भरता है। गोपालराव सांखला कीतू करणोत इनके पिता थे। इनकी माता मायड़दे थी। मेहाजी ने पुष्कर की पाना गुजरी को धर्म बहन बनाया था। पाना गुर्जरी की गाय राणगदेव ले गये, जिन्हें छुड़ाते हुए मेहाजी बापिनीगांव (जोधपुर) में वीरगति को प्राप्त हो गये। जसदान बिठू ने ‘वीर मेहा प्रकाश’ ग्रंथ की रचना की। इनका पालन- पोषण ननिहाल में हुआ जो मांगलिया गौत्र के थे।

मेहाजी मांगलिया का मन्दिर बापणी गाँव (जोधपुर) में बना है। किरड़ काबरा इनका घोड़ा था। इनकी मृत्यु जैसलमेर शासक राणंगदेव भाटी से युद्ध में गायों की रक्षा करते हुए हुई थी। मांगलिया वंश के भोपे पुत्र गोद लेकर वंश बढ़ाते हैं। इन्होंने रावचूड़ा को तलवार भेंट की थी। मेहाजी के पुजारी के सन्तान नहीं होती है वह पुत्र गोद लेकर अपना वंश चलाता है।

गोगाजी – RAJASTHAN KE LOK DEVTA

इनका जन्म भाद्रपद कृष्ण नवमी, विक्रम सं. 1003, ददरेवा (चूरु) में हुआ। जेवर सिंह चौहान इनके पिता व बाछल इनकी माता थीं। गोरखनाथ इनके गुरु थे जिनके आशीर्वाद से ही गोगाजी का जन्म हुआ था। गोरखनाथ जी ने गोगाजी की माता बाछल को गुग्गुल फल दिया जिससे गोगाजी का जन्म हुआ। इनकी शादी कोलूमण्ड (फलौदी, जोधपुर) के शासक बूढ़ो जी की पुत्री राजकुमारी केलमदे से हुई। गोगाजी की प्रथम शादी उत्तरप्रदेश के सिदया कजरीवन की पुत्री सुरीयल से हुई थी।

  • गोगाजी के गीत ‘छावली’ कहलाते है।
  • गोगाजी को विष्णु का अवतार माना जाता है।
  • जवाहर पांड्या व भज्जू कोतवाल गोगाजी के सहयोगी थे।
  • जानकवि रचित कायम खाँ रासो में गोगाजी व मोहम्मद गजनवी के युद्ध का वर्णन है।
  • गोगाजी की 17वीं पीढ़ी में कर्मसिंह हुआ जिसे मुसलमानों ने कायम खाँ बना दिया। जिसके वंशज कायमखानी हुए।
  • गोगाजी को साँपों के देवता, गोगापीर, जहारपीर, गौ रक्षक देवता, जिंदा पीर कहते हैं। इनका मन्दिर खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है जिसे मेड़ी कहते हैं। मेड़ी की बनावट मस्जिदनुमा होती है। इनकी ध्वजा सफेद रंग की होती है। सर्प इनका प्रतीक है। भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगा नवमी) को इनका मेला भरता है। इनके जागरण में डेरु व माठ वाद्यों का प्रयोग किया जाता है। किसान व हल के गोगा राखड़ी बाँधी जाती है जिसमें 9 गांठें होती हैं। गोगाजी की घोड़ी नीली थी। जिसे गोगा बाप्पा कहते हैं।
  • गोगाजी के मौसेरे भाई अर्जन-सर्जन थे। जिन्होंने गाय इकट्ठी कर मोहम्मद गजनवी को दे दी जिन्हें छुड़ाते हुए गोगाजी (गोगामेड़ी) (नोहर, हनुमानगढ़) अपने 47 पुत्र व 60 भतीजों के साथ शहीद हो गए। मोहम्मद गजनवी ने गोगाजी को जिंदापीर/जहारपीर नाम दिया। गोगाजी की शादी के समय उनकी पत्नी केलमदे को साँप ने डस लिया था जिससे नाराज होकर गोगाजी ने सभी साँपों को हवन कुण्ड में जलाना प्रारम्भ कर दिया। साँपों के देवता तक्षक ने गोगाजी से माफ़ी मांगी तथा उनकी पत्नी केलमदे को पुनः जीवित किया।
  • केसरियानाथ गोगाजी के पुत्र थे जिनकी पूजा भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को होती है तथा इनके पुजारी जहर को मुंह से चूसकर निकालते है।
  • गोगामेड़ी (नोहर, हनुमानगढ़) की बनावट मस्जिदनुमा है जिसके निर्माण का प्रारम्भ फिरोजशाह तुगलक ने कायमखानी सैनिकों के कहने पर करवाया तथा आधुनिक रुप बीकानेर शासक गंगासिंह ने दिया। इस मन्दिर के आगे बिस्मिला शब्द लिखा है। गोगामेड़ी में भाद्रपद माह में पशु मेला भरता है जिसमें ऊँट व हरियाणवी गायों का सर्वाधिक क्रय- विक्रय होता है। यहाँ स्थित मंदिर के पास गोरख तालाब है। गोगामेड़ी में गोगाजी के मन्दिर में 1 महीने पुजारी हिन्दू होता है तथा 11 महीने कायमखानी मुस्लिम पूजा करते हैं। गोगाजी के वंशज कर्मसिंह/कायमसिंह/ कायमखाँ को मुस्लिम बनाया गया जिसके वंशज कायमखानी मुस्लिम कहलाये।
  • कवि मेह ने गोगाजी का रसावला ग्रंथ की रचना की जिसमें गोगाजी का मुसलमानों के विरुद्ध युद्ध का वर्णन है। गोगाजी ने मुस्लिमों के साथ युद्ध किया था। गोगाजी को पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली के लोग पूजते हैं। जिन्हें ‘पूर्वीया’ कहते है। गोगाजी के लिए “गांव-गांव खेजड़ी गांव-गांव गोगा” की कहावत प्रसिद्ध है।
  • कुछ इतिहासकारों के अनुसार गोगाजी का निधन अपने चचेरे भाई अर्जन सर्जन के साथ युद्ध में हुआ था।
  • गोगामेड़ी के चारों ओर के जंगल को पणी रोपण कहते है।

नोट:- राजस्थान में धार्मिक हरे-भरे स्थान को ओरण व जोड़ कहते है।

गोगाजी के मन्दिरRAJASTHAN KE LOK DEVTA

गोगामेड़ी (नोहर, हनुमानगढ़) – मोहम्मद गजनवी के साथ लड़ते हुए गोगाजी का धड़ यहाँ गिरा जिस कारण इसे धुरमेड़ी कहते हैं। ददरेवा (राजगढ़, चूरू) – मोहम्मद गजनवी के साथ लड़ते हुए गोगाजी का शीश यहाँ गिरा जिस कारण इसे शीशमेड़ी कहते हैं। ददरेवा में स्थित तालाब की मिट्टी का लेप लगाने से साँप का जहर उतर जाता है।

सांचौर (जालौर) – यहाँ गोगाजी की ओल्डी/झोंपड़ी स्थित है। इस मंदिर का निर्माण केरियां गांव के राजाराम कुम्हार ने करवाया था।

रामदेवजी – RAJASTHAN KE LOK DEVTA

रामदेव जी का जन्म उडुकासमेर (शिव तहसील, बाड़मेर) में 1409 वि.स. 1352 ई. भाद्रपद शुक्ल द्वितीया (बाबे री बीज) को हुआ। अजमल तंवर इनके पिता व मेणादे इनकी माता थीं। इनकी शादी अमरकोट के दलैलसिंह की पुत्री निहालदे/नेतलदे से हुई। आराध्य वृक्ष-कदंब वीरमदेव (बलराम का अवतार) इनके भाई तथा सुगणा व लांछा इनकी बहिन थीं।

डाली बाई को रामदेव जी ने धर्म की बहिन बनाया। डाली बाई का कंगन-रुणीचा (पोकरण, जैसलमेर) में है जिसमें से निकलने पर सभी रोगों से छुटकारा मिलता है। डालीबाई ने रामदेवजी के एक दिन पहले समाधि ली थी। बालीनाथ रामदेव जी के गुरु थे। बालीनाथ की समाधि मसूरिया पहाड़ी (जोधपुर) पर स्थित है। रामदेव जी के पास नीला घोड़ा था।

  • रामदेव जी की फड़ का वाचन कामड़भोपा रावणहत्था वाद्य से करता है। सर्वप्रथम इनकी फड़ का चित्रांकन चौथमल चितेरे ने किया। इनकी फड़ बीकानेर व जैसलमेर में बांची जाती है। इन्हें पीरों के पीर, रामसापीर, कृष्ण का अवतार, ठाकुर जी, सांप्रदायिक सद्भाव के देवता, रुणेचा रा धणी कहते हैं।
  • रामदेवजी एकमात्र लोकदेवता हैं जो कवि थे इन्होंने चौबीस वाणियाँ ग्रंथ की रचना की। रामदेवजी ने कामड़िया पंथ चलाया जिसको मानने वाले शव को दफनाते हैं। इस पंथ की बहुएँ तेरह ताली नृत्य करती हैं। रामदेवजी को कपड़े के घोड़े चढ़ाये जाते हैं।
  • रामदेवजी ने शुद्धि आंदोलन चलाकर हिन्दू बने मुसलमानों को पुनः हिन्दू बनाया। भाद्रपद शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक रामदेवजी का मेला भरता है जिसे मारवाड़ का कुम्भ कहते हैं।

नोट-आदिवासियों का कुम्भ वेणेश्वर (डूंगरपुर) को कहते है।

  • मक्का से पांच पीर रामदेवजी की परीक्षा लेने आये थे। जिनके बर्तनों को रामदेवजी ने मक्का से लाकर दिया। जिस कारण उन पांच पीरों ने रामदेवजी को पीरों का पीर कहा था। रत्ना रायका, लंकी बंजारा, हरजी भाटी रामदेवजी के सेवक व सहयोगी थे। हरजी भाटी ओसियाँ ( जोधपुर ) के थे जिन्हे रामदेव जी ने परचा दिया था। हरजी भाटी ने आगम पुराण, भादरवा री मैमा, गऊ पुराण , मुलारम री वीरता ग्रंथो की रचना की। सातलमेर कस्बे में रामदेवजी ने भैरव राक्षस का वध कर सातलमेर का नाम पोकरण किया तथा पोकरण अपने बहिन सुगणा को दहेज में दिया। सुगणा की शादी पूंगलगढ़ (बीकानेर) के विजय सिंह के साथ हुई थी।

नोट- राणा कुम्भा की पुत्री रमा बाई की शादी भी पूंगलगढ़ में हुई थी।

  • भाद्रपद शुक्ल एकादशी, विक्रम संवत 1515 को रामदेवजी ने रुणिचा के रामसरोवर तालाब के किनारे जीवित समाधि ले ली। पंजाब, गुजरात और मध्यप्रदेश में रामदेवजी पूजे जाते हैं। रम्मत प्रारम्भ होने से पहले रामदेवजी के भजन गाये जाते हैं। बीरमदेव जन्म माध शुक्ल पंचमी 1506 वि.स. रामदेवजी जन्म भाद्रपद शुक्ल पंचमी 1509 वि.स.

चमत्कार

  • उफनते दूध को शान्त किया।
  • दूसरे स्तन की धार बीरमदेव के मुख में चली गई।
  • कपड़े के घोड़े पर बैठकर आकाश में उड़े।
  • आदू व भैरव राक्षस का वध।
  • गाय के बछड़े को जीवित किया।
  • बोहता सेठ की डूबती नाव को बचाया।
  • बोहता सेठ ने रुणेचा में परचा बावड़ी बनाई।
  • रामदेवजी के दोस्त स्वारथिया को सांप ने डसा जिससे उसकी मृत्यु हो गई लेकिन रामदेवजी ने पुनः जीवित कर दिया।
  • रामदेवजी ने रुणेचा की स्थापना 1525 वि.स. में की।
  • लाछो बाई की शादी राठौड़ों से कर दी। लाछो को पोकरण दहेज में दिया।

रामदेवजी के मन्दिर – RAJASTHAN KE LOK DEVTA

  • रुणेचा – पोकरण, जैसलमेर – आधुनिक मन्दिर का निर्माण गंगासिंह ने करवाया। (1931)
  • खुंडियास – अजमेर – इसे राजस्थान का छोटा/मिनी रामदेवरा कहते हैं। बराठिया – पाली
  • सुरता खेड़ा – चित्तौड़, यहाँ भाद्रपद शुक्ल एकम से तृतीया तक मेला भरता है।
  • मसूरिया – जोधपुर
  • हल्दिना – अलवर
  • कोटड़ा – बाड़मेर
  • छोटा राम देवरा – गुजरात
  • अधरशिला मन्दिर- जोधपुर

रामदेवजी की शब्दावली –

परचा – रामदेवजी की चमत्कारी घटना
नेजा – रामदेवजी की पंचरंगा ध्वजा
पगल्या – रामदेवजी का प्रतीक
जातरु – रामदेवजी के भगत
थान / देवरा – रामदेवजी का मन्दिर
जम्मा – रामदेवजी का रात्रि जागरण
रिखिया – रामदेवजी के मेघवाल जाति के भक्त
भांभी – रामदेवजी का पुजारी
ब्यावले – रामदेवजी के भजन

तेजाजी – RAJASTHAN KE LOK DEVTA

इनका जन्म 1074 ई. में, माघ शुक्ल 14 को खड़नाल (नागौर) में हुआ। इनके पिता ताहड़जी थे जो धौल्या गौत्र के नागवंशीय जाट थे। राजकंवरी इनकी माता थीं। बक्शारामजी तेजाजी के ताऊ थे। पेमलदे इनकी पत्नी थीं जो पन्हेर (अजमेर) के रामचन्द्र की पुत्री थी। राजत व भंवरी तेजाजी की बहिन थी।

तेजाजी के घोड़ी का नाम लीलण सिणगारी था। तेजाजी के पुजारी को घोड़ला कहते हैं जो सांप काटे व्यक्ति का जहर मुंह से चूसकर निकालता है। हल जोतते समय किसान तेजाजी के गीत गाता है जिन्हें तेजाटेर कहते हैं। तेजाजी ने जड़ी-बूटियों के माध्यम से लोगों का इलाज किया। तेजाजी ने गौमूत्र व गोबर की राख से साँप के जहर का उपचार किया था।

  • तेजाजी को गौरक्षक, नागों के देवता, काला-बाला के देवता, कृषि कार्यों के उपकारक देवता, धौलियावीरा के नाम से जाना जाता है। तेजाजी ने लांछा गुजरी/हीरा गुजरी की गायों को मेर/मीणा जाति से छुड़ाया था।

नोट – लाछा गुजरी की छतरी नागौर में है।

  • भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजा दशमी आती है जिस दिन तेजाजी का मेला भरता है। तलवार व जीभ पर सर्पदंश करते अश्वारोही तेजाजी का प्रतीक हैं। तेजाजी अजमेर व नागौर के प्रसिद्ध देवता हैं। तेजाजी के मंदिर को थान/चबूतरा कहते हैं। तेजाजी के जन्म दिवस पर 7 सितम्बर 2011 को स्थान खड़नाल पर ₹5 की डाक टिकट जारी की। तेजाजी के निधन का समाचार उसकी घोड़ी लीलण द्वारा पहुंचाया गया।
  • तेजाजी एक दिन खेत में काम कर रहे थे। तेजाजी की भाभी खाना लेकर देरी से पहुँची थीं जिससे तेजाजी अपनी भाभी से नाराज हो जाते हैं। तेजाजी की भाभी ने ताना देकर कहा कि अपनी पत्नी क्यो नहीं ले आते। इस बात से नाराज होकर तेजाजी अपनी माँ से अपने ससुराल का पता पूछकर पनेर (अजमेर) चले जाते हैं जब तेजाजी अपने ससुराल पहुँचते हैं उस समय उनकी सास दूध निकाल रही थी। तेजाजी की घोड़ी जब घर में प्रवेश करती है तब गाय उछल जाती है तथा दूध गिरा देती है जिससे तेजाजी की सास ने गाली निकाली। इस बात से नाराज होकर तेजाजी वापस चले जाते हैं। रात ज्यादा होने के कारण तेजाजी पनेर गाँव में लाछा गूजरी के घर ठहरते हैं। रात्रि के समय लाछा गूजरी की गायों को मेर जाति चुरा लेती है जिन्हें छुड़ाते हुए तेजाजी शहीद हो जाते हैं।

तेजाजी को गाय का मुक्ति दाता कहते हैं।

तेजाजी के आराध्य स्थल –

  • माडवालिया (अजमेर)- यहाँ पर तेजाजी की मेर जाति से लड़ाई हुई।
  • सैंदरिया (ब्यावर, अजमेर ) – यहाँ पर तेजाजी को साँप ने इसा था।
  • सुरसूरा (किशनगढ़, अजमेर) – यहाँ पर 1103 ई. में तेजाजी का निधन हुआ। यहाँ स्थित तेजाजी की मूर्ति को जागीर्ण/जागती जोत कहते हैं।
  • भांवता (नागौर) – यहाँ पर साँप काटे व्यक्ति का गौमूत्र से इलाज होता है।
  • ब्यावर (अजमेर) – यहाँ पर तेजाजी का चौक स्थित है।
  • परबतसर (नागौर) – यहाँ भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजाजी का पशुमेला भरता है जो राजस्थान में आय की दृष्टि से सबसे बड़ा मेला है। यहाँ स्थित मन्दिर की मूर्ति को जोधपुर शासक अभयसिंह के समय सुरसूरा से लाया गया था।
  • बांसी दुगारी (बूंदी) – यहाँ तेजाजी की कर्मस्थली है।
  • खड़नाल (नागौर)- यहाँ तेजाजी का सबसे बड़ा पूजा स्थल है।
  • पनेर (अजमेर) – यहाँ स्थित मन्दिर में पुजारी माली जाति का होता है।

देवनारायण जी – RAJASTHAN KE LOK DEVTA

इनका जन्म 1243 ई../1300 वि.स. माघ शुक्ल पष्ठी को आसीन्द (भीलवाड़ा) तथा पालन पोषण देवास (मध्यप्रदेश) में हुआ। सवाई भोज इनके पिता थे जो बगड़ावत वंश के नागवंशीय गुर्जर थे। सेढ़ू खटाणी इनकी माता थीं। इनकी शादी धार (मध्यप्रदेश) के शासक जयसिंह की पुत्री पिपलदे से हुई। उदयसिंह इनके बचपन का नाम था।

लीलागर इनके घोड़े का नाम था। देवनारायणी ने अपने भाई महेन्द्र, भूणा, मानसिंह, मदन के सहयोग से भिनाय के राणा को मारकर लोगों को मुक्ति दिलायी। भिनाय के राणा दुर्जनसाल ने देवनारायण जी के पिता सवाईभोज की हत्या की थी।

  • बाला व बाली देवनारायणजी के पुत्र-पुत्री थे।
  • माकडजी देवनारायणजी के सहयोगी थे।
  • देवनारायणजी को राज्य क्रांति का जनक माना जाता है।
  • इन्हें विष्णु का अवतार, आयुर्वेद के देवता, गौरक्षक देवता कहा जाता है। इनके मन्दिर में मूर्ति की जगह ईंट की नीम की पत्तियों से पूजा की जाती है। यह राजस्थान व गुजरात के पूज्य देवता है। इनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को देवमाली (ब्यावर, अजमेर) में हो गयी।
  • देवनारायण की फड़ सबसे लम्बी (25 हाथ) व सबसे छोटी (2.2) है। जिसका वाचन जन्तर वाद्य से अविवाहित गुर्जर भोपा करता है। इनकी फड़ एकमात्र है जिस पर 2 सितम्बर, 1992 को 2 की डाक टिकट जारी की गई। 3 सितम्बर 2011 को देवनारायण जी का 5 रु. का टिकट जारी हुई। देवनारायणजी का मेला भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को भरता है।
  • देवनारायणजी पर फिल्म बन चुकी है।

देवनारायणजी के आराध्य स्थल :

  • देवमाली (ब्यावर, अजमेर) यहाँ देवनारायणजी का निर्माण हुआ था।
  • देवजी की दूंगरी (चित्तौड़) – यहाँ देवनारायणजी का मन्दिर है जिसका निर्माण राणा सांगा ने करवाया ।
  • देवधाम (जोधपुरिया, टॉक) – यहाँ देवनारायणजी ने उपदेश दिये थे।
  • गोढां, ढड़ावत, आसींद (भीलवाड़ा) – यहा पर मुख्य देवरा है। यहाँ देवनारायणजी का जन्म हुआ था।

मामादेवRAJASTHAN KE LOK DEVTA

इन्हें बरसात का देवता कहते हैं इन्हें प्रसन्न करने के लिए भैंस की बलि दी जाती है। इनके मूर्ति के स्थान पर काष्ठ का तोरण होता है जिसे गाँव के बाहर स्थापित किया जाता है। स्यालोदड़ा (सीकर) में इनका मन्दिर है। मेला रामनवमी को भरता है

इलोजीRAJASTHAN KE LOK DEVTA

इन्हें छेड़छाड़ का देवता कहते हैं। ये होलिका के होने वाले पति थे। इलोजी की बारात जब हिरण्यकश्यप के घर पहुंची उससे पहले ही हिरण्यकश्यप की बहिन होलिका प्रहलाद को मारने के लिए अग्नि में बैठी लेकिन स्वयं जल गयीं।

इलोजी ने होलिका की राख को अपने शरीर पर लगाया तथा आजीवन कुँवारे रहने की शपथ ली। अच्छे वर-वधू के लिए मारवाड़ में इनकी पूजा होती है। इनके मन्दिर में आदम कद नग्न मूर्ति होती है। मंदिर बाड़मेर में स्थित है।

कल्लाजीRAJASTHAN KE LOK DEVTA

इनका जन्म 1544 ई./1601 वि.स. में सामीयना गाँव (मेड़ता, नागौर) में हुआ। इनके पिता आससिंह तथा इनकी माता श्वेतकंवर थीं। आससिंह रावदूदा के पौत्र थे। भैरवनाथजी कल्ला जी के गुरु थे।

  • कल्लाजी के बचपन का नाम केसरीसिंह था।
  • माना जाता है कि शिवगढ़ की राजकुमारी कृष्णा ने कल्लाजी के साथ मिलकर भीलों द्वारा फैलाई गई अशान्ति का दमन किया जिससे राजकुमारी कृष्णा व कल्लाजी एक-दूसरे से प्रभावित होकर एक-दूसरे को पति- पत्नि मान चुके थे। लेकिन शादी से पूर्व ही कल्लाजी राठौड़ शहीद हो गये। सर कटने पर भी कल्लाजी बिना सर का धड़ लेकर गये जिसके साथ राजकुमारी कृष्णा रूंडेला गाँव में सती हो गई।
  • इन्हें चार भुजा वाले देवता, दो सिर वाले देवता, योगी, शेषनाग का अवतार, बाल-ब्रह्मचारी, केहर, कल्याण, कमधण आदि नामों से जाना जाता है। मीरा बाई इनकी बुआ तथा जयमल इनके चाचा थे। 1567-68 ई. में चित्तौड़ के तीसरे साके में अकबर के विरुद्ध युद्ध करते हुए चित्तौड़ दुर्ग के तीसरे दरवाजे भैरवपोल में वीरगति को प्राप्त हो गए। इनकी छतरी चित्तौड़ दुर्ग में है। कल्लाजी की शादी शिवगढ़ के राव कृष्ण दास की पुत्री कृष्णा से होनी थी लेकिन उससे पहले ही कल्लाजी का चित्तौड़ के तीसरे साके में निधन हो गया। कल्लाजी के मृत्यु के बाद कृष्णा कल्लाजी पर सती हो गयी।
  • भैरवपोल (चित्तौड़) व साबलिया (डूंगरपुर) में इनके मन्दिर हैं जहाँ साँप, कुत्ता, बिच्छू व भूत-प्रेत का इलाज होता है। अश्विन शुक्ल नवमी को इनका मेला भरता है। ये गुजरात, मध्यप्रदेश व राजस्थान के मुख्य देवता हैं। रनेला (चित्तौड़गढ़) में इनकी मुख्य पीठ है। कल्लाजी की कुल देवी नागणेची माता हैं। सामलिया (ड्रॅगरपुर) में काले पत्थर की मूर्ति है।

मल्लीनाथ – RAJASTHAN KE LOK DEVTA

  • इनका जन्म 1.358 ई./1415 वि.सं. में तिलवाड़ा (बाड़मेर) में राठौड़ वंश में हुआ। तीहाजी/सलखाजी इनके पिता तथा जीणा दे इनकी माता थी। उगमसी भाटी इनके गुरु थे। इन्होंने 1378 ई. में फिरोज तुगलक (दिल्ली) व निजामुद्दीन (मालवा) को पराजित किया। सिद्धपुरुष, सूरवीर, चमत्कारी पुरुष मल्लीनाथ को कहा जाता है। इन्होंने 1399 ई. में कुण्डा पंथ की स्थापना की थी।
  • बाड़मेर के मालानी क्षेत्र का नाम इन्हीं के नाम पर पड़ा जहाँ के घोड़े प्रसिद्ध हैं। 1394 ई. में इन्होंने अपने भतीजे रावचूडाजी को मण्डोर विजय में सहायता की थी। तिलवाड़ा (बाड़मेर) में लूनी नदी के किनारे चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक पशु मेला भरता है। जो राजस्थान का सबसे प्राचीन पशु मेला है। इस मेले में थारपारकर व कांकरेज गायों का सर्वाधिक क्रय-विक्रय होता है। मल्लीनाथ की पत्नी रुपा दे का मन्दिर मालाजाल गाँव (बाड़मेर) में बना है।

तल्लीनाथजीRAJASTHAN KE LOK DEVTA

  • इनका जन्म शेरगढ़ (जोधपुर) में राठौड़ परिवार में 1544 ई. में हुआ। वीरमदेव इनके पिता तथा जालंधर नाथ इनके गुरु थे। इनके बचपन का नाम गांगदेव राठौड़ था। राव चूड़ा के ये भाई थे।
  • ये जालौर के प्रमुख देवता हैं। इनका मन्दिर पंचमुखी पहाड़ी (पांचोटा, जालौर) पर स्थित है। जालौर के निवासी इनके द्वारा स्थापित ओरण (धार्मिक हरा-भरा स्थल) से पेड़ नहीं काटते। जहरीला कीड़ा काटने पर इनके मन्दिर में इलाज होता है
  • इन्हें प्रकृति प्रेमी लोकदेवता कहते हैं।

हरीराम जी – RAJASTHAN KE LOK DEVTA

इनका जन्म झोरड़ा (नागौर) में हुआ। जहाँ इनका मन्दिर है। रामनारायण इनके पिता तथा चन्दणी देवी इनकी माता थीं। भूरा इनके गुरू थे। इनके मन्दिर में मूर्ति की जगह सांप की बांबी (बिल) व चरण चिह्न पूजे जाते हैं। चैत्र शुक्ल चतुर्थी व भादवा शुक्ल पंचमी को इनका मेला भरता है।

रुपानाथजी/झरड़ा जी – RAJASTHAN KE LOK DEVTA

ये पाबूजी के भाई बूढ़ो जी के पुत्र थे। माता केसर कंवर। इन्होंने जींदराव खींची की वध कर अपने चाचा पाबूजी की मौत का बदला लिया। हिमाचल प्रदेश में बालकनाथ के रुप में इनकी पूजा होती है। सिंभूदड़ा (नोखा, बीकानेर) कोलूमंड (जोधपुर) में इनके मन्दिर हैं।

देवबाबा – RAJASTHAN KE LOK DEVTA

मंदिर नीम के पेड़ के नीचे होता है। गुर्जर जाति के आराध्य देव हैं। नगला जहाज (भरतपुर) में इनका मन्दिर हैइन्हें ग्वालों के देवता, पशु चिकित्सक कहते हैं। भाद्रपद शुक्ल पंचमी व चैत्र शुक्ल पंचमी को इनका मेला भरता है। इनका वाहन पाडा/भैंसा है। इन्होंने मृत्यु के बाद भी अपनी बहिन ऐलारी/ऐलादी का भात भरा था। माना जाता है कि ग्वालों को भोजन कराने से देवबाबा खुश होते हैं।

डूंगरजी – जवाहरजीRAJASTHAN KE LOK DEVTA

  • ये दोनों डूंगरजी (चाचा) व जवाहरजी (भतीजा) थे।
  • इन्होंनें रामगढ के सेठ घुरसामल की बालद लूटकर पुष्कर (अजमेर) में गरीबों को बांटी।
  • डूंगरजी के साले भैरोंसिंह जो झड़वासा गांव के थे अंग्रेजों के लालच में आकर डूंगरजी को गिरफ्तार करवा दिया। अंग्रेजों ने इन्हें पकड़कर आगरा किले में कैद किया। वहां से जवाहरजी ने करणीया/सांवता मीणा व लोठ्याजाट के सहयोग से छुड़ाया।
  • इन्होंने नसीराबाद (अजमेर) छावनी को भी लूटा था।
  • जवाहर जी को बीकानेर शासक रत्नसिंह व दूंगरजी को जोधपुर शासक तखतसिंह ने शरण दी थी। धनवानों को लूटकर गरीबों में बांटने वाला ‘धाडायती’ कहलाता है। ये बठोठ (पाटोदा, सीकर) में कछवाह वंश के थे।

नोट – बालद सामान से भरी गाड़ियां होती है जो सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है।

झुंझार जी – RAJASTHAN KE LOK DEVTA

झुंझार जी का जन्म इमलोहा नीमकाथाना में (सीकर) हुआ। इनका मन्दिर स्यालोदड़ा, सीकर में स्थित है जहाँ रामनवमी (चैत्र शुक्ल नवमी) को मेला भरता है। इन्होंने मुस्लिम लुटेरों से गाँव की रक्षा करते हुए स्यालोदड़ा (सीकर) के पास अपने प्राण दे दिए। झुंझार के साथ उसके दो भाई व दुल्हा-दुल्हन भी मारे गये। झुंझार जी के मन्दिर में पत्थर की पाँच मूर्तियाँ है। जिनमें तीन भाईयों की व दो दुल्हा-दुल्हन की मूर्तियाँ हैं। इनका मन्दिर खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है।

बिग्गाजीRAJASTHAN KE LOK DEVTA

इनका जन्म रिडी 1301 ई./1358 वि.सं. (डूंगरगढ़, बीकानेर) जाट परिवार में हुआ। महनजी इनके पिता व सुल्तानी इनकी माता थीं। गायों की रक्षा हेतु इन्होंने बलिदान दिया। जाखड़ समाज के आराध्य देव हैं।

  • 14 अक्टूबर को इनका मेला भरता है।

वीर फता जीRAJASTHAN KE LOK DEVTA

ये सांधू (जालौर) के देवता हैं। भाद्रपद शुक्ल नवमी को इनका मेला भरता है। इन्हें शस्त्र विद्या का ज्ञान था। लुटेरों से गाँव की रक्षा करते हुए वीर फता जी शहीद हुए थे। मंदिर बबूल वृक्ष के नीचे होता है।

पनराजजीRAJASTHAN KE LOK DEVTA

ये जैसलमेर के आराध्य देव हैं। भाद्रपद शुक्ल दशमी व माथ शुक्ल दशमी को पनराजसर ग्राम (जैसलमेर) में मेला भरता है। इन्होंने मुस्लिमों से ब्राह्मणों की गायों की रक्षा की थीं।

गौतमेश्वर/भूरिया बाबाRAJASTHAN KE LOK DEVTA

  • ये मीणाओं के आराध्य देव हैं। अरणोद (सादड़ी, प्रतापगढ़) में इनका मन्दिर है। मीणा इनकी झूठी सौगंध नहीं खाते हैं।
  • मीणा जाति गौतमेश्वर मेले में सुकड़ी नदी में अपने पूर्वजों की अस्थियां प्रवाहित करती है।
  • गौतमेश्वर के मेले में वर्दी पहने पुलिस वालों का प्रवेश निषेध है।

आलमजी (राठौड़)RAJASTHAN KE LOK DEVTA

इनका मन्दिर मालानी (बाड़मेर) में है। बाड़मेर के ढांगी नामक स्थान को आलमजी का धोरा कहते हैं। आलमजी का मूलनाम जेतमलोत राठौड़ था भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को इनका मेला भरता है।

केसरिया कंवर जी – RAJASTHAN KE LOK DEVTA

  • ये गोगाजी के पुत्र थे।
  • इनकी ध्वजा सफेद व आराध्य वृक्ष खेजड़ी होता है।
  • भाद्रपद कृष्ण अष्टमी के दिन इनका मेला भरता है।
  • केसरिया कंवर का पुजारी सांप काटे व्यक्ति का जहर मुंह से चूसकर निकालता है।
  • ददरेवा (राजगढ़, चूरू) व ब्रहमसर (हनुमानगढ़) में इनका मंदिर है।

वीर बावसी – RAJASTHAN KE LOK DEVTA

गौ रक्षा के लिए बलिदान होने के कारण लोक देवता के रुप में पूजे जाते हैं। चैत्र शुक्ल पंचमी को मेला भरता है। गौडवाड़ क्षेत्र के आराध्य हैं।

मन्दिर- काला टोकरा

भोमियाजी – RAJASTHAN KE LOK DEVTA

इन्हें भूमि रक्षक देवता कहते हैं। इनका मंदिर प्रत्येक गाँव में होता है। नाहरसिंह भोमिया (जयपुर) व सूरजमल भोमिया (दौसा) के मंदिर प्रसिद्ध है।

Read More…RAJASTHAN CURRENT AFFAIRS SERIES 17 SEPEMBER 2022 | राजस्थान करंट अफेयर्स सीरीज 17 सितम्बर 2022 –

2 thoughts on “RAJASTHAN KE LOK DEVTA | राजस्थान के लोक देवता”

Leave a Comment