RAJASTHAN KE PRAMUKH ABHILEKH | राजस्थान के प्रमुख अभिलेख |
उत्कीर्ण अभिलेखों KE अध्ययन KO ‘ एपीग्राफी ‘ ( पुरालेखशास्त्र ) KAHA JATA HAI ।
- ABHILEKHO AVAM DUSRE PURANE दस्तावेजों KI PRACHIN LIPI KA अध्ययन ‘ पेलियोग्राफी ‘ ( पुरालिपिशास्त्र ) कहलाता HAI।
- अगर बात करे भारतीय लिपियों पर पहला वैज्ञानिक अध्ययन डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने किया। श्री ओझा ने भारतीय लिपियों पर ‘ भारतीय प्राचीन लिपिमाला ‘ पुस्तक की रचना की।
घोसुन्डी शिलालेख (द्वितीय शताब्दी ई.पू.) –
- द्वितीय शताब्दी ई. पूर्व का यह लेख नगरी (चित्तौड़) के समीप घोसुन्डी ग्राम से प्राप्त हुआ है।
- इस शिलालेख का महत्त्व द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व में भागवत धर्म का प्रसार, संकर्षण और वासुदेव की मान्यता तथा अश्वमेध यज्ञ का प्रचलन आदि से है।
- इस प्रकार भागवत धर्म के प्रचलन की जानकारी देने वाला यह राजस्थान में प्राचीनतम् प्रमाण है ।
नांदसा यूप-स्तम्भ लेख (225 ई.) -RAJASTHAN KE PRAMUKH ABHILEKH
- भीलवाड़ा जिले में स्थित इस यूप-स्तम्भ की स्थापना 225 ई. में की गई थी।
- इस लेख से पता चलता है कि शक्तिगुणगुरु नामक व्यक्ति ने यहाँ पष्ठिरात्र (छ: रातों में सम्पन्न) यज्ञ किया था।
- इस स्तम्भ की स्थापना पश्चिमी (शक) क्षत्रपों KE RAJYA – KAL में SOM DWARA KI GAI THI।
बड़वा स्तम्भ लेख (238-39 ई.) –
- बाराँ जिले में अन्ता के समीप बड़वा ग्राम से 238-239 ई. के (पूर्व गुप्तकालीन) तीन यूप-स्तम्भ लेख उपलब्ध हुए हैं।
- इनमें त्रिरात्र यज्ञों का उल्लेख है जिन्हें बलवर्धन, सोमदेव तथा बलसिंह नामक तीन भाइयों ने सम्पादित किया था।
- एक अन्य लेख में मौखरी वंशी धनत्रात DWARA KIYE GAYE अप्तयाम (EK PURE DIN KE BAD DUSRE DIN TAK चलने वाला) यज्ञ का उल्लेख है।
RAJASTHAN KE PRAMUKH ABHILEKH गंगधार का लेख (423 ई.) –
- यह लेख झालावाड़ जिले में गंगधार नामक स्थान से प्राप्त हुआ है जिसकी भाषा संस्कृत है।
- इस लेख के अनुसार राजा विश्वकर्मा के मंत्री मयूराक्ष ने एक विष्णु मन्दिर का निर्माण करवाया था।
- उसने तांत्रिक शैली का मातृगृह और एक बावड़ी का भी निर्माण करवाया था।
- इस लेख से पाँचवीं शताब्दी की सामंती व्यवस्था KE BARE ME BHI JANKARI PRAPT HOTI HAI ।
भ्रमरमाता का लेख (490 ई.) –
- छोटी सादड़ी (प्रतापगढ़) के भ्रमरमाता मन्दिर से प्राप्त इस लेख की तिथि 490 ई. है।
- संस्कृत पद्य में लिखित इस प्रशस्ति का रचयिता ब्रहासोम और उत्कीर्णक पूर्वा था।
- इसमें गौरवंश और औलिकर वंश के शासकों का वर्णन है।
- यह लेख प्रारम्भिक सामन्त प्रथा और पाँचवीं शताब्दी की राजनीतिक स्थिति KI JANKARI KE LIYE महत्त्वपूर्ण है।
सांमोली शिलालेख (646 ई.) –
उदयपुर जिले के सांमोली ग्राम से प्राप्त यह लेख गुहिल वंश के शासक शिलादित्य के समय का है।
- मेवाड़ के गुहिल वंश के समय KO निश्चित KARNE TATHA US समय KI आर्थिक OR साहित्यिक स्थिति KI JANKARI KE LIYE यह लेख विशेष महत्त्वपूर्ण HAI।
अपराजित का शिलालेख (661 ई.) –
वि. सं. 718 (661 ई.) KA YHA LEKH नागदा KE समीपस्थ कुंडेश्वर MANDIR KI DEEWAR PAR लगा हुआ THA, जिसे DR.गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने विक्टोरिया हॉल म्यूजियम (अजमेर) में सुरक्षित रखवाया। लेख की भाषा संस्कृत है। गुहिल शासक अपराजित के इस लेख से गुहिलों की उत्तरोत्तर विजयों के बारे में सूचना प्राप्त होती है। लेखानुसार अपराजित ने एक तेजस्वी शासक वराहसिंह को पराजित कर उसे अपना सेनापति नियुक्त किया था।
- इसमें विष्णु मन्दिर के निर्माण का भी उल्लेख है।
- इस लेख की सुन्दर लिपि तथा स्पष्ट भाषा से मेवाड़ में विकसित शिल्पकला का पता चलता है।
- इससे 7वीं शताब्दी के मेवाड़ की धार्मिक तथा राजनैतिक व्यवस्था के बारे में भी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
- इस प्रशस्ति की रचना दामोदर ने की और इसे यशोभट्ट ने उत्कीर्ण किया था।
चित्तौड़ का मानमोरी का लेख (713 ई.) –
- 713 ई. का यह लेख चित्तौड़ के पास मानसरोवर झील के तट पर कर्नल टॉड को प्राप्त हुआ था।
- इसके रचयिता पुष्प और उत्कीर्णक शिवादित्य थे।
- जेम्स टॉड ने इस लेख KO BRITAIN LE JATE SAMYA किसी कारणवश समुद्र में फेंक DIYA THA , परिणामस्वरूप IS LEKH KI प्रतिलिपि केवल टॉड की पुस्तक एनाल्स में मिलती है।
कणसवा (कंसुआ) का लेख (738 ई.) –
यह लेख कोटा के निकट कंसुआ के शिवालय से मिला है जिसकी तिथि 738 ई. है। इस लेख में धवल नाम के मौर्य शासक का उल्लेख है। इसके बाद किसी मौर्यवंशी राजा का राजस्थान में वर्णन नहीं मिलता है।
RAJASTHAN KE PRAMUKH ABHILEKH चाटसू की प्रशस्ति (813 ई.) –
यह प्रशस्ति जयपुर जिले के चाटसू नामक स्थान से प्राप्त हुई है, जिसमें चाटसू के गुहिल शासकों की वंश परम्परा और उपलब्धियों की जानकारी प्राप्त होती है। इस लेख से पता चलता है कि चाटसू के गुहिल प्रतिहार वंश के शासकों के अधीन थे। इस वंश में मेवाड़ के गुहिलों की भाँति शिवभक्ति और विष्णुभक्ति का प्रचलन था।
बुचकला शिलालेख (815 ई.) –
जोधपुर जिले में बिलाड़ा के समीप बुचकला गाँव के पार्वती मन्दिर में यह शिलालेख मिला है। इसकी भाषा संस्कृत पद्य है। यह लेख प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय के समय का है। इस लेख में प्रतिहार वंश के शासकों और सामन्तों के नाम मिलते हैं, जिससे उस समय के शासकों और सामन्तों के सम्बन्ध और स्तर का अनुमान लगाया जा सकता है।
मण्डोर का शिलालेख (837 ई.) –
यह लेख मूलतः मण्डोर के विष्णुमन्दिर में लगा हुआ था जिसे बाद में जोधपुर के शहरपनाह में लगा दिया गया। यह लेख मण्डोर के प्रतिहारों की वंश परम्परा जानने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
घटियाला का शिलालेख (861 ई.) –
जोधपुर से 22 मील दूर घटियाला नामक स्थान पर एक जैन मन्दिर जिसे ‘माता की साल’ कहते हैं, के समीप स्थित स्तम्भ पर चार लेखों का समूह है। लेख की भाषा संस्कृत है जिसमें गद्य और पद्य का प्रयोग किया गया है। इस लेख में प्रतिहार शासकों, मुख्यतः कक्कुक प्रतिहार की उपलब्धियों और राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक नीतियों के बारे में सूचना प्राप्त होती है। इस लेख में ‘मग’ जाति के ब्राह्मणों का भी विशेष उल्लेख किया गया है जो वर्ण विभाजन का द्योतक है। ‘मग’ ब्राह्मण ओसवालों के आश्रय में रहकर निर्वाह करते थे तथा जैन मन्दिरों में भी पूजा सम्पन्न करवाते थे। ये लेख मग द्वारा लिखे गये तथा स्वर्णकार कृष्णेश्वर द्वारा उत्कीर्ण किये गये थे।
घटियाला के दो अन्य लेख (861 ई.) –
यह लेख भी मंडोर के प्रतिहार शासक कक्कुक के समय का है। इस लेख में हरिश्चन्द्र से प्रारम्भ कर कक्कुक तक के मंडोर के प्रतिहारों की वंशावली तथा उनकी उपलब्धियों का उल्लेख किया गया है। इस लेख का अन्तिम श्लोक स्वयं कक्कुक ने लिखा था जिससे प्रतिहार शासकों की विद्वता की जानकारी मिलती है।
RAJASTHAN KE PRAMUKH ABHILEKH सारणेश्वर प्रशस्ति (953 ई.) –
यह प्रशस्ति उदयपुर के श्मशान के सारणेश्वर नामक शिवालय के पश्चिमी द्वार के छबने पर लगी हुई है। इसकी भाषा संस्कृत और लिपि नागरी है। इस प्रशस्ति से तत्कालीन शासन तथा कर व्यवस्था पर प्रकाश पड़ता है। इसमें मेवाड़ के गुहिलवंशी राजा अल्लट और उसके पुत्र नरवाहन एवं मुख्य कर्मचारियों के नाम उनके पद सहित दिये गये हैं। इस प्रशस्ति के लिपिकार कायस्थपाल और वेलक थे।
ओसिया का लेख (956 ई.) –
यह लेख संस्कृत पद्य में है जिसे सूत्रधार पदाजा द्वारा उत्कीर्ण किया गया था। लेख में प्रतिहार शासक वत्सराज को रिपुओं का दमन करने वाला कहा है तथा उसके समय की समृद्धि पर प्रकाश डाला गया है। इससे उस समय के वर्ण विभाजन की भी जानकारी मिलती है।
चित्तौड़ का लेख (971 ई.) –
इस लेख से परमार शासकों की उपलब्धियों, उनका चित्तौड़ पर अधिकार, चित्तौड़ की समृद्धि आदि पर प्रकाश पड़ता है। इस प्रशस्ति में देवालयों ME स्त्रियों KE प्रवेश KO निषिद्ध बतलाया HAI JO US समय KI सामाजिक व्यवस्था OR धार्मिक स्तर PAR BHI स्त्रियों KE SAT भेदभाव KA परिचायक HAI ।
एकलिंगजी की नाथ प्रशस्ति (971 ई.) –
यह शिलालेख उदयपुर के एकलिंग मन्दिर के पास लकुलीश मन्दिर में लगा हुआ है। यह प्रशस्ति मेवाड़ के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास को जानने के लिए उपयोगी है। इस प्रशस्ति के रचयिता आम्र कवि थे। गुहिल वंशी शासक नरवाहन के समय उत्कीर्ण इस लेख की भाषा संस्कृत और लिपि देवनागरी है।
हर्षनाथ मन्दिर की प्रशस्ति (973 ई.) –
यह प्रशस्ति सीकर के हर्षनाथ मन्दिर में लगी हुई है जो संस्कृत पद्य भाषा में है। इससे चौहान शासकों के वंशक्रम तथा उनकी उपलब्धियों पर प्रकाश पड़ता है। इसमें वागड़ के लिए ‘वार्गट’ शब्द का प्रयोग किया गया ।
आहड़ का देवकुलिका का लेख (977 ई.) –
संस्कृत भाषा में लिपिबद्ध यह लेख मेवाड़ के गुहिल शासक शक्तिकुमार के समय का है जो आहड़ के एक जैन मन्दिर की देवकुलिका के छबने में लगा हुआ है। इस लेख से मेवाड़ के तीन शासकों-अल्लट, नरवाहन और शक्तिकुमार के समय के अक्षपटलाधीशों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। इससे अल्लट और प्रतिहार शासक देवपाल के मध्य युद्ध पर भी प्रकाश डाला गया है, इस युद्ध में देवपाल मारा में गया था। मेवाड़ के प्राचीन शासकों और शासन सम्बन्धी जानकारी के लिए यह लेख महत्त्वपूर्ण है।
आहड़ का शक्तिकुमार का लेख (977 ई.) –
शक्तिकुमार के इस लेख को कर्नल टॉड अपने साथ इंग्लैण्ड ले गये, उन्होंने अपनी ‘एनाल्स’ में इस लेख की विषयवस्तु का वर्णन किया है। संस्कृत भाषा के इस लेख में मेवाड़ के गुहिल शासक शक्तिकुमार की राजनीतिक प्रभुता और उसके समय में आहड़ की आर्थिक सम्पन्नता की जानकारी मिलती है। इस LEKH ME GUHIL शासक अल्लट KI RANI हरियादेवी KO HUN RAJA KI पुत्री BTAYA GYA HAI जिसने HARSHPUR नामक ग्राम बसाया था। इस लेख में गुहदत्त से शक्तिकुमार तक पूरी वंशावली दी गई है जो मेवाड़ के प्राचीन इतिहास के लिए महत्त्वपूर्ण HAI ।
जालौर का लेख (1118 ई.) -RAJASTHAN KE PRAMUKH ABHILEKH
यह लेख जालौर में तोपखाना की इमारत की उत्तरी दीवार पर लगा हुआ था, वर्तमान में जोधपुर के संग्रहालय में रखा हुआ है। यह जालौर के परमारों से सम्बन्धित है तथा बताया गया है कि परमारों की उत्पत्ति वशिष्ठ के यज्ञ से हुई थी। इस लेख से जालौर के परमार वंश के संस्थापक वाक्पतिराज का उल्लेख है।
चित्तौड़ का कुमारपाल का शिलालेख (1150 ई.) –
चालुक्य (सोलंकी) शासक कुमारपाल का यह लेख चित्तौड़ के समिद्धेश्वर मन्दिर में लगा हुआ है। इस लेख में चालुक्यों का यशोगान करते हुए मूलराज और सिद्धराज का वर्णन किया गया है। इस लेख से सिद्ध होता है कि चित्तौड़ पर कुछ समय चालुक्यों का शासन रहा था। इस प्रशस्ति का रचयिता दिगंबर जैन विद्वान रामकीर्ति था।
RAJASTHAN KE PRAMUKH ABHILEKH किराडू का लेख (1152 ई.) –
यह लेख किराडू (बाड़मेर) के निकट एक शिवमन्दिर में उत्कीर्ण है। यह लेख एक प्रकार से राजाज्ञा है जिसमें चौहान सामंत आल्हणदेव ने मास के दोनों पक्षों की अष्टमी, एकादशी और चतुर्दशी पर पशुवध निषेध घोषित कर दिया था। दंडस्वरूप सर्वसाधारण से 5 द्रम और राज्य परिवार के व्यक्ति से 1 द्रम लेने की व्यवस्था से स्पष्ट है कि विशेष अधिकार को उस युग में मान्यता दी जाती थी। इस लेख में विभिन्न प्रकार के पदाधिकारियों का भी उल्लेख मिलता है।
बिजौलिया शिलालेख (1170 ई.) –
यह शिलालेख बिजौलिया के पार्श्वनाथ मन्दिर के समीप एक चट्टान पर उत्कीर्ण है। इस प्रशस्ति का रचयिता गुणभद्र था तथा गोविन्द ने इसको उत्कीर्ण किया। इसमें साँभर और अजमेर के चौहान वंश की सूची तथा उनकी उपलब्धियों की जानकारी मिलती है। इन चौहान शासकों कोवत्सगोत्रीय ब्राह्मण कहा गया है। बिजौलिया क्षेत्र जिसे ऊपरमाल भी कहा जाता है, को इस लेख में ‘उत्तमाद्रि’ कहा गया है। अनेक क्षेत्रों के प्राचीन नाम भी इस लेख से प्राप्त होते हैं।
नादेसमाँ गाँव का लेख (1222 ई.) –
यह लेख उदयपुर जिले के नादेसमाँ गाँव के चारभुजा मन्दिर के निकट टूटे हुए सूर्यमन्दिर के एक स्तम्भ पर उत्कीर्ण है। इस लेख से पता चलता है कि जैत्रसिंह की राजधानी नागदा थी। इससे स्पष्ट है कि 1222 ई. TAK NAGDA NAGAR नष्ट नहीं HUA THA ।
लूणवसाही की प्रशस्ति (1230 ई.) –
- यह प्रशस्ति देलवाड़ा के तृणवसाही मन्दिर की है जो संस्कृत भाषा में है और पथ में लिखी गई है।
- इस लेख से आबू के परमार शासकों और तेजपाल व वास्तुपाल के वंश के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
- इससे पता चलता है कि आबू के परमार शासक सोमसिंह के समय में मंत्री वास्तुपाल के छोटे भाई तेजपाल ने लूणवसाही नामक नेमिनाथ का मन्दिर अपनी स्त्री अनुपमा देवी के श्रेय के लिए बनवाया था।
बीढू गाँव का लेख (1273 ई.) –RAJASTHAN KE PRAMUKH ABHILEKH
- पाली के पास बीलू गाँव में यह लेख प्राप्त हुआ है।
- इस लेख से राव सीहा के व्यक्तित्व और उसकी मृत्यु की तिथि निश्चित करने में मदद मिलती है।
- इस लेख के अनुसार मारवाड़ के राठौड़ों का आदिपुरुष सीहा सेतकुँवर का पुत्र था।
- उसकी पत्नी पार्वती ने उसकी मृत्यु पर देवल का निर्माण करवाया था।
- वीनू गाँव के उक्त देवल पर ही यह लेख उत्कीर्ण है। इस लेख के ऊपरी भाग में अश्वारोही सीहा को शत्रु पर भाला मारते
हुए दर्शाया है।
चीरवा का शिलालेख (1273 ई.) –RAJASTHAN KE PRAMUKH ABHILEKH
यह लेख उदयपुर के समीप चीरवा गाँव के एक मन्दिर पर लगा हुआ है। आचार्य भुवनसिंह सूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि ने इस लेख की रचना की और केलिसिंह ने इसे उत्कीर्ण किया। इसमें गुहिलवंशीय शासकों पद्मसिंह, जैत्रसिंह, तेजसिंह और समरसिंह की उपलब्धियों का वर्णन है।
रसिया की छतरी का लेख (1274 ई.) –
चित्तौड़ में रसिया की छतरी पर यह लेख लगा हुआ था। इसका रचयिता वेदशर्मा था। इसमें बापा से नरवर्मा तक के गृहिलवंशीय शासकों की उपलब्धियों पर प्रकाश पड़ता है।
चित्तौड़ के पाश्र्वनाथ मन्दिर का लेख (1278 ई.) –
इस लेख से पता चलता है कि राजा तेजसिंह की पत्नी जयतल्लदेवी ने श्यामपार्श्वनाथ मन्दिर बनवाया था। इस लेख से मेवाड़ के शासकों की धार्मिक सहिष्णुता की जानकारी मिलती है।
अचलेश्वर का लेख (1285 ई.) -RAJASTHAN KE PRAMUKH ABHILEKH
- यह लेख आबू के अचलेश्वर मन्दिर के पास मठ के एक चौपाल की दीवार में लगा हुआ है।
- शुभचन्द्र इस लेख का लेखक व कर्मसिंह उत्कीर्णक था।
- इस लेख में नागदा में हारित ऋषि की तपस्या एवं उनकी कृपा से बापा को राजत्व की प्राप्ति तथा बापा से लेकर समरसिंह तक की वंशावली मिलती है।
- गंभीरी नदी के पुल का शिलालेख – यह लेख मेवाड़ के शासक समरसिंह के समय का है जिसे सम्भवतः अलाउद्दीन खिलजी ने इस के निर्माण के दौरान इसमें लगवा दिया।
- इस लेख से समरसिंह द्वारा भूमि दान देने की जानकारी मिलती है।
शृंगी ऋषि का लेख (1428 ई.) –
- राणा मोकल के समय का यह लेख एकलिंगजी (उदयपुर) के समीप श्रृंगी ऋषि नामक स्थान से प्राप्त हुआ है।
- इसके रचयिता कविराज वाणीविलास योगेश्वर और उत्कीर्णक पन्ना थे।
- इस लेख से राणा हम्मीर की उपलब्धियों और भीलों की सामाजिक स्थिति का पता चलता है।
- इस लेख में राणा लाखा के बारे में कहा गया है कि उसने काशी, प्रयाग और गया (त्रिस्थली) में हिन्दुओं से लिए जाने वाले कर को हटवाया तथा गया में मन्दिर बनवाये।
देलवाड़ा का लेख (1434 ई.) –RAJASTHAN KE PRAMUKH ABHILEKH
देलवाड़ा से प्राप्त इस लेख से टंक नाम की मुद्रा के प्रचलन की जानकारी मिलती है। यह लेख संस्कृत और मेवाड़ी भाषा में है।
रणकपुर प्रशस्ति (1439 ई.) –
- कुम्भाकालीन यह प्रशस्ति रणकपुर के चौमुखा जैन मन्दिर से मिली है।
- इसकी भाषा संस्कृत तथा लिपि नागरी है।
- यह लेख मेवाड़ के गुहिल वंश के वंशक्रम की जानकारी का महत्वपूर्ण स्रोत है।
- इसमें बापा तथा कालभोज को अलग-अलग व्यक्ति माना है तथा बापा को गुहिल का पिता बताया है।
कुम्भलगढ़ का शिलालेख (1460 ई.) –
कुम्भा की विजयों का विस्तृत वर्णन इस लेख में दिया गया है। डॉ. ओझा के अनुसार इस लेख का रचयिता महेष था।
RAJASTHAN KE PRAMUKH ABHILEKH कीर्तिस्तंभ प्रशस्ति (1460 ई.) –
चित्तौड़ के किले में कीर्तिस्तम्भ (विजयस्तम्भ) की नौवीं अर्थात् अन्तिम मंजिल पर यह प्रशस्ति उत्कीर्ण है। इस प्रशस्ति के रचयिता कवि अत्रि और महेष थे। इस लेख में कुम्भा की उपलब्धियों और उसके व्यक्तिगत गुणों, उपाधियों, संगीत ग्रन्थों आदि की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।
एकलिंग जी के मंदिर की रायमल की प्रशस्ति (1488 ई.) –
- महाराणा रायमल ने एकलिंग जी के मंदिर के जीर्णोद्धार के समय इस प्रशस्ति को उत्कीर्ण करवाया था।
- यह प्रशस्ति एकलिंगजी के मंदिर के दक्षिणी द्वार के ताक में लगी हुई है।
- लेख नागरी लिपि में है और भाषा संस्कृत है। इसमें कुल 101 श्लोक हैं।
- इसे सूत्रधार अर्जुन ने उत्कीर्ण किया था।
- अर्जुन की देखरेख में ही एकलिंगजी के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था।
- इस प्रशस्ति-लेख में हम्मीर से रायमल तक मेवाड़ के महाराणाओं की प्रमुख उपलब्धियों, DAN , NIRMAN , विद्योन्नति व JANTA KE NAITEEK JIVEEN सहित तात्कालीन मेदपाट (मेवाड़) OR चित्तौड़ (चित्रकूट) KI PARMUKH विशेषताओं KA वर्णन DIYA GYA HAI, JO MEWAD KE राजनीतिक व सांस्कृतिक इतिहास की जानकारी हेतु महत्त्वपूर्ण है।
बीकानेर की रायसिंह प्रशस्ति ( 1593 ई.) –
- बीकानेर के दुर्ग के सूरजपोल के पार्श्व में लगी यह प्रशस्ति महाराजा रायसिंह के समय की है।
- इसकी भाषा संस्कृत है।
- इसमें बीकानेर के दुर्ग के निर्माण की जानकारी मिलती है।
- इस प्रशस्ति में राव बीका से रायसिंह तक के बीकानेर के शासकों की उपलब्धियों का ज्ञान होता है।
- इस प्रशस्ति KA रचयिता JETA नाम का EK JAIN मुनि THA ।
आमेर का लेख (1612 ई.)-
- यह लेख राजा मानसिंह के समय का है जिसमें कच्छवाहा वंश को ‘रघुवंशतिलक’ कहा गया है तथा इसमें पृथ्वीराज, उसके पुत्र भारमल, उसके पुत्र भगवंतदास और उसके पुत्र महाराजाधिराज मानसिंह के नाम क्रम से प्राप्त होते हैं।
- इसमें जहाँगीर के राज्य की दुहाई दी गई है, जिससे आमेर और मुगलों के संबंधों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
- इस लेख में मानसिंह द्वारा जमवारामगढ़ के दुर्ग के निर्माण का भी उल्लेख किया गया है।
मांडल की जगन्नाथ कच्छवाहा की छतरी का लेख (1613 ई.)-
मांडल (भीलवाड़ा) में जगन्नाथ कच्छवाहा की बत्तीस खम्भों की छतरी स्थित है जिसे सिंहेश्वरी महादेव का मन्दिर भी कहते हैं। इसमें उल्लेख है कि मेवाड़ अभियान से लौटते समय जगन्नाथ कच्छवाहा का देहान्त मांडल में हुआ था, जिसके स्मारक के रूप में यह छतरी बनाई गई।
जगन्नाथ राय प्रशस्ति (1652 ई.) –
- यह प्रशस्ति उदयपुर के जगन्नाथ राय मन्दिर के सभामण्डप पर लगी हुई है।
- इस मन्दिर का निर्माण मेवाड़ महाराणा जगतसिंह प्रथम ने करवाया था।
- इसमें बापा से लेकर सांगा तक मेवाड़ के शासकों की उपलब्धियों का वर्णन है।
- इसमें हल्दीघाटी के युद्ध का भी वर्णन मिलता है।
त्रिमुखी बावड़ी का लेख (1675 ई.) –
- यह प्रशस्ति देबारी के पास त्रिमुखी बावड़ी में लगी हुई है।
- इसमें राजसिंह के समय सर्वऋतु विलास नाम के बाग बनाये जाने,
- MALPURA KI VIJAY OR LOOT, चारुमति KA VIVAH, DUNGARPUR KI VIJAY आदि KA उल्लेख MILTA HAI।
RAJASTHAN KE PRAMUKH ABHILEKH राजप्रशस्ति (1676 ई.) –
- मेवाड़ के महाराणा राजसिंह (1652- 80 ई.) ने अकाल के समय प्रजा को राहत पहुँचाने के लिए राजसमन्द नामक विशाल झील का निर्माण करवाया था।
- इस झील की पाल पर 25 पाषाण पट्टिकाओं पर यह प्रशस्ति उत्कीर्ण है।
- संस्कृत पद्य भाषा में लिखी इस प्रशस्ति का रचयिता रणछोड़ भट्ट था।
- राजप्रशस्ति को भारत का सबसे बड़ा शिलालेख माना जाता है।
- इस प्रशस्ति में मेवाड़ का विस्तृत व क्रमबद्ध इतिहास लिखा गया है।
- यह प्रशस्ति 17वीं शताब्दी के मेवाड़ की SAMAJIK, सांस्कृतिक, राजनीतिक, DHARMIK, तकनीकी OR AARTHIK स्थिति KE BARE ME पर्याप्त JANKARI PRDAN KARTI HAI
RAJASTHAN KE PRAMUKH ABHILEKH FAQs ?
प्रश्न – कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति के रचयिता कौन थे ?
उत्तर कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति के रचयिता कवि अत्रि और महेष थे ।
प्रश्न – बिजौलिया शिलालेख का समय और कहा उत्कीर्ण है ?
उत्तर समय 1170 ई. यह शिलालेख बिजौलिया के पार्श्वनाथ मन्दिर के समीप एक चट्टान पर उत्कीर्ण है।
प्रश्न – भारत का सबसे बड़ा शिलालेख माना जाता है ?
उत्तर – राजप्रशस्ति को भारत का सबसे बड़ा शिलालेख माना जाता है।
प्रश्न – जगन्नाथ कच्छवाहा की बत्तीस खम्भों की छतरी कहा स्थित है ?
उत्तर – मांडल (भीलवाड़ा) में जगन्नाथ कच्छवाहा की बत्तीस खम्भों की छतरी स्थित है।
प्रश्न – कच्छवाहा वंश को ‘रघुवंशतिलक’ कहा गया है ?
उत्तर – आमेर के लेख में।
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