Rajasthan ke Pramukh Rajvansh | राजस्थान के प्रमुख राजवंश
राजपूत राजवंश –
राजपूतों की उत्पत्ति – Rajasthan ke Pramukh Rajvansh
Rajasthan ke Pramukh Rajvansh – ‘राजपूत’ शब्द संस्कृत के ‘राजपुत्र’ का अपभ्रंश है। चाणक्य के अर्थशास्त्र, कालिदास के नाटकों व बाणभट्ट के हर्षचरित में राजपूत शब्द का प्रयोग मिलता है।
मुस्लिम आक्रमण के पूर्व यहाँ के सभी शासक क्षत्रिय कहलाते थे। अतः जाति के रूप में राजपूत शब्द का प्रयोग मुसलमानों के आक्रमण के बाद होने लगा।
राजपूतों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में इतिहासकार एकमत नहीं हैं। इस सम्बन्ध में प्रमुख मत इस प्रकार हैं-
अग्निकुण्ड से उत्पत्ति-Rajasthan ke Pramukh Rajvansh
राजपूतों की अग्निकुण्ड से उत्पत्ति सम्बन्धी मत का प्रतिपादन सर्वप्रथम कवि चन्दरबरदाई ने अपने ग्रन्थ ‘पृथ्वीराजरासो’ में किया है। पृथ्वीराजरासो के अनुसार राजपूतों के चार वंश-प्रतिहार, परमार, चालुक्य और चौहान ऋषि वशिष्ठ ने आबू पर्वत पर यज्ञकुण्ड से उत्पन्न किये थे। कर्नल टॉड और विलियम क्रुक ने इस मत का प्रयोग राजपूतों की विदेशी उत्पत्ति के सम्बन्ध में किया है कि यज्ञ द्वारा इनको शुद्ध करके भारतीय समाज में मिलाया गया।
सूर्य व चन्द्रवंशीय उत्पत्ति –
डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने राजपूतों को सूर्यवंशीय और चन्द्रवंशीय बताया है। डॉ. ओझा के अनुसार राजपूत प्राचीन क्षत्रियों के ही वंशधर हैं। सी. वी. वैद्य ने भी इस मत का समर्थन किया है।
विदेशी उत्पत्ति का मत-
राजपूतों की विदेशी उत्पत्ति के मत का प्रतिपादन सर्वप्रथम कर्नल जेम्स टॉड ने किया था। कर्नल टॉड ने राजपूतों को शक और सीथियन जाति का वंशज माना है। टॉड ने शकों और राजपूत जाति के रीति-रिवाजों में साम्यता के आधार पर इस मत का प्रतिपादन किया। टॉड के मत का समर्थन उनके जीवनीकार क्रुक ने भी किया है।
वी.ए. स्मिथ भी राजपूतों को विदेशियों की संतान मानते हैं। उनके अनुसार शक और यूची की भाँति गुर्जर और हूण जातियाँ हिन्दू धर्म में मिलकर हिन्दू बन गयी। इन्हीं से अनेक राजपूत वंशों का उदय हुआ था।
गुर्जरों से उत्पत्ति – Rajasthan ke Pramukh Rajvansh
डॉ. भण्डारकर ने राजपूतों को गुर्जर जाति का वंशज माना है। उनके अनुसार गुर्जरों का हूणों से निकट सम्बन्ध था और ये दोनों जातियाँ विदेशी थी।
ब्राह्मणों से उत्पत्ति-
डॉ. भण्डारकर ने कुछ राजपूत वंशों को ब्राह्मणों से उत्पन्न माना है। उनके अनुसार बिजौलिया शिलालेख और कायम खाँ रासो में चौहानों को ब्राह्मण बताया है, इसी प्रकार गुहिल राजपूतों की उत्पत्ति नागर ब्राह्मणों से हुई थी।
(I) गुर्जर प्रतिहार वंश
डॉ. गोपीनाथ शर्मा के अनुसार छठी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मारवाड़ में प्रतिहार राजवंश का अधिवासन हो चुका था। इस प्रकार यह राजस्थान का प्राचीनतम ज्ञात राजपूत राजवंश माना जाता है।
चूँकि उस समय राजस्थान नाम के राज्य या प्रान्त की कोई इकाई नहीं थी, राजस्थान का यह भाग गुर्जरात्रा कहलाता था, इसलिए इनको गुर्जर-प्रतिहार कहते हैं।
मिस्टर जैक्सन और डॉ. भण्डारकर ने इन्हें विदेशी माना है जबकि डॉ. ओझा के अनुसार गुर्जर प्रतिहार वैदिक क्षत्रियों के वंशज थे। नैणसी ने प्रतिहारों की 26 शाखाओं का वर्णन किया है। इनमें मण्डौर, जालौर, राजोगढ़ (अलवर), उज्जैन, कन्नौज, भड़ौच के प्रतिहार प्रमुख हैं।
मण्डौर के प्रतिहार – Rajasthan ke Pramukh Rajvansh
हरिश्चन्द्र- मण्डौर के गुर्जर प्रतिहार राजवंश का संस्थापक हरिश्चन्द्र को माना जाता है जिसे रोहिलद्धि भी कहते थे। यह प्रतिहारों का गुरु भी था। हरिश्चन्द्र की क्षत्रिय पत्नी भद्रा से चार पुत्र हुए जो भोगभट्ट, कदक, रजिल और दह नाम से प्रसिद्ध हुए। इन चारों ने मिलकर माण्डव्यपुर (मण्डौर) को जीता।
रज्जिल – हरिश्चन्द्र का तीसरा पुत्र रज्जिल मण्डौर के प्रतिहारों का दूसरा शासक था।
नागभट्ट प्रथम – यह मण्डौर के प्रतिहारों का प्रथम प्रतापी शासक माना जाता है। प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से इसने मेड़ता को अपनी राजधानी बनाया।
शीलुक – इस वंश के दसवें शासक शीलुक ने वल्ल देश में अपनी सीमाओं का विस्तार किया तथा वल्ल मण्डल के शासक भाटी देवराज को पराजित किया।
कक्क – इसने त्रिपक्षीय संघर्ष में गौड़ों के विरुद्ध युद्ध किया था। यह स्वयं व्याकरण, ज्योतिष, तर्क और विविध भाषाओं का जाता और निपुण कवि था।
बाउक – बाठक ने 837 में एक प्रशस्ति में अपने वंश का वर्णन करवाकर उसे मण्डौर के एक विष्णु मन्दिर में लगवाया था। कालान्तर में इस प्रशस्ति को जोधपुर शहर के कोट में लगा दिया
कक्कुक – कक्कुक ने 861 ई. में दो शिलालेख उत्कीर्ण करवाये जो घटियाले के लेख के नाम से जाने जाते हैं। इन शिलालेखों में से एक शिलालेख का अन्तिम श्लोक स्वयं कक्कुक ने रचा था जिससे उसकी विद्वता प्रमाणित होती है।
कक्कुक के पश्चात् मण्डौर के प्रतिहारों का शृंखलाबद्ध इतिहास नहीं मिलता। इस समय में ऐसा प्रतीत होता है कि मण्डौर से सम्बन्धित प्रतिहार वंश छोटे- मोटे सामन्तों के रूप में जोधपुर के आस पास रहने लगे।
जालौर के प्रतिहार – Rajasthan ke Pramukh Rajvansh
इस शाखा के प्रतिहारों का भी उद्भव मण्डौर से ही प्रतीत होता है। इस वंश का संस्थापक नागभट्ट प्रथम को माना जाता है। डॉ. ओझा के अनुसार इन प्रतिहारों ने सर्वप्रथम चावड़ों से भीनमाल का राज्य छीना, तदन्तर आवृ, जालौर आदि स्थानों पर उनका अधिकार रहा और फिर उज्जैन उनकी राजधानी रही। त्रिपक्षीय संघर्ष में विजय के बाद इन्होंने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया।
नागभट्ट प्रथम (730-756 ई.)-
नागभट्ट प्रथम को अरब आक्रमणकारियों का सफलतापूर्वक सामना करने का श्रेय दिया जाता है। नागभट्ट प्रथम के बाद कक्कुक और देवराज ने जालौर पर शासन किया। इन दोनों का शासन 756 ई. से 775 ई. माना जाता है।
वत्सराज (775-800 ई.)-
वत्सराज गुर्जर-प्रतिहार वंश का प्रथम शासक था जिसने त्रिपक्षीय 4 संघर्ष में भाग लिया। उसने पाल शासक धर्मपाल को पराजित किया। ओसियां के प्रसिद्ध महावीर मन्दिर का निर्माण प्रतिहार शासक वत्सराज के शासनकाल में हुआ था।
जालौर में उद्योतनसुरि द्वारा कुवलयमाला तथा जैन आचार्य जिनसेन द्वारा हरिवंशपुराण की रचना वत्सराज के समय हुई थी।
नागभट्ट द्वितीय (800-833 ई.)-
मिहिरभोज की ग्वालियर प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया था। वह भगवती देवी की भक्ति के लिए प्रसिद्ध था।
मिहिरभोज (836-885 ई.)- Rajasthan ke Pramukh Rajvansh
नागभट्ट द्वितीय का उत्तराधिकारी रामभद्र (833-836 ई.) निर्बल शासक था। उसका उत्तराधिकारी मिहिरभोज (भोज प्रथम) प्रतिहार वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक था। उसके बारे में जानकारी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत उसकी ग्वालियर प्रशस्ति है। उसने ‘प्रभास’ और ‘आदिवराह’ की उपाधियाँ धारण की तथा वराह प्रकार की मुद्रा जारी की थी। अरब यात्री सुलेमान के अनुसार आदिवराह इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु था।
महेन्द्रपाल प्रथम (885-910 ई.)-
महेन्द्रपाल के गुरु राजशेखर ने काव्यमीमांसा, कर्पूरमंजरी, विद्वशालभंजिका, बालरामायण आदि ग्रन्थों की रचना की थी। महेन्द्रपाल के उत्तराधिकारी महीपाल के समय बगदाद निवासी अलमसूदी ने भारत की यात्रा की थी। इस वंश का अन्तिम शासक यशपाल था जिसे गहड़वाल वंश के संस्थापक चन्द्रदेव ने पराजित कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
(II) चाहमान अथवा चौहान वंश
सांभर के चौहानों की कुलदेवी – शाकम्भरी माता, साँभर
सीकर के चौहानों की कुलदेवी – जीणमाता, सीकर
जालौर के चौहानों की कुलदेवी – आशापुरा माता , नाडोल
उत्पत्ति सम्बन्धी मत –
चन्दबरदाई ने पृथ्वीराज रासो में चौहानों की उत्पत्ति अग्निकुण्ड से मानी है। नैणसी और सूर्यमल्ल मिश्रण ने भी इस मत का समर्थन किया है। कर्नल टॉड ने चौहानों को विदेशी माना है। क्रुक, डॉ. स्मिथ और डॉ. भण्डारकर भी चौहानों को विदेशी जातियों के वंशज मानते हैं।
डॉ. दशरथ शर्मा ने बिजौलिया लेख के आधार पर चौहानों को वत्सगौत्रीय ब्राह्मण माना है। कायमखाँ रासो तथा चन्द्रावती के लेख में भी चौहानों को ब्राह्मणवंशी माना गया है।
चौहानों का मूल स्थान- Rajasthan ke Pramukh Rajvansh
(1) अनन्त प्रदेश सीकर – चौहानों का मूल स्थान हर्षनाथ अभिलेख के अनुसार अनन्त प्रदेश सीकर बताया है।
(2) पुष्कर- हम्मीर महाकाव्य (नयनचन्द्र सुरी) व सुर्जन चरित्र (चन्द्रशेखर) के अनुसार चौहानों का प्रारम्भिक स्थान पुष्कर था।
(3) शाकम्भरी/सांभर – पृथ्वीराज विजय के अनुसार चौहानों का प्रारम्भिक स्थान सपादलक्ष/सांभर था।
राजस्थान की प्रमुख चौहान शाखाएँ
संस्थापक | शाखा | स्थापना |
वासुदेव | सपादलक्ष | 551 ई |
अजयराज | अजमेर के चौहान | 1113 ई. |
लक्ष्मण | नाडौल के चौहान | 960 ई |
कीर्तिपाल | जालौर के चौहान | 1181 |
गोविन्दराज | रणथम्भौर के चौहान | 1194 ई. |
देवीसिंह हाड़ा | हाड़ौती के चौहान | 1241 ई. |
राव लुम्बा | सिरोही के चौहान | 1311 |
साँभर/शाकम्भरी/सपादलक्ष/अजमेर का चौहान वंश
वासुदेव-
- सपादलक्ष के चौहानों का आदिपुरुष वासुदेव था। उसने 551 ई. में चौहान वंश की स्थापना की।
- बिजौलिया शिलालेख के अनुसार साँभर झील का निर्माण वासुदेव द्वारा ही करवाया गया था।
गूवक प्रथम – Rajasthan ke Pramukh Rajvansh
गूवक प्रथम प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय का सामन्त था। इसने सीकर के हर्षनाथ मन्दिर का निर्माण करवाया था। हर्षनाथ चौहानों के इष्टदेव माने जाते हैं।
चन्दनराज –
इसने दिल्ली के तोमर शासक को पराजित किया था। चन्दनराज की पत्नी रुद्राणी (आत्मप्रभा) प्रतिदिन पुष्कर में एक हजार दीपक अपने इष्टदेव महादेव के सम्मुख जलाती थी।
सिंहराज – Rajasthan ke Pramukh Rajvansh
चौहान प्रारम्भ में प्रतिहारों की अधीनता स्वीकार करते थे। सिंहराज को प्रथम स्वतंत्र चौहान शासक माना जाता है।
विग्रहराज द्वितीय-
विग्रहराज द्वितीय- इसके समय का हर्षनाथ लेख जानकारी का महत्वपूर्ण स्रोत है। विग्रहराज द्वितीय ने चालुक्य शासक मूलराज प्रथम को पराजित किया था विग्रहराज द्वितीय ने भड़ौच में अपनी कुलदेवी आशापुरी माता के मन्दिर का निर्माण करवाया था।
दुर्लभराज द्वितीय-
इसने नाडौल के महेन्द्र चौहान को पराजित किया। इसे ‘दुर्लघ्यमेरु’ (जिसकी आज्ञा का कोई उल्लंघन नहीं कर सके) भी कहा जाता है।
पृथ्वीराज प्रथम- Rajasthan ke Pramukh Rajvansh
माना जाता है कि इसने पुष्कर में 700 चालुक्यों की हत्या करवा दी थी।
अजयराज ( 1113-1133 ) – Rajasthan ke Pramukh Rajvansh
अजयराज ने 1113 ई. में अजमेर नगर की स्थापना कर इसे राजधानी बनाया। उसने चाँदी और ताँबे के सिक्के जारी किये थे। कुछ सिक्कों पर उसकी रानी सोमलवती का भी नाम मिलता है। अजयराज ने प्रशासन अपने पुत्र अर्णोराज को सौंपकर सन्यास ग्रहण कर लिया था। अजयराज ने तुर्क शासक शहाबुद्दीन को हराया व अहिलपाटन मूलराज को हराया व मालवा को नरवर्मन को हराया। इसके समय श्वेताम्बर व दिगम्बर में शास्त्रार्थ हुआ जिसकी अध्यक्षताअजयराज ने की। अजयराज ने 1113 में अजयमेरू दुर्ग बनवाकर अजमेर बसाया।
अजयराज का समय चौहानों के साम्राज्य विस्तार का समय माना जाता
नगर | स्थापना वर्ष |
अजमेर नगर | 1113 ई. में बसा |
उदयपुर | 1559 ई. |
जोधपुर | 1459 ई. |
बीकानेर | 1488 ई. |
किशनगढ़ | 1609 ई. |
झालावाड़ | 1838 ई. |
जैसलमेर | 1155 ई. |
जयपुर | 1727 ई. |
अर्णोराज (आनाजी ) – (1133 – 1150) –
इसका क्षेत्र सिन्धु व सरस्वती नदी तक फैला था। अर्णोराज ने पुष्कर में वराह मन्दिर बनाया। इसका जिर्णोद्धार मेवाड़
के समर सिंह ने करवाया। वराह की मूर्ती को जहाँगीर ने पानी में फिंकवा दी थी।
इसके समय चौहान-चालुक्य संघर्ष ने गंभीर रूप ले लिया, इस क्रम में चालुक्य शासक कुमारपाल ने आबू के निकट युद्ध में अर्णोराज को पराजित किया था।
- आनासागर झील – आनाजी ने 1137 ई में तुकों से रक्तरंजित धरती को साफ करके नागपहाड़ व तारागढ़ मध्य चन्द्रा व लूणी पर झील बनवायी।
- झील पर जहाँगीर ने शाहीबाग/दौलतबाग/सुभाष बाग बनवाया, नूरजहाँ की माँ अस्मत बेगम ने यहाँ इत्र का आविष्कार किया।
- अणराज की हत्या इसके पुत्र जग्गदेव ने कर दी। चौहानों का पितृहन्ता शासक जग्गदेव।
नोट: मेवाड़ का पितृहन्ता उदा मारवाड़ का पितृहन्ता मालदेव है। गुर्जर प्रतिहारों का पितृहन्ता मिहिर भोज है।
विग्रहराज चतुर्थ ‘बीसलदेव’ (1153-1163 ई.) –
- उपनाम – कविबान्धव / कटिबांधव ( जयानक ने कहा )
- इसका समय चौहानों का स्वर्ण काल कहा जाता है। विग्रह राज के समय भारत की राजधानी अजमेर थी।
- शिवालिक स्तम्भ लेख – विग्रहराज ने दिल्ली में लिखवाया, इसमें विग्रहराज को विष्णु का अवतार कहा गया।
हरिकेली नाटक –
संस्कृत भाषा में विग्रहराज ने लिखा। इसकी कुछ पक्तियाँ ब्रिस्टल (इंग्लैण्ड) के राजाराम मोहन राय स्मारक में लिखी है व कुछ पक्तियाँ 2½ दिन झोपड़े की सीढ़ियों पर लिखी। हरकेली नाटक में किरात (शिकारी) शिव व अर्जुन के मध्य संवाद है। धर्मघोष के कहने पर विग्रहराज ने पशु हत्या पर रोक लगाई।
संस्कृत पाठशाला अजमेर –
विग्रहराज ने संस्कृत पाठशाला व सरस्वती मन्दिर बनवाया। 1194 ई. में कुतुबद्दीन ऐबक ने इसे तोड़कर एक मस्जिद बनवाई इसकी डिजाइन अबु बकर ने तैयार की। पर्सी ब्राउन के अनुसार यहाँ पंजाब शाह पीर का 2½ दिन का उर्स लगता है इस कारण इसे 2½ दिन का झोपड़ा भी कहते हैं। किलहान ने कहा कि विग्रहराज कालीदास व भवभुती की होड करता है।
विग्रहराज गन्ध-
- ललित विग्रहराज – सोमदेव (इस ग्रन्थ में विग्रहराज व इन्द्रपुरी की राजकुमारी देसलदेवी के मध्य प्रेम सम्बन्धों का वर्णन है।)
- बिसलदेव रासौ- नरपती नाल्ह (परमार राजा भोज की पुत्री राजमती व विसलदेव के मध्य प्रेम सम्बन्धों का वर्णन है।) इसके चार भाग है इसमें विग्रहराज की उड़ीसा विजय का भी जिक्र है।
सोमेश्वर- इसका विवाह अनंगपाल तोमर की पुत्री कर्पूरी देवी से हुआ जिससे हरिराज व पृथ्वीराज नामक 2 पुत्र हुए।
पृथ्वीराज III (1177 – 92) –
- जन्म 1166 अहिलपाटन, गुजरात अन्तिम हिन्दू सम्राट
उपनाम
1. दलपुंगल (विश्व विजेता) दलथम्बन उपाधि गजसिंह की है।
2. रायपिथौरा
3. अन्तिम हिन्दू सम्राट
नोट – प्रबल हिन्दू राजा – राणा हम्मीर
हिन्दू सुरताण – कुम्भा
हिन्दू पति/पंथ – सांगा
हिन्दु बादशाह – मालदेव
Note:- भारत की गद्दी पर बैठने वाला अन्तिम हेमू था। हेमू विक्रमादित्य उपाधि धारण करने वाला 14वाँ व अन्तिम शासक था।
नागार्जुन दमन- 1178 ई-
पृथ्वीराज का प्रारम्भिक सहयोगी मुख्यमंत्री कदम्बदास वा भुवनमल थे। इन्होंने पृथ्वीराज की वैसे ही सहायता की थी जैसे नागपाश से गरूड़ ने राम व लक्ष्मण की, की थी। पृथ्वीराज ने चचेरे भाई नागार्जुन व अपारगम्य का दमन किया।
भण्डानको का दमन 1182 – भण्डानक सतलज प्रदेश से आयी जाति थी जिनका दमन पृथ्वीराज ने किया।
पृथ्वीराज दिग्विजय नीति
महोबा विजय/तुमुल का युद्ध – 1182- पृथ्वीराज v/s महोबा शासक परमवदेव चन्देल। परमवदेव चन्देल को हराया व इस युद्ध में उसके सेनापती आल्हा व उदल मारे गये। पृथ्वीराज ने महोबा पन्जुराय को सौंपा।
नागौर का युद्ध 1184
- पृथ्वीराज व गुजरात चालुक्य शासक भीमदेव II के मध्य सन्धि हो गयी।
- पृथ्वीराज रासौ में पृथ्वीराज व भीमदेव II के मध्य विवाद का कारण आबु की राजकुमारी इच्छिनी को बताया है।
पृथ्वीराज व मोहम्मद गौरी
- तराइन का प्रथम युद्ध 1191 – हरियाणा me पृथ्वीराज III v/s गौरी (पृथ्वीराज की विजय हुई) इस युद्ध में पृथ्वीराज के साथ दिल्ली से गोविन्दराय व पृथ्वीराज सेनापति खाण्डेराव था। पृथ्वीराज ने कन्नौज शासक जयचन्द गहडवाल की पुत्री संयोगिता से विवाह कर लिया था।
- तराईन का द्वितीय युद्ध 1192 हरियाणा गौरी 1 लाख 20 हजार सेना लेकर रवाना हुआ। लाहौर से साम उल दूत भेजा। दूसरा दूत रूकनुद्दीन हम्जा भेजा।
पृथ्वीराज का सेनापती उदयराज समय पर रवाना नहीं हो पाया। पृथ्वीराज का सेनापती सोमेश्वर व प्रतापसिंह मो. गौरी से मील गये। इस युद्ध में पृथ्वीराज के साथ जालौर से समरसिंह व मेवाड़ से सामन्त सिंह व दिल्ली से गोविन्द राय था।
- पृथ्वीराज के घोड़े का नाम नाट्यरम्भा था। पृथ्वीराज III की छतरी गजनी में व स्मारक अजमेर में है।
- पृथ्वीराज रासौ के अनुसार पृथ्वीराज व गौरी के मध्य 21 युद्ध हुए। हम्मीर महाकाव्य के अनुसार 7 युद्ध हुए। सुर्जन चरित्र अनुसार 21 युद्ध हुए।
- पृथ्वीराज ने दिल्ली में रायपिथौरागढ़ नामक नगर बसाया।
- पृथ्वीराज दरबार ने जनार्दन, विश्वरूप, वागीश्वर, विद्यापती, चन्द्रवरदायी नामक विद्वान थे।
- पृथ्वीराज ने कला व साहित्य विभाग की स्थापना की जिसका अध्यक्ष पद्मनाभ को बनाया।
- Dashrat Sharma NE पृथ्वीराज KO सुयोग्य VA रहस्यमयी शासक KAHA HAI ।
ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती
- पृथ्वीराज के समय मोहम्मद गौरी के साथ भारत आये।
- जन्म – 1143 सजरी (फारस ईरान)
- वफात/मृत्यु – 1235 अजमेर
- ख्वाजा को गरीब नवाज व सुल्तान-अल-हिन्द भी कहा जाता है।
- अजमेर दरगाह की गुम्बद ग्यासुद्दीन ने बनवायी।
- दरगाह की शुरूआत इल्तुतमीश ने की व निर्माण पूर्ण हुमायूँ ने करवाया।
- यहाँ बड़ी देग (कढ़ाई) अकबर ने व छोटी देग जहाँगीर ने भेंट की।
ख्वाजा का 1-6 रज्जब उर्स लगता है जिसका उद्घाटन भीलवाड़ा गौरी परिवार करता है।
चिश्ती सम्प्रदाय शब्दावली
- गुरू को पीर कहते है।
- शिष्य को मुरीद कहते है।
- उत्तराधिकारी को वली कहते है।
- चिश्ती सम्प्रदाय के लोग जहाँ बैठते है उसे खानखाह कहते है।
- तीर्थयात्रा को जियारत कहते है।
- तीर्थ यात्रियों को जायरीन कहते हैं।
Note:
हजरत शेख हुस्मानी हारूनी
↓ शिष्य
ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती
↓शिष्य
कुतुबुद्दीन बख्तयार काकी
↓ शिष्य
बाबा फरीद
↓ शिष्य
निजामुद्दीन औलीया
↓ शिष्य
अमीर खुसरो
Rajasthan ke Pramukh Rajvansh FAQs ?
प्रश्न – सुयोग्य व रहश्यमय शासक किसने और किसके लिए कहा है ?
उत्तर डॉ दसरथ शर्मा ने पृथ्वीराज को।
प्रश्न – तराइन का प्रथम युद्ध कब और कहा हुआ ?
उत्तर तराइन का प्रथम युद्ध 1191 और हरियाणा में।
प्रश्न – कविबान्धव / कटिबांधव ( जयानक ने कहा ) किसके लिए कहा ?
उत्तर – विग्रहराज चतुर्थ ‘बीसलदेव’ के लिए।
प्रश्न – आनासागर झील का निर्माण किसने और कब किया ?
उत्तर आनाजी ने 1137 ई में
प्रश्न – जैसलमेर नगर कब बसाया गया ?
उत्तर 1155 ई.
Read More ….BALIKA DURASTH SHIKSHA YOJANA | बालिका दूरस्थ शिक्षा योजना
3 thoughts on “Rajasthan ke Pramukh Rajvansh | राजस्थान के प्रमुख राजवंश”