RAJASTHAN KI MITTIYA | राजस्थान की मिट्टिया –
RAJASTHAN KI MITTIYA असंगठित पदार्थो की वह ऊपरी परत जो की मूल चट्टानों या वनस्पति के योग से निर्मित होती है, मृदा कहलाती है। मृदा का अध्यन विज्ञानं की जिस शाखा में किया जाता है उसे पेडोलोजी कहा जाता है। अगर आप राजस्थान की मिट्टियो को लेकर जानकारी प्राप्त करना चाहते है तो RAJASTHAN KI MITTIYA और उनके वर्गीकरण या उनमे होने वाले मृदा अपरदन व उपचार से जुडी हुई पूरी जानकारी साझा करेंगे आर्टिकल पूरा पढ़े ।
RAJASTHAN KI MITTIYA , मृदा की संरचना –
- खनिज पदार्थ – 45
- मृदा जल – 25
- मृदा वायु – 25
- कार्बनिक पदार्थ – 5
विश्व मृदा दिवस 5 दिसम्बर को मनाया जाता है ।
RAJASTHAN KI MITTIYA
व्यर्थ भूमि – देश की कुल व्यर्थ भूमि का 20 प्रतिशत भाग राजस्थान में पाया जाता है, सर्वाधिक व्यर्थ भूमि जैसलमेर में (37.30 प्रतिशत ) भाग है
रेतीली /बलुई मिट्टी | राजस्थान के सबसे अधिक छेत्र ( पश्चिमी राजस्थान ) में इस प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। |
कछारी /जलोढ /दुमट /कांप मिट्टी | यह मिट्टी सबसे उपजाऊ किस्म की होती है। अलवर, भरतपुर, धौलपुर, दौसा, जयपुर, टोंक, गंगानगर तथा हनुमानगढ़ जिलों में पाई जाती है। |
काली/रेगर मिट्टी | कोटा, बूँदी, तथा झालावाड़ जिलों के पठारी छेत्रो में पाई जाती है। इस मिटटी में सिंचाई द्वारा कपास की खेती की जाती है। |
भूरी मिट्टी | अरावली से पूर्वी भाग में बनास व उसकी सहायक नदियों के छेत्र में पाई जाती है। |
सीरोजम मिट्टी | अरावली के पश्चिम में रेत के छोटे टीलों वाले भाग में पाए जाने के कारण यह ‘ धूसर मरुस्थलीय मिट्टी ‘ कहलाती है। |
लवणीय मिट्टी | यह मिट्टी गंगानगर, बीकानेर,हनुमानगढ़,बाड़मेर एवं जालोर जिलों में पाई जाती है। |
पर्वतीय मिट्टी | अजमेर, अलवर,सिरोही, उदयपुर, पाली के पहाड़ी भागों में पाई जाने वाली इस मिट्टी की गहराई बहुत कम होती है। इस मिट्टी में केवल जंगल ही लगाए जा सकते है। |
लवणीयता / क्षारीयता की समस्या -RAJASTHAN KI MITTIYA
पश्चिमी राजस्थान में क्लोराइड आदि लवण मिट्टी के ऊपरी सतह पर परत के रूप में इकट्ठे हो जाते है। ऐसी मिट्टी को ऊसर, नमकीन / रेह मिट्टी भी कहते है मिट्टी में खारापन या क्षारीयता की समस्या समाधान हेतु जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।
राजाड परियोजना -RAJASTHAN KI MITTIYA
चम्बल सिंचित छेत्र में सेम की समस्या को दूर करने के लिए कनाडा के सहयोग से जून 1991 में चलाई गई परियोजना है।
मृदा अपरदन -RAJASTHAN KI MITTIYA
जल वायु द्वारा मृदा की ऊपरी परत का कटकर बह जाना। यह मुख्यत: ढालू, वनस्पति विहीन, व हुमस वाले इलाको में अधिक होता है। पश्चिमी राजस्थान में तेज हवाओं तथा दक्षिणी पूर्वी भागो में सर्वाधिक वर्षा द्वारा मिट्टी का कटाव होता है।
अवनालिका अपरदन /कन्दरा समस्या – भारी वर्षा के कारन जल द्वारा मिट्टी का कटाव जिससे गहरी घाटी तथा नाले बन जाते है। इस समस्या से कोटा ( सर्वाधिक ), बूंदी, धौलपुर, भरतपुर, जयपुर, तथा सवाई माधोपुर जिले ग्रस्त है।
परतदार अपरदन – वायु द्वारा मृदा की ऊपरी परत को उड़ा कर ले जाना ही परतदार अपरदन कहलाता है।
मिट्टी अपरदन – मुख्यत: पशुओं द्वारा अत्यधिक चराई, अवैज्ञानिक ढंग से कृषि, वनों की अंधाधुंद कटाई के कारण होता है।
मिट्टी अपरदन के उपनाम – रेंगती मृत्यु
- मिटटी का क्षय रोग
- मिटटी का प्रथम शत्रु
मृदा परिच्छेदिका
मृदा परिच्छेदिका में क्रमश: 03 मुख्य संस्तर – स्थितियां होती है – वास्तविक मृदा सबसे ऊपर, इसके निचे उपमृदा और सबसे निचे आधारी चट्टान पाई जाती है।
RAJASTHAN KI MITTIYA मिट्टी निर्माण के कारक –
1 आधारी चट्टान / जनक पदार्थ
2 स्थानीय जलवायु
3 जैविक पदार्थ
4 ऊंचाई और उच्चावच अर्थात स्थलाकृति
5 मिटटी के विकास की अवधि
प्रो थॉर्प और स्मिथ ने मृदा की उत्पत्ति के आधार पर वर्गीकरण किया –
1 मरुस्थलीय रेतीली मिटटी / बलुई मिटटी – इसका निर्माण बलुआ पत्थर एवं ग्रेनाइट चट्टानों से हुआ है। इस मृदा के कण सबसे मोटे होते है, जिसमे जल धारण क्षमता सबसे कम पाई जाती है। मरुस्थलीय रेतीली मिटटी / बलुई मिटटी को प्यासी मृदा भी कहा जाता है। मुख्यरूप से यह मृदा जैसलमेर, चूरू, नागौर, जोधपुर आदि छेत्रो में पाई जाती है।
कमी – N & C
अधिकता – Ca
2 लवणीय मिटटी – बाड़मेर, जालौर।
3 भूरी बलुई मिटटी/ धूसर/ सिरोजम/ ग्रे पेंटेड मिटटी।
इसका निर्माण लवणों के जमाव व अधिक सिंचाई से हुआ है। यह मिटटी मुख्य रूप से बांगड़ छेत्र में और जोधपुर, नागौर, जालौर।
कमी – N & C, अधिकता – P
गहराई में चुने की परत पाई जाती है जिसे हार्डपेन कहा जाता है।
4 पर्वतीय मिट्टी – दक्षिण अरावली में पाई जाती है जिसका निर्माण ग्रेनाइट एवं नीस चट्टानों से हुआ है। इस मिटटी को अधूरे निर्माण की मिटटी भी कहा जाता है। मुख्य रूप से उदयपुर , राजसमंद , सिरोही , अजमेर में पाई जाती है।
5 काली मिटटी / रेगुर मिटटी – हाड़ोती छेत्र में पाई जाती है।
- यह मिटटी कपास की खेती के लिए बहोत उपयोगी होती है
-इस मिटटी में पोटाश और केल्सियम की अधिकता होती है। - इसका निर्माण लावा अपरदन द्वारा हुआ है।
- इसमें जलधारण की क्षमता सर्वाधिक होती है।
- इसकी काश बात यह होती है की एक बार सिंचाई करने के बाद लम्बे समय तक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।
6 मिश्रित लाल काली मिटटी –
- यह मिटटी कपास और मक्का के लिए उपयोगी होती है।
- यह मिटटी मालवा पठार काली व दक्षिणी अरावली की लाल मिटटी से बनी है। मुख्य रूप से डूंगरपुर, बांसवाड़ा, राजसमंद, उदयपुर और चितोड़गढ़ में पाई जाती है।
7 लाल लोमी मिटटी – इस मिटटी का निर्माण कायांतरित चट्टानों से हुआ है जो की मुख्य रूप से दक्षिणी राजस्थान में पाई जाती है।
यह मुख्य रूप से मक्के की खेती के लिए उपयोगी होती है।
कमी – ( नाइट्रोजन + केल्सियम +फास्फोरस ) N + Ca +p
8 जलोढ़ / कछारी / कांप /ब्लैक कॉटन सॉयल मिटटी – मुख्य रूप से जयपुर ,अलवर ,अजमेर ,टोंक ,कोटा ,सवाई माधोपुर , धौलपुर , भरतपुर में पाई जाती है।
इसी मिटटी का ही एक प्रकार – भूरी मिटटी ,अलवर ,भरतपुर ,गंगानगर ,हनुमानगढ़ ,बनास बेसिन आदि में पाई जाती है।
RAJASTHAN KI MITTIYA नविन वर्गीकरण
1 एरिडोसोल्स – चूरू, सीकर, झुंझुनू , नागौर , जोधपुर , पाली , ( शुष्क मिटटी ) – शुष्क जलवायु में पाई जाने वाली मृदा।
2 एन्टीसोल्स – (पीली भूरी मिटटी ) सर्वाधिक पश्चिमी राजस्थान में पाई जाती है।
3 एल्फिसोल्स – ( जलोढ़ मिटटी ) – जयपुर ,जोधपुर ,चितौड़ ,करौली ,बांसवाड़ा ,हाड़ौती।
4 इन्सेप्टिसोल्स – (आद्र मिटटी ) – सिरोही , पाली , बांसवाड़ा ,राजसमंद ,उदयपुर ,चितोड़गढ़ आदि।
5 वर्टिसोल्स (काली मिटटी ) – हाड़ौती छेत्र में।
RAJASTHAN KI MITTIYA मृदा अपरदन के प्रकार व उपचार
1 वायु /क्षेतिज/परत अपरदन –
सर्वाधिक – जैसलमेर में
न्यूनतम – धौलपुर में
उपचार – इसके लिए खेजड़ी और बबूल के वृक्ष लगाए जाते है।
2 सेम की समस्या / जलाधिक्ता – IGNP के आस पास का छेत्र।
सर्वाधिक – हनुमानग़ढ – नोहर, रावतसर, बड़ोपल, भगवानदास
इसके उपचार के लिए – सफेदा ( यूकेलिप्टस ) का वृक्ष लगाए जाते है।
नोट – सूखा संभाव्य कार्यक्रम – 1974 – 75
( केंद्र : राज्य का अंश = 75 : 25 )
RAJASTHAN KI MITTIYA मत्वपूर्ण तथ्य
मरू विकास कार्यक्रम – 1977 – 1978 ( केंद्र : राज्य अंश = 75 : 25 )
- भारत की कुल व्यर्थ भूमि का राजस्थान में 20 प्रतिशत भाग पाया जाता है।
- सर्वाधिक कृषि भूमि गंगानगर में स्थित है।
- सर्वाधिक बंजर भूमि – जैसलमेर में स्थित है
- सर्वाधिक परती भूमि – जोधपुर में स्थित है।
- सर्वाधिक व्यर्थ भूमि – राजसमंद में है।
- केंद्रीय भू संरक्षण बोर्ड – जयपुर और सीकर में स्थित है।
- मिटटी परीक्षण प्रयोगशाला – जयपुर और जोधपुर में है।
- मिटटी को pH के आधार पर मापा जाता है। क्षारीय / लवणीय / भूसर मिटटी।
- उपचार – जिप्सम , रॉक फास्फेट
- उदासीन / उपजाऊ मिटटी
- अम्लीय मिटटी उपचार – चुना, फॉस्फोरस
Read More….Rajasthan Ki Shinchai Pariyojanaye | राजस्थान की सिंचाई परियोजनाएं
RAJASTHAN KI MITTIYA FAQs ?
प्रश्न राजस्थान में मृदा परीक्षण प्रयोगशाला कहा स्थित है ?
उत्तर जयपुर और जोधपुर में
प्रश्न एरिडोसोल्स मिट्टी कौनसे छेत्र में पाई जाती है ?
उत्तर चूरू, सीकर, झुंझुनू , नागौर , जोधपुर , पाली , ( शुष्क मिटटी ) – शुष्क जलवायु में पाई जाने वाली मृदा है।
प्रश्न मिट्टी में खारापन या क्षारीयता की समस्या समाधान हेतु किसका प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।
1 thought on “RAJASTHAN KI MITTIYA | राजस्थान की मिट्टिया –”
Comments are closed.