RAJASTHAN KI RIYASATON ME PRCHALIT PRAMUKH SHIKKE | राजस्थान की रियासतों में प्रचलित प्रमुख सिक्के |
RAJASTHAN KI RIYASATON ME PRCHALIT PRAMUKH SHIKKE : राजस्थान के सिक्के
RAJASTHAN KI RIYASATON ME PRCHALIT PRAMUKH SHIKKE -सिक्कों के अध्ययन को न्यूमिसमेटिका (मुद्रा शास्त्र) कहा जाता है। भारत के प्राचीनतम सिक्कों को आहत या पंचमार्क सिक्के कहा जाता है। ये चाँदी के बने हुए थे। आहत सिक्कों को साहित्य में ‘कामार्पण’ कहा गया है। आहत सिक्कों पर कोई लेख व तिथि अंकित नहीं होती थी।
भारत में पहली बार लेख-युक्त (राजा का नाम) सिक्के हिन्द-यवन (इण्डो-ग्रीक) शासकों ने जारी किए थे। भारत में सर्वप्रथम सोने के सिक्के हिन्द-यवन शासकों ने चलाए। बड़े पैमाने पर SONE KE SHIKKE सर्वप्रथम कुषाण शासकों NE JARI KIYE थे ।
रैड (टॉक) से 3075 चांदी की आहत मुद्राएँ मिली हैं। यह भारत में एक ही स्थान से प्राप्त आहत सिक्कों का सबसे बड़ा भण्डार है। इन सिक्कों की धरण या पण कहा गया है।
रैड के अतिरिक्त विराटनगर (जयपुर), आहड, नगर (टोंक), नगरी (चितौड़) और साँभर आदि स्थानों से आहत मुद्राएँ मिली हैं।
मालव गण से सम्बन्धित 6000 ताँबे के सिक्के नगर (टॉक) से प्राप्त हुए हैं जिनकी खोज कार्लाइल ने की थी। ये सिक्के संसार में सबसे छोटे और सबसे कम वजन वाले सिक्के माने जाते हैं।
रंगमहल (हनुमानगढ़) SE 105 ताँबे KE SHIKKE MILE HAI, JINME SE EK सिक्का कुषाण शासक कनिष्कKA HAI ।
बैराठ (जयपुर)– RAJASTHAN KI RIYASATON ME PRCHALIT PRAMUKH SHIKKE
बैराठ (जयपुर) से 36 मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं जिनमें 8 आहत और 28 इण्डो-ग्रीक शासकों की हैं। आहड़ से प्राप्त छ: ताँबे के सिक्कों पर यूनानी देवता अपोलो का चित्र बना हुआ है।
भरतपुर जिले में बयाना के समीप नगलाछैल नामक स्थान से गुप्तकालीन सोने के सिक्कों का ढेर मिला है जिसमें लगभग 1800 सिक्के हैं। इस ढेर में सर्वाधिक सिक्के चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ के हैं। यह गुप्तकालीन सिक्कों का सबसे बड़ा ढेर है। टॉक जिले में रैढ़ से गुप्तकालीन 6 स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं जिनमें से 4 चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ की हैं।
नलियासर (साँभर) से गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम की चाँदी की मुद्राएँ मिली हैं, जिन पर मयूर की आकृति उत्कीर्ण है। हूण शासकों द्वारा मेवाड़ और मारवाड़ में ‘गधिया’ सिक्कों का प्रचलन किया गया था।
रियासतकालीन सिक्के
मेवाड़ राज्य के सिक्के – गुप्तोत्तरकाल में मेवाड़ में ‘गधिया मुद्रा’ का प्रचलन था। मेवाड़ के प्रथम संस्थापक गुहिल ने ताँबे के सिक्के जारी किए थे। ‘गुहिलपति’ लेख वाले सिक्के गुहिल द्वारा चलाना माना जाता है।
बापा का एक स्वर्ण सिक्का प्राप्त हुआ है जिसका वजन 115 ग्रेन है, इस प्रकार बापा मेवाड़ के प्रथम गुहिल शासक थे जिन्होंने स्वर्ण सिक्के जारी किये। राणा कुम्भा ने चाँदी और ताँबे के सिक्के जारी किए थे। मुगल-मेवाड़ संधि (1615 ई.) के साथ मेवाड़ में मुगल सिक्कों का प्रचलन प्रारम्भ हो गया।
मुगल बादशाह मुहम्मदशाह (1719-1748 ई.) ने पुन: मेवाड़ में सिक्के जारी करने की अनुमति दी, परिणामतः चित्तौड़, भीलवाड़ा और उदयपुर में सिक्के ढलने लगे, जिन्हें क्रमशः चित्तौड़ी, भिलाड़ी और उदयपुरी रुपया कहते थे।
महाराणा स्वरूपसिंह (1842-1861 ई.) ने स्वरूपशाही रुपया चलाया। स्वर्ण सिक्का चाँदोड़ी (वजन 116 ग्रेन) भी स्वरूपसिंह ने चलाया था। मेवाड़ में ताँबे के सिक्कों को ढींगला, भिलाड़ी, त्रिशूलिया, भीडरिया, नाथद्वारिया आदि नामों से जाना जाता था।
प्रतापगढ़ राज्य के सिक्के- सर्वप्रथम 1784 ई. में सालिमसिंह ने ‘सालिमशाही’ नामक चाँदी की मुद्रा जारी की। 1818 ई. में अंग्रेजों से सन्धि के बाद परिवर्तित होने पर इसे ‘नया सालिमशाही’ कहा जाने लगा। 1904 में यहाँ कलदार का प्रचलन प्रारम्भ हो गया।
बाँसवाड़ा राज्य के सिक्के– बाँसवाड़ा रियासत में भी ‘सालिमशाही’ सिक्कों का प्रचलन था। 1870 ई. में महारावल लक्ष्मणसिंह ने सोने, चाँदी और ताँबे के सिक्के जारी किए। इन सिक्कों को ‘लक्ष्मणशाही’ कहा जाता था। 1902 ई. यहाँ भी कलदार का प्रचलन प्रारम्भ हो गया।
डूंगरपुर राज्य के सिक्के –
डूंगरपुर राज्य के सिक्के – डूंगरपुर राज्य द्वारा स्वतंत्र रूप से सिक्के जारी नहीं किए गए। यहाँ मेवाड़ के ‘चित्तौड़ी’ और प्रतापगढ़ के ‘सालिमशाही’ रुपयों का प्रचलन था।
जैसलमेर राज्य के सिक्के – मुगलकाल में जैसलमेर में चाँदी का ‘मुहम्मदशाही’ सिक्का चलता था। 1756 ई. में महारावल अखैसिंह ने चाँदी का ‘अखैशाही’ सिक्का जारी किया। जैसलमेर का ताँबे का सिक्का ‘डोडिया’ कहलाता था जिसका वजन 18-20 ग्रेन था।
जोधपुर राज्य के सिक्के – यहाँ भी प्रारम्भ में ‘गधिया मुद्रा’ प्रचलित थी। प्रतिहार शासक भोज (जिसे मिहिरभोज और भोजप्रथम भी कहा जाता है) ने मारवाड़ में ‘आदिवराह’ सिक्के चलाये थे। आदिवराह’ उसकी उपाधि थी।
महाराजा विजयसिंह ने सोने, चाँदी और ताँबे के सिक्के जारी किए थे, जिन्हें ‘विजयशाही’ कहा जाता है। 1900 ई. में मारवाड़ में कलदार का प्रचलन हो गया।
बीकानेर राज्य के सिक्के – बीकानेर में सम्भवतः 1759 ई. में सिक्के ढलने लगे। बीकानेर के शासकों ने सिक्कों पर अपने विशेष टकसाल की स्थापना हुई और मुगल सम्राट शाहआलम के नाम के चिन्ह भी अंकित करवाये, जैसे-गजसिंह का चिन्ह ‘ध्वज’, सूरतसिंह का चिन्ह, ‘त्रिशूल’, रतनसिंह का ‘नक्षत्र’, सरदारसिंह का ‘छत्र’ तथा डूंगरसिंह का चिन्ह ‘चँवर’ था। बीकानेर रियासत में प्रचलित सिक्कों में ‘आलमशाही’ और ‘गजशाही’ सिक्के प्रमुख थे।
किशनगढ़ राज्य के सिक्के- किशनगढ़ राज्य में भी शाहआलम के नाम का सिक्का जारी किया गया था। यहाँ 166 ग्रेन का ‘चाँदोडी’ नाम का रुपया, मेवाड़ की राजकुमारी चाँदकुँवरी के नाम पर चलाया गया था।
धौलपुर राज्य के सिक्के – धौलपुर में 1804 ई. में टकसाल की स्थापना हुई। यहाँ के सिक्के ‘तमंचाशाही’ कहलाते थे क्योंकि उन पर तमंचे का चिन्ह लगाया जाता था।
जयपुर राज्य के सिक्के –
जयपुर राज्य की मुद्रा को ‘झाड़शाही’ कहते थे, क्योंकि उस पर 6 टहनियों के झाड़ का चिन्ह बना रहता था। महाराजा माधोसिंह और रामसिंह ने स्वर्ण सिक्के चलाये। माधोसिंह के रुपये को ‘हाली’ कहा जाता था। जयपुर में ताँबे के सिक्के का प्रचलन 1760 ई. से माना जाता है इसे ‘झाड़शाही पैसा’ कहते थे जिसका वजन 262 ग्रेन था।
अलवर राज्य के सिक्के – अलवर राज्य की टकसाल राजगढ़ में थी। यहाँ 1772 ई. से 1876 ई. तक बनने वाले सिक्के ‘रावशाही रुपया’ कहलाते थे जिसका वजन 173 ग्रेन था। अलवर रियासत के ताँबे के सिक्के ‘रावशाही टक्का’ कहलाते थे।
भरतपुर राज्य के सिक्के – 1763 ई. में सूरजमल ने बादशाह शाहआलम के नाम के चाँदी के सिक्के जारी किए थे। ताँबे के सिक्कों का प्रचलन 1763 से 1891 ई. तक रहा। भरतपुर राज्य में दो टकसालें थी – डीग और भरतपुर ।
शाहपुरा राज्य के सिक्के – यहाँ मेवाड़ के ‘चित्तौड़ी’ और ‘भिलाड़ी’ सिक्कों का प्रचलन था। 1760 ई. में शाहपुरा के शासक ने सिक्का चलाया जिसे ‘ग्यारसंदिया’ कहते थे।
बूँदी राज्य के सिक्के–
बूँदी राज्य के सिक्के – बूँदी राज्य में 1759 से 1859 ई. तक ‘पुराना रुपया’ प्रचलित था। अकबर द्वितीय (1806-1837 ई.) के ग्यारहवें वर्ष ‘ग्यारह- सना’ (186 ग्रेन) सिक्का जारी किया गया था। 1859 से 1866 ई. के मध्य ‘रामशाही रुपया’ प्रचलित रहा। यहाँ ‘हाली’ और ‘कटारशाही’ सिक्के भी जारी किए गए थे।
1901 ई. में कलदार के साथ ‘चेहरेशाही’ नामक चाँदी का रुपया चलाया गया जो 1925 ई. में बंद कर दिया गया। बूँदी के ताँबे के सिक्के को ‘पुराना बूँदी का पैसा’ कहा जाता था। बूँदी में स्वर्ण मुद्रा का अभाव दिखाई देता है।
कोटा राज्य के सिक्के – मध्यकाल में यहाँ माण्डू और दिल्ली के सुल्तानों के सिक्के चलते थे। यहाँ ‘हाली’, ‘मदनशाही’ और ‘गुमानशाही’ सिक्कों का भी प्रचलन रहा। यहाँ ताँबे के सिक्के भी बनते थे जो चौकोर होते थे। कोटा राज्य के सिक्के कोटा, गागरोन और झालरापाटन में ढलते थे। 1901 ई. में स्थानीय सिक्कों के स्थान पर कलदार का चलन प्रारम्भ हो गया।
झालावाड़ राज्य के सिक्के- झालावाड़ में कोटा के सिक्के प्रचलित थे। यहाँ 1837 से 1857 ई. तक ‘पुराने मदनशाही’ सिक्के प्रचलन में थे। ‘नये मदनशाही’ सिक्कों का प्रचलन 1857 से 1891 ई. तक रहा। इस पर ‘पंच पंखुड़ी’ और ‘फूली’ का चिन्ह अंकित रहता था। ताँबे के सिक्कों में मदनशाही पैसा’ एवं ‘मदनशाही टंका’ चलते थे।
सिरोही राज्य के सिक्के- सिरोही की कोई स्वतन्त्र मुद्रा नहीं थी और न ही यहाँ टकसाल थी। मेवाड़ का चाँदी का ‘भीलाड़ी’ और
मारवाड़ का ताँबे का ‘ढब्बूशाही’ रुपया यहाँ प्रचलन में था।
RAJASTHAN KI RIYASATON ME PRCHALIT PRAMUKH SHIKKE FAQs ?
प्रश्न- ताँबे के सिक्कों का प्रचलन कब से कब तक रहा ?
उत्तर ताँबे के सिक्कों का प्रचलन 1763 से 1891 ई. तक रहा।
प्रश्न- जयपुर राज्य में चलने वाली मुद्रा का नाम और उस पर कौनसा चिन्ह बना हुआ था ?
उत्तर जयपुर राज्य की मुद्रा को ‘झाड़शाही’ कहते थे, क्योंकि उस पर 6 टहनियों के झाड़ का चिन्ह बना रहता था।
प्रश्न- आहड़ से प्राप्त सिक्कों पर किस यूनानी देवता का चित्र बना हुआ है ?
उत्तर आहड़ से प्राप्त छ: ताँबे के सिक्कों पर यूनानी देवता अपोलो का चित्र बना हुआ है।
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