Rajasthan Ki Veshbhusha | राजस्थान की वेशभूषा

Rajasthan Ki Veshbhusha – भारत की अगर संस्कृति की बात करे तो इसके लिए कह सकते है की भारत अनेकताओं में एकता वाला देश है अर्थात भारत में भिन्न भिन्न जाती या समुदाय के लोग रहते है जो अपनी अलग भाषा और संस्कृति रखते है आज हम अपने इस आर्टिकल में Rajasthan Ki Veshbhusha को लेकर जानकारी साझा करेंगे।

Rajasthan Ki Veshbhusha

Rajasthan Ki Veshbhusha पुरुषों के लिए वस्त्र

1 कोट पेंट – जोधपुरी कोट भारत की राष्ट्रीय पोशाक है। कोट पेंट का ज्यादातर प्रचलन शादी ,विवाह पार्टी , ऑफिस आदि में है।

2 पगड़ी – इसे पाग, पेचा, साफा , फालियो , घुमालो, फेंटो, सेलो, लपेटो, शिरोत्राण, अमलो, बागा उस्णीय कहते है। मीणा व गुर्जर जाती के लोगो की पगड़ी को फेंटा कहते है। रक्षाबन्धन पर बहन भाई को मोठड़ा साफा देती है जो सिर पर पहनी जाती है। अगर बात की जाये शाफ़े की तो राजस्थान में यह प्रतिष्ठा का प्रतीक है।

  • पगड़ी को संरक्षण मुग़ल शासक अकबर (1556 – 1605 ई. ) ने दिया था।
  • राजस्थान में अलग अलग जाती द्वारा अलग अलग समय पर अनेक प्रकार से पगड़ी पहनी जाती है।

श्रावण – लहरिया पगड़ी
दशहरे – जरी की पगड़ी , काली
विवाह – मोठड़े की पगड़ी
वर्षा – हरी पगड़ी
गर्मियों में – केसरिया पगड़ी
सर्दी – कंसुबी
शोक – सफेद
दीपावली – केसरिया व पीली
युद्ध – केसरिया
होली – फूल पत्तों
मेघवाल – हल्की गुलाबी
रेबारी – गहरा लाल रंग
माली – गहरा लाल रंग
जाट – सफेद व तोपकलां
विश्नोई – सफेद
रामस्नेही – सफेद
कबीरपंथी – लाल
कलमी जाती – सफेद
व्यापारी – गुलाबी
लंगा ,मांगणियार ,कालबेलिया – रंगी छापल डब्बीदार
राइका – कांच – कघी युक्त
मुश्लिम, सिंधी – सेहरा
शिकार – खाकी रंग

Rajasthan Ki Veshbhusha पगड़ियों की निम्न शैलिया –

जसवंतशाही ,स्वरुपशाही , बखरमा , मेवाड़ी , अमीरशाही ,शाहजहाँनी ,विजयशाही, मानशाही , शिवशाही, खंजरशाही , राठौड़ी आदि।

मेवाड़ में पगड़ी बांधने वाले को छाबदार कहते है। मेवाड़ के महाराणा 26 वार की पगड़ी बांधते थे। ( 1 वॉर 3 फ़ीट ) । अकबर के समय मेवाड़ में ईरानी शैली की अटपटी पगड़ी प्रारम्भ हुई।

Rajasthan Ki Veshbhusha मेवाड़ के सामन्तो की पगड़िया –

  • हम्मीरशाही पगड़ी – बनेरा ( भीलवाड़ा )
  • मांडप शाही पगड़ी – कनोड़ा (उदयपुर )
  • राठौड़ी पगड़ी – बदनौर ( भीलवाड़ा )
  • चूडावत शाही पगड़ी – सलूम्बर ( उदयपुर )
  • मानशाही पगड़ी – भैंसरोड़गढ़ ( चितौडगढ )
    नोट – पगड़ी पर रतन पेंच नामक आभूषण पहना जाता है।

आदिवाशियों में पगड़ी के स्थान पर बांधे जाने वाला वस्त्र पोतिया कहलाता है।

दातिया – यह संकरा कपडा होता है जो ठोड़ी के ऊपर से पगड़ी तक बांधा जाता है।

जामा – शरीर के ऊपर भाग में पहना जाने वाला वस्त्र जामा कहलाता है जो गुठनों तक होता है जामा घेर या घघरी जैसा होता है। जिसे अकबर ने सरबागती तथा अबुल फजल ने टकुचिया कहा। शादी विवाह तथा दरबार में चकदार जामा पहना जाता है जिसे कचौटिया जामा कहते है।

चोगा – अंगरखी के ऊपर पहने जाने वाला वस्त्र चोगा कहलाता है जो गाउन जैसा होता है। जयपुर के शाशक सवाई माधो सिंह का चोगा विश्व का सबसे बड़ा चोगा है जो वर्तमान में परदर्शनी के लिए सिटी पैलेस जयपुर में रखा है। चोगे के ऊपर घुंडी लगी होती है। ग्रीष्म ऋतू में तनजेब व जामदानी चोगे पहने जाते है।

अंगरखी /बुगतरी –

कमर से ऊपर काले रंग का वस्त्र जिस पर सफ़ेद धागे से फूल व ज्यामितीय चित्र बनाये जाते है, अंगरखी कहलाता है। इसे पॉकेट युक्त बनियान भी कह सकते है। अंगरखी के निचे धोती पहनी जाती है। भीलों में पहनी जाने वाली तंग धोती ढ़ेपाड़ा कहलाती है। सहरिया जनजाति में अंगरखी को सलूका कहते है। अंगरखी को अचकन, मिरजाइ, कानो, डगला, डोढी,गदर, तनसुख, दुतई भी कहते है।

  • फरुखशाही अंगरखी पुरे राज्य में प्रशिद्ध है।
  • अंगरखी का संशोधित रूप अचकन कहलाता है। यह शरीर के ऊपरी भाग में पूरी बाहें, बिना कॉलर का कुर्ता होता है। जिसमे बांधने के लिए डसे होती है।

ब्रिजेस / रिजस – Rajasthan Ki Veshbhusha

चूड़ीदार पायजामे की तरह मोटे कपडे का बना वस्त्र जो पैरों से गुठनों तक टाइट होता है। तथा गुठनों से कमर तक चौड़ा होता है। इसका प्रयोग युद्ध में, शिकार में व पोलो खेलते समय किया जाता है इस वस्त्र को सामान्यत: मारवाड़ मेवाड़ में राजपूत पुरुषो द्वारा पहना जाता है।

आतमसुख – सर्दी से बचने के लिए इसका उपयोग चोगे के ऊपर ओढ़ने के काम आता है। आतमसुख गर्म कपडे या रुई का बना होता है।

कमरबंध – जामा व अंगरखी के ऊपर कमर पर बांधा जाता है जिसमे तलवार व कटार रखी जाती है। कमरबंध को पटका भी कहते है। यह अहमदाबाद और बनारस की प्रशिद्ध है।

पछेवड़ा – सर्दी से बचाऊ हेतु चादरनुमा होता है जो ऊपर से ओढ़ा जाता है।

घुघी – यह उन का बना होता है जो शरीर के ऊपर भाग पर ओढ़ा जाता है इसका उपयोग सर्दी और वर्षा ऋतू में किया जाता है।

Rajasthan Ki Veshbhusha

साफा – साफा पगड़ी से मोटा व लम्बाई में छोटा होता है। आदिवासियों में साफे को फेंटा कहा जाता है। सहरिया जनजाति के साफे को खपटा कहा जाता है। मलयागिरि साफे की रंगाई चन्दन से की जाती है। यह साफा वर्षा ऋतू में ओढ़ा जाता है।

धोती – लम्बाई चार मीटर चौड़ाई 90 से. मी. होती है। कमर से घुटनों तक पहने जाने वाले वस्त्र को धोती कहते है जो पुरुष पहनते है। सहरिया जनजाति में धोती को पंछा कहते है। सहरिया जनजाति में गुठनों तक की धोती को समुका कहते है। भीलों में तंग धोती को ढ़ेपाड़ा कहते है तथा कमर पर बाँधी जाने वाली लंगोटी खोयतू कहलाती है।

लांग – लंगोटी या धोती का वह भाग /छोर, जो दोनों जांघों के बीच से कमर की और बंधा रहता है।

लांगदार धोती – यह धोती बांधने का एक तरीका है, जिसमे धोती बांधते समय लांग छोड़ दी जाती है।

पायजामा – कमर से पैरों तक पहने जाने वाला ढीला वस्त्र पायजामा कहलाता है जो लाइनदार या साधारण कपडे का बनता है। पायजामे को सूथन, पेंट, पतलून भी कहते है।

अंगोछा – Rajasthan Ki Veshbhusha

अंगोछा – धूप से बचने के लिए पुरुष सिर पर अंगोछा बांधते है। ग्रामीण छेत्र में दाह संस्कार में तथा रिश्तेदारों के यहां जाते समय अंगोछा रखा जाता है। भीलों द्वारा सिर पर पहने जाने वाला अंगोछा चीरा तथा कमर पर बांधे जाने वाला अंगोछा फालु कहलाता है। केरी भांत का अंगोछा प्रशिद्ध है।

शेरवानी – शादी के समय पहनी जाती है।

टोपी – 19 वी सदी में पगड़ी की जगह टोपी का प्रचलन हो गया। दुपलिया, चौखुलिया, उमा, खाखसा, कांकसनुमा, टोपी के प्रकार है।

Rajasthan Ki Veshbhusha

भाखला – सर्दी में बच्चो को पहनाया जाता है।

कनपेंच – सर्दी में कानों को ढकने का वस्त्र होता है।

कमीज – यह धोती के ऊपर पुरुषो द्वारा पहना जाने वाला वस्त्र है जिसे कुर्ता कहते है।

लूंगी – कमर पर बाँधी जाती है। यह चदरनुमा होती है।

तहमद – यह लूंगी की तरह एक वस्त्र होता है जिसे कमर पर पहना जाता है।

अमोवा – खाकी रंग का वस्त्र, जिसे शिकार के समय पहना जाता है।

सौड़ – रुई से बनी रजाइयों सर्दियों में ओढ़ने के काम आता है।

लालियो – छोटे बच्चो के गले से छाती तक लटका वस्त्र जिस से बच्चो की लार साफ की जाती है।

मुसल्लो – नमाज फड़ते समय जमीन पर बिछाने वाला वस्त्र।

पांतियो – जमीन पर बिछाई जाने वाली लम्बी दरी।

कौपीन – साधु – सन्याशियों द्वारा पहना जाने वाला वस्त्र।

महिलाओं के वस्त्र – Rajasthan Ki Veshbhusha

1 साड़ियाँ – साड़ियाँ महिलाये कमर से नीचे पैरों तक पहनती है। यह महिलाओं का मुख्य वस्त्र है। साड़ी 5 – 6 गज होती है निम्न प्रकार की होती है

2 कोटा डोरिया साड़ी – इसे राजस्थान की बनारसी साड़ी कहते है। यह केथून (कोटा) , मांगरोल ( बारां ), की प्रशिद्ध है इसे मलमल की साड़ी या मसूरदी की साड़ी कहते है। सेल्फ हेल्प ग्रुप साड़ी निर्माण में प्रशिद्ध है। फैशन फॉर development का संबंध खादी व कोटा डोरिया के प्रचार प्रसार से है।

नोट – 2007 में – न्यूयार्क ( अमेरिका ) में पूर्व मुक्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा कोटा डोरिया पहन कर केटलॉग किया गया तथा UNO द्वारा वी मैन टुगेदर अवार्ड से सम्मानित किया गया।

3 सुठ की साड़ी – यह साड़ी सवाईमाधोपुर की प्रशिद्ध है जिसमे पके रंग का प्रयोग होता है।

4 फूल पत्तियों की साड़ी – यह साड़ी जोबनेर जयपुर की प्रशिद्ध है।

5 जामशाही साड़ी – इस साड़ी पर लाल जमीन पर फुल पत्तियों की बेल बनाई जाती है। महिलाये जामशाही साड़ी शादी के समय पहनती है।

6 स्प्रै – पेंटिंग की साड़ियां – यह साड़ी नाथद्वारा राजसमंद की प्रशिद्ध है।

पोमचा –

यह जयपुर का प्रशिद्ध लड्डू बने होते है शेखावाटी में इसे पीला कहते है। जो वंस वृद्धि का प्रतीक है पीला पोमचा पुत्र जन्म पर प्रसूति के समय महिलाओं द्वारा ओढ़ा जाता है चीड़ का पोमचा काले रंग का होता है जो विधवा महिलाये ओढ़ती है। चीड़ का पोमचा कोटा का प्रशिद्ध है। गुलाबी , पुत्री जन्म पर ओढ़ा जाता है।

Rajasthan Ki Veshbhusha ओढ़नी

ओढ़नी – महिलाओं द्वारा ओढ़नी सिर पर ओढ़ी जाती है। ओढ़नी कई प्रकार की होती है।

  • डूंगरशाही ओढ़नी – इस ओढ़नी पर बड़े बड़े पहाड़ों और डुंगरो की आकृति होती है।
  • लहर भात की ओढ़नी – इस ओढ़नी पर ज्वार के दानों जैसी बिंदियों से लहरियां बनाया जाता है।
  • ताराभांत की ओढ़नी – भूरी लाल जमीन जिसके किनारों पर छोटी छोटी तारे के आकार की बिंदिया होती है, उसे ताराभांत की ओढ़नी कहते है। यह ओढ़नी आदिवाशी महिलाओं द्वारा ओढ़ी जाती है जिसे फुदडी कहते है।
  • केरी भात ओढ़नी – इस ओढ़नी में जमीन लाल रंग की होती है जिसमे सफ़ेद और पिले रंग से ज्वार के आकार की बिंदिया बनी होती है।
  • ज्वार भात की ओढ़नी – सफ़ेद रंग की जमीन पर ज्वार की आकार की छोटी छोटी बिंदिया कपडे के दोनों ओर बनाई जाती है। इस ओढ़नी में लाल रंग के बूटे बनाये जाते है।
  • मोरनी भात की ओढ़नी – इस ओढ़नी में नाचते मोरों की आकृति होती है।
  • चकरी भात की ओढ़नी – इस ओढ़नी में चक्र बने होते है।
  • पणिहारी भात की ओढ़नी – पणिहारी ओढ़नी में मटके की आकृति बनी होती है।
  • मामाचुनड़ – मामा द्वारा भांजी के विवाह में जो चुनड़ी लाइ जाती है उसे मामाचुनड़ कहा जाता है।
  • पुतली भात की ओढ़नी – इस ओढ़नी के किनारे पिले और स्त्रियों की आकृति बनी होती है।
  • जामासाही ओढ़नी – विवाह की साड़ी जो लाल रंग की होती है।
  • बडूली – वर द्वारा विवाह पर वधू के लिए जो ओढ़नी लाई जाती है उसे बडूली कहते है।
  • कटकी – इसे पावली भांत की ओढ़नी भी कहते है। कटकी पर लाल जमीन पर काले सफेद रंग की बूंटिया होती है। इसे महिलाये और कुंवारी लड़किया ओढ़ती है।
  • कँवर झोल ओढ़नी – इस ओढ़नी के किनारे, पल्लू पीले व आँगन सफेद होते है।

घाघरा -Rajasthan Ki Veshbhusha

इसे लहंगा, घाबला या पेटीकोट भी कहते है जिसको महिलाये कमर के नीचे से पैरों तक पहनती है। घाघरे में अस्सी का घाघरा प्रशिद्ध है। आदिवासियों के घाघरे को कछाबू कहते है। छीट के घाघरे को रेणसाई कहते है। नीले रंग के आदिवासियों के घाघरे को नांदणा कहते है। रेन साई घाघरे का प्रकार जिसका रंग काला होता है।

रेशमी जयपुरी लहरिया – लहरिया जयपुर का प्रशिद्ध है जो पांच रंग का होता है। लहरियों में आड़ी रेखाए होती है। महिलाओ द्वारा श्रावण में लहरिया पहना जाता है जिसकी ओढ़नी और साड़ी आती है। जयपुर का समुन्द्र लहरिया प्रशिद्ध है।

दामणी – लाल रंग की ओढ़नी जिस पर जरी के धागो से कशीदाकारी की हो उसे दामणी कहा जाता है।

लुगड़ा – यह ओढ़नी का एक प्रकार है जिस पर चिड़ियों की आकृती बनी होती है। लुगड़ा सफेद जमीन पर लाल बूटी से निर्मित होता है जिसकी पंगतियो में केरी की किनारियाँ बनी होती है। लुगड़ा पाटोदा, लक्ष्मणगढ़ ( सीकर ), मुकंदगढ़ ( झुंझनू ), का प्रशिद्ध है।

नांदणा / ननडा – नीले छींट से निर्मित घाघरा जो आदिवासियों में पहना जाता है।

कछाबू – भील महिलाओं का घाघरा।

ब्लाउज – महिलाये इसे कमर के ऊपर पहनती है।

कुर्ती – कांचली -Rajasthan Ki Veshbhusha

यह कमर के ऊपर पहनी जाती है। कांचली के ऊपर कुर्ती पहनी जाती है। कुर्ती में बाजु नहीं होती है। कांचली में बाजु होती है। कांचली को आंगी भी कहते है।

तिलका – मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहने जाने वाला सफेद रंग का वस्त्र। सलवार के ऊपर पहना जाता है नीचे गुठनो तक होता है। सफेद रंग का चौगा जैसा होता है।

स्कर्ट – छोटा कुडता –

घघरी – छोटी लड़कियों का वस्त्र। कंधों से गुठनों तक

बुर्खा – मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला धार्मिक वस्त्र , जो काले रंग का होता है।

शरारा – सलवार जैसा होता है।

पँवरी – लाल या गुलाबी रंग की दुल्हन की ओढ़नी को पँवरी कहा जाता है।

सिंदूरी – भीलों में शादी के समय स्त्री द्वारा पहनी जाने वाली साड़ी।

कापड़ी – कमर से ऊपर पहना जाने वाला वस्त्र जिसे पिछे डंसो से बांधा जाता है।

चिरणोंटियों – साध्वी महिलाओ द्वारा ओढ़ने का वस्त्र।

एरंडी – महिलाओ द्वारा ओढ़ने का वस्त्र।

आदिवासी महिलाओं के वस्त्र Rajasthan Ki Veshbhusha

फडक़ा – कथौड़ी महिला द्वारा मराठी अंदाज में साड़ी चाची 420 फिल्म में पहनी गई।

रैजा – सहरिया स्त्री का विवाह वस्त्र।

खुसनी – कंजर विवाहित महिला का विवाह वस्त्र

चक्का सेवरा – कालबेलिया जाती की महिलाओं का वस्त्र

पीरिया – भील दुल्हन का पीला घाघरा।

Rajasthan Ki Veshbhusha FAQs

प्रश्न – सहरिया स्त्रीयों द्वारा विवाह के अवसर पर पहने जाने वाला वस्त्र ?

उत्तर रैजा

प्रश्न – भीलों में शादी के समय स्त्री द्वारा पहनी जाने वाली साड़ी ?

उत्तर सिंदूरी

प्रश्न – साध्वी महिलाओ द्वारा ओढ़ने का वस्त्र ?

उत्तर चिरणोंटियों

प्रश्न – वर द्वारा विवाह पर वधू के लिए जो ओढ़नी लाई जाती है उसे क्या कहते है ?

उत्तर बडूली

प्रश्न – पगड़ी पर कौनसा आभूषण पहना जाता है ?

उत्तर रतन पेंच

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