RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN | राजस्थान में लोक देवियां –

RAJASTHAN ME LOK DEVIYANकुल देवी – जिस देवी को प्रारम्भ से मानते आ रहे हैं। वह कुल देवी होती है। यह किसी जाति, समाज, वंश, परिवार की एक ही होती है।

इष्ट/आराध्य देवी – जिस देवी को किसी चमत्कार के कारण मानना प्रारम्भ कर देते हैं। वह इष्ट देवी होती है। यह किसी जाति, समाज, वंश, परिवार की अनेक हो सकती है।

  • धर्मग्रंथों के अनुसार राजा दक्ष की कन्या सती की शादी भगवान शिव से हुई थी। राजा दक्ष व भगवान शिव का मनमुटाव था। राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें भगवान शिव को नहीं बुलाया। सती अपने पिता के यहां अकेली चली गई। भगवान शिव के बारे में माता सती से बुरा-भला कहा गया। जिससे नाराज होकर माता
    सती यज्ञ कुण्ड में कूद गई तथा अपनी जान दे दी। जब भगवान शिव को पता चला तब भगवान शिव ने अपने गणों से यज्ञ भंग करवाया तथा राजा दक्ष का सिर कटवाकर यज्ञ में डाल दिया।

माना जाता है कि भगवान शिव ने माता सती के शव को कंधों पर उठाकर तांडव नृत्य किया तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शव के अंग छिन्न-भिन्न किये जहां-जहां अंग गिरे आज वहां शक्ति पीठ स्थापित हैं।

शाक्त धर्म के अनुसार 4 शक्ति पीठ – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  1. ज्वाला माता (उत्तर)
  2. हिंगलाज माता (पश्चिम)
  3. मीनाक्षी माता (दक्षिण)
  4. कामाक्षा माता (पूर्व)

शीतला माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इनका मन्दिर शील की डूंगरी पहाड़ी (चाकसू, जयपुर) में राजमार्ग 12 पर स्थित है जिसका निर्माण श्रीमाधोसिंह ने करवाया। इनका मुख्य मन्दिर कागा के क्षेत्र (जोधपुर) में है। होली के 8 दिन बाद चैत्र कृष्ण अष्टमी को शीतलाष्टमी/बास्योड़ा मनाया जाता है तथा ठंडा भोजन किया जाता है। शीतला माता को देवी, बच्चों की संरक्षिका, महामाई, सैढ़ल माता, संतान प्रदान करने वाली देवी कहा जाता है। शीतला माता का वाहन गधा तथा पुजारी कुम्हार होता है। यह एक मात्र देवी है जिसकी खण्डित प्रतिमा की पूजा होती है। शीतला माता की पूजा खेजड़ी वृक्ष के नीचे होती है। दही, छाछ, ठण्डा भोजन, कुमकुम, चूरमा, मेहन्दी आदि शीतला माता के चढ़ाये जाते हैं। शीतला माता के मन्दिर में गधों का मेला भरता है।

नोट- गधों का प्रसिद्ध मेला माघ शुक्ल सप्तमी को लूणियावास (जयपुर) व सौरसेन (अंता, बाराँ) में भरता है। डूंडलोद (झुंझुनूँ) में गर्दभ अभयारण्य स्थित है।

ज्वाला माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

इनका मन्दिर जोबनेर (जयपुर) में स्थित है। यह खंगारोतों की कुल देवी है। इसे मधुमक्खियों की देवी भी कहते हैं। नवरात्रों (चैत्र व अश्विन) में इनका मेला भरता है। सती का खंडित एक अंश यहाँ गिरा था। जो जानु (घुटना) था। माना जाता है कि अजमेर शासक लालबेग/मु. गुराद ने जैतसिंह पर आक्रमण किया लालबेग पर ज्वाला माता ने मधुमक्खियों के रूप में आक्रमण किया जिससे लाल बेग की सेना भाग गई तथा उनकी नौबत यही रह गई जो आज भी मन्दिर में पड़ी है तब से माता को मधुमक्खियों की देवी कहने लगे।

नोट:- जीणमाता को भी मधुमक्खियां की देवी कहते हैं।

जमवाय माता/बुड़वाय माता/ अन्नपूर्णा माता –

  • इनका मन्दिर जमुआ रामगढ़ (जयपुर) में स्थित है। यह कछवाह वंश की कुलदेवी हैं। इनके मन्दिर का निर्माण दुल्हेराय / तेजकरण ने करवाया। मारुनी व दुल्हेराय/ढोला की पुत्री बुड़वाय थीं। ढोला की शादी के समय उम्र 3 वर्ष थी। ढोला-मारु की शादी पुष्कर में हुई थी। मंदिर में गाय व बछड़े की भी मूर्ति है।

नोट-रामगढ़ को ढूँढाड़ का पुष्कर कहते हैं।

अन्य मंदिर- RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  1. भूणास, नागौर
  2. भौड़की, झुंझुनूँ
  3. मादनी मढ़ा, सीकर

नकटी माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

इनका मन्दिर भवानीपुरा (जयपुर) में स्थित है। यहाँ स्थित मूर्ति प्रतिहारकालीन है। नकटी माता का मूल मंदिर दुर्गा माता का था। माना जाता है कि मंदिर में चोरी हुई। चोरों ने माता की मूर्ति की नाक खंडित कर दी जिससे इस माता का नाम नकटी माता पड़ गया।

शिला माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

इनका मन्दिर जलेब चौक (आमेर) में स्थित है। यहाँ मन्दिर में स्थित मूर्ति को मानसिंह प्रथम बंगाल के शासक केदार कायस्त से 1602 ई. में छीनकर लाये तथा मन्दिर बनवाया। शिला माता की मूर्ति अष्टभुजाओं की काले पत्थर की है। यह कछवाह वंश की इष्ट/आराध्य देवी है। यहाँ नवरात्रों में मेला भरता है। इस मन्दिर में ढाई प्याले शराब व छाग बलि (बकरे के कान) लगती है।

शांकभरी माता /शक्रदेवी – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

मन्दिर का निर्माण 692 ई. में शिवहरि चौहान के पुत्र सिद्धराज ने करवाया। शाकम्भरी माता के मंदिर के पास 1627 ई. में जहांगीर ने पानी की टंकी व छतरी का निर्माण भी करवाया। औरगजेब ने मंदिर तोड़ने की कोशिश की लेकिन तोड़ नहीं पाया। शाकम्भरी माता को दुर्गा व काली का रूप माना गया है। इनका मन्दिर सांभर जयपुर में स्थित है।

यह सपादलक्ष के चौहानों की कुलदेवी हैं। इन्हें शाक-सब्जी की देवी भी कहते हैं। यह देवी राजस्थान की सबसे प्राचीन माता हैं जिस कारण इसे तीर्थों की नानी या देवयानी तीर्थ कहते हैं। अकाल के समय इस देवी ने शाक-सब्जी उगाकर लोगों का भरण-पोषण किया था। सुदर्शन चक्र से खण्डित देवी का एक अंश यहाँ आकर गिरा तथा मन्दिर बनाया गया। भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को शाकंभरी माता का मेला भरता है।

नोट-

  • तीर्थों का मामा पुष्कर (अजमेर) तथा तीर्थों का भांजा मचकुण्ड (धौलपुर) कहलाता है।
  • शाकंभरी माता या सकराय माता का मन्दिर उदयपुरवाटी (झुंझुनूं) में है। जो खण्डेलवालों की कुलदेवी है।

सकराय/शाकंभरी माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

इनका मन्दिर शाकंभरी (सीकर) में है यहाँ शक्र/गंगा नदी बहती है जिस कारण इसे शुक्र तीर्थ कहते हैं। इस मन्दिर में पुजारी नाथ सम्प्रदाय का होता है। शाकंभरी माता खण्डेलवालों की कुल देवी माना जाता है कि जब भगवान इन्द्र का राज्य राक्षसों ने छीन लिया तब इंद्रलोक को पुनः प्राप्त करने हेतु इन्द्र ने यहां तपस्या की। इन्द्र भगवान को शक्र भी कहा जाता है तथा उनके द्वारा यहां तपस्या करने के कारण इस स्थान को ‘शक्र तीर्थ’ कहा जाता है।

शाकंभरी माता के मन्दिर में दो मूर्तियाँ हैं

शाकंभरी/ब्राह्मणी

काली जी

काली जी की मूर्ति यहाँ स्थित कुण्ड से प्रकट हुई थी। मन्दिर के सामने चौथी सदी का शिलालेख स्थित है।

छींक माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

इनका मन्दिर गोपालजी का रास्ता जयपुर में है। जहां माघ शुक्ल सप्तमी को मेला भरता है। ज्यादा छींक आने पर इस देवी की पूजा होती है।

छींछ माता (बाँसवाड़ा)

जीण माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

इनका मन्दिर हर्ष पहाड़ी, गिरी माला गुफा रलावतागांव (रैवासा, सीकर) में स्थित है। इनका जन्म चूरू के घांघु गाँव में हुआ। (933 ई.) धन्धराज इनके पिता थे। जीवणबाई इनके बचपन का नाम था। इनके मन्दिर को काजल शिखरा कहते हैं। यह अनन्त प्रदेश (सीकर) के चौहानों व मीणाओं की कुल देवी है। चिरंजा जीण माता का गीत है जो गीतों में सबसे लम्बा है। यह गीत करूण रस का है। यह गीत कनफटे नाथ गाते हैं। जीणमाता के मन्दिर के पीछे स्थित तहखाने में जगदेव पंवार ने अपनी बलि दी जिसका पीतल का धड़ भ्रमरमाता के सामने आज भी पड़ा है। जीण माता निर्वाण चौहान व मीणाओं की कुल देवी है।

नोट – चिरंजा आवड़माता के स्तुति पाठ को कहते हैं।

  • जीण माता के मन्दिर का निर्माण पृथ्वी राज चौहान प्रथम के समय हटड़/मोहिल ने विक्रम संवत् 1121 में करवाया था।
  • इस मन्दिर में ढाई प्याले शराब चढ़ती है। इस मन्दिर को जब औरंगजेब की सेना तोड़ने आयी तो मधुमक्खियों ने आक्रमण कर दिया। जिस कारण सेना मन्दिर को नहीं तोड़ पायी। उसके बाद से इसे मधुमक्खियों की देवी कहने लगे। मुगलकाल से ही प्रतिवर्ष सवा मण (50 किलोग्राम) तेल इस मन्दिर में आता है। औरंगजेब ने मंदिर में सोने का छत्तर चढ़ाया था। जीणमाता के मन्दिर में दो दीपक हमेशा जलते रहते हैं जिसमें एक घी का होता है तथा एक तेल का होता है।
  • जीणमाता के मंदिर के पीछे तहखाने में भ्रमरमाता/ भंवरमाता की मूर्ति है जिसके सामने जगदेव पंवार का पीतल का धड़ है। माना जाता है कि जगदेव ने माता के सामने अपनी बलि दी थी।
  • जीणमाता के मन्दिर के पास जोगी तालाब नामक एक जल कुण्ड यहाँ पाण्डवों की आदमकद पत्थर की मूर्तियाँ हैं जिससे माना जाता है की पाण्डव यहाँ आये थे।
  • जीणमाता हर्ष की बहिन थी। जीण माता तथा उसकी भाभी आभलदे में पानी की मटकी उतारने को लेकर शर्त लगी थी। हर्ष पहले किसकी मटकी उतारता है जब हर्ष ने जीण की भाभी की मटकी पहले उतार दी तब जीण अपने भाई हर्ष से नाराज होकर तपस्या करने जंगल में चली गयी। जीण के पीछे-पीछे उसका भाई हर्ष भी पहाड़ी पर तपस्या करने लगा जिसे आज हर्ष नाथ पर्वत कहते हैं। 2003 में जय जीणमाता के नाम से फिल्म बनी थी।

जीणमाता का अन्य मन्दिर:-

मारोठ, नागौर- इस मन्दिर का निर्माण महेशदान सिंह मेड़तिया ने करवाया।

राणी सती – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इनका मन्दिर झुंझुनूँ में स्थित है। नारायणी देवी इनका मूलनाम तथा तन्दनदास इनके पति का नाम था। 1652 ई. में तन्दनदास हिसार के पास मारे गये तथा नारायणी देवी सती हो गयीं। इन्हें दादाजी के नाम से भी जाना जाता है। सह अग्रवालों की कुल देवी हैं। भाद्रपद अमावस्या को इनका मेला भरता है।

नोट- 1987 में रुपकंवर सती काण्ड (देवराला, सीकर) होने के कारण इनके मेले को कुछ दिन के लिए बंद कर दिया।

नारायणी माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

जन्म 949 ई. पिता- विजयराम, माता- रामवती है। इनका मन्दिर बरवा डूंगरी पहाड़ी (राजगढ़, अलवर) में स्थित है। जिसका निर्माण 11 वीं सदी में हुआ। नारायणी माता का मन्दिर प्रतिहार शैली में बना है। यहाँ वैशाख शुक्ल एकादशी को मेला भरता है। नारायणी माता का मूल नाम करमेती बाई था।

इनके पति करमंसी थे जिनकी सांप डसने से मृत्यु हो गयी नारायणी माता ने मीणाओं के लड़कों के सहयोग से लकड़ियाँ इकट्ठी की तथा अपने पति का दाह संस्कार कर स्वयं सती हो गयीं। नारायणी माता ने मीणाओं के लड़के को वरदान स्वरुप नदी का वरदान दिया। जहां 3 किमी. जलधारा बनी है। यह नाईयों की कुलदेवी हैं। नाई व मीणा जाति में चढ़ावे को लेकर विवाद है।

कैला देवी – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

मूल मंदिर का निर्माण केदारगिरी ने करवाया था इसे अंजनी माता या योगमाया भी कहते हैं। इनका मन्दिर कालीसिल नदी के किनारे त्रिकुट पर्वत (करौली) पर स्थित है जिसका निर्माण 1900ई. में गोपाल सिंह ने करवाया। केलादेवी की मूल स्थापना 1114 ई. में केदारगिरी ने की थी जिसके कहने पर कैलादेवी ने नरकासुर राक्षस का वध किया।

इस माता का मुंह टेढ़ा है। माना जाता है कि एक दिन माता के मंदिर में एक भक्त को प्रवेश नहीं दिया जिसे माता ने देखा जिस कारण माता का मुख टेढ़ा हो गया। पीतुपुरा गाँव के मीणाओं ने माता को नाचकर व गायन कर खुश किया जिस कारण उन्हें ‘गोठिया’ कहा जाता है।

नोट- त्रिकुट पहाड़ी जैसलमेर में है जिस पर सोनारगढ़ का किला है।

  • केलादेवी देवकी व वासुदेव की पुत्री है जिसे कंस मारना चाहता था। यह यादवों व अग्रवालों की कुलदेवी हैं तथा मीणाओं व गुर्जरों की ईष्ट देवी हैं। यहाँ चैत्र शुक्ल अष्टमी को लक्खी मेला भरता है। इस मेले में लांगुरिया गीत व घुटकन/कनक दंडवत नृत्य किया जाता है। कैला देवी ने नरकासुर राक्षस का वध किया था।
  • मन्दिर के सामने बोहरा सम्प्रदाय की छतरी है।
  • यह यादवों की जादोन शाखा की कुलदेवी है।

राजेश्वरी माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

इनका मन्दिर भरतपुर में स्थित है। यह जाट राजवंश की कुलदेवी हैं।

कुशाल माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

इनका मन्दिर बदनौर (भीलवाड़ा) में स्थित है। विक्रमसंवत 1490 को राणा कुम्भा ने मन्दिर का निर्माण करवाया। बैराठ माता कुशाल माता की बहिन थी इनका मेला भाद्रपद कृष्ण एकादशी से अमावस्या तक भरता है। इसे चामुंडा का अवतार कहते हैं।

हिचकी माता –

इनका मन्दिर सनवाड़ (भीलवाड़ा) में स्थित है।

चौथ माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

इनका मन्दिर चौथ का बरवाड़ा (सवाई माधोपुर) में स्थित है। यह कंजर समाज की कुल देवी हैं।

भदाणा माताRAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

इनका मन्दिर भदाणा (कोटा) में स्थित है। यह हाड़ा शासकों की कुलदेवी है। यहाँ मूंठ से पीड़ित व्यक्ति का इलाज होता है।

ब्रह्माणी माताRAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

इनका मन्दिर सौरसेन (अंता, बारों) में स्थित है। यह कुम्हारों की कुल देवी है। यह एकमात्र देवी है जिसकी पीठ की पूजा व शृंगार होता है। यहाँ माघ शुक्ल सप्तमी को गधों का मेला लगता है। इस मन्दिर के चारों ओर परकोटा है। इस मन्दिर में स्थित मूर्ति को चट्टान से काटकर बनाया गया है जिस कारण इसे शैलाश्रय गुफा मन्दिर भी कहते हैं।

बाण माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

नागदा (उदयपुर) में इनका मन्दिर है। यह सिसोदिया वंश की कुलदेवी हैं। इसे सोलंकियो की कुलदेवी माना जाता है।

अन्य मंदिर- RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  1. चित्तौड़गढ़
  2. केलवाड़ा – उदयपुर

अम्बिका माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

जगत (उदयपुर) में इनका मन्दिर है जिस कारण से जगत अम्बिका माता भी कहते हैं। यह प्रतिहारकालीन मन्दिर है जिसका निर्माण 10वीं सदी में अल्लट ने महामारु शैली में करवाया था। इसे मेवाड़ का खजुराहो कहते हैं।

नोट- राजस्थान का खजुराहो किराडू (बाड़मेर) मिनी खजुराहो भण्डदेवरा (बाराँ) को कहते हैं।

आमजा माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इनका मन्दिर रीछड़े गाँव (केलवाड़ा, उदयपुर) में है जहां ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी को मेला भरता है। यह भीलों की कुल देवी है। इनके मन्दिर में भील व ब्राह्मण पूजा करते हैं।

महामाई/मावली माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इनका मन्दिर उदयपुर में है। यह बच्चों की रक्षिका कहलाती हैं।

तुलजा भवानी – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इनका मन्दिर चित्तौड़दुर्ग में है। यह शिवाजी की कुलदेवी थीं। मन्दिर का निर्माण बनवीर ने करवाया था।

बडली माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

बेड़च नदी के किनारे अकोला (चित्तौड़) में इनका मन्दिर है। बीमार व्यक्ति के तांती बांधने से ठीक हो जाता है। यहाँ 2 तिबारियां हैं जिनमें से बीमार व्यक्ति को निकालने पर ठीक हो जाता है। मनौती पूरी होने पर मंदिर में त्रिशूल चढ़ाया जाता है।

कालिका माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • चित्तौड़ दुर्ग में इनका मन्दिर है। कालिका माता का मन्दिर 8वीं सदी में मान मौर्य ने सूर्य मन्दिर के रुप में करवाया। 12वीं सदी में यहाँ कालिका माता की मूर्ति लगाकर कालिका मन्दिर बनाया गया। कालिका माता गुहिल वंश की आराध्य देवी हैं।
  • कालिका माता गौड़ क्षत्रिय कुल की कुलदेवी है।
  • चितौड़गढ़ स्थित मंदिर का जीर्णोद्वार महाराणा सज्जनसिंह ने करवाया।
  • कालिका माता का एक अन्य मंदिर सिरोही में है जिसका निर्माण महाराव लाखा देवड़ा ने पावागढ़ (गुजरात) से मूर्ति लाकर करवाया।

आवरी माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • निकुम्भ (चित्तौड़) में इनका मन्दिर है। यहाँ लकवे का इलाज होता है।
  • यहाँ स्थित तालाब में स्नान से लकवा सही हो जाता है।

त्रिपुरा सुन्दरी/ तरताई माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • तलवाड़ा (बाँसवाड़ा) में इनका मन्दिर है। इनके मन्दिर में 18 भुजाओं की मूर्ति है। यह पांचाल जाति व वसुंधरा राजे की कुल देवी हैं। वक्षस्थल की पूजा होती है।

नोट- तिलवाड़ा सभ्यता बाड़मेर व तलवाड़ा झील हनुमानगढ़ में है।

वीरातरा माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • चौहटन (बाड़मेर) में इनका मन्दिर है। यह भोपों की कुलदेवी हैं। इनका मेला चैत्र, भाद्रपद व माघ की शुक्ल चतुर्दशी को भरता है। माता की गर्दन टेढ़ी होने के कारण वांकल/वीरातरा माता कहलायी। उज्जैन के शासक विक्रमादित्य ने जब बलूचिस्तान पर आक्रमण किया था उस समय हिंगलाज़ माता को अपने साथ उज्जैन ले जाने की बात कही थी जिसका एक रूप वीरातरा माता है।

सुधा माता/सुण्डामाता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • सुधा पर्वत (जालौर) पर इनका मन्दिर है। यह एकमात्र देवी है जिसकी धड़रहित पूजा होती है। जिस कारण इसे अघटेश्वरी देवी भी कहते है। इन माता को चामुण्डा माता भी कहते हैं। यहाँ राज्य का प्रथम रोपवे 20 दिसम्बर, 2006 में स्थापित किया गया। माना जाता है कि भगवान शिव ने अपनी पत्नी के शव को उठाकर जो तांडव किया उसमें सती का सिर आकर यहाँ गिरा। इस माता के मन्दिर में एक शिवलिंग भी स्थापित है। यह माता कंपिजल वैश्य, लाडवानू ब्राह्मण, देवल राजपूतों की कुलदेवी है। मंदिर निर्माण 1255 ई. में चोंचिगदेव ने करवाया।

नोट- उदयपुर व पुष्कर में भी रोपवे है। चौथा रोपवे नाहरगढ़ (जयपुर) में प्रस्तावित है।

आशापुरा माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इनका मन्दिर मोदरा (जालौर) में है। यह सोनगरा, नाडौल, भडौंच, जालौर, देवड़ा चौहानों की कुलदेवी है। नवरात्रों में यहाँ गरबा नृत्य होता है। नाडोल (जालौर) के शासक लाखनसी को आशापुरा माता ने युद्ध में घोड़े दिये थे जिस कारण लाखनसी ने 981 ई. में नाडोल में आशापुरा माता के मन्दिर का निर्माण करवाया। यह कहानी कुल कल्पद्रप में मिलती है।

अन्य मंदिर:-

  • पोकरण (जैसलमेर) – यहाँ स्थित आशापुरा माता की मूर्ति लूणभाणजी गुजरात के भुज स्थान से लाये थे। ये देवी ‘विस्सा जाति की कुलदेवी’ है। आशापुरा माता के भक्त मेहन्दी नहीं लगाते हैं। मेला – भाद्रपद + माघ शुक्ल दशमी
  • भड़ौच (गुजरात) – इस मन्दिर का निर्माण विग्रहराज द्वितीय ने करवाया था।
  • आसलपुर, जयपुर- यहाँ स्थित मन्दिर का निर्माण वासुदेव चौहान के पुत्र माणकराज ने करवाया। यह देवी जोडेजों व भंडारियों की कुलदेवी है। भाद्रपद व चैत्र शुक्ल अष्टमी को आशापुरा माता का मेला भरता है।
  • मोदरा (जालौर) – इसे बड़े उदर (पेट) वाली देवी व महोदरी माता भी कहते है। यहाँ स्थित मंदिर की मूर्ति गुजरात के खेरालू से लाई गई। नवरात्रों में यहाँ गरबा नृत्य होता है।

घेवर माता RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इनका मन्दिर राजसमंद झील के किनारे स्थित है। यह बिना पति के सती होने वाली एकमात्र देवी है। राजसमंद के पाल पर एक महिला को सती होना था जो पवित्र हो तथा उसके बाएं गाल पर तिल हो। मालवा की घेवर बाई के गाल पर तिल था जिसे सती होने के लिए कहा गया तब घेवर माता बिना पति के ही राजसमंद झील के किनारे सती हो गयीं।

अर्बुदा माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • माता सती का अधर (होंठ) यहां गिरा था जिस कारण इसे अधार देवी कहते है।
  • माउण्ट आबू (सिरोही) में इनका मन्दिर है। इसे राजस्थान की वैष्णो देवी कहते हैं।

नोट- वैष्णो देवी का मन्दिर जम्मू में है तनोट माता को (जैसलमेर) थार की वैष्णो देवी कहते हैं।

सुगाली माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

इनका मन्दिर आऊवा (पाली) में है। यह कुशालसिंह व चम्पावतों की कुल देवी है। इसे 1857 की क्रांति की देवी भी कहते हैं। इस देवी के 10 सिर व 54 हाथ हैं। 1857 की क्रांति में अंग्रेज इसे अपने साथ अजमेर ले गये। अजमेर से यह कलकत्ता, कलकत्ता से यह बांगड़ म्यूजियम तथा बांगड़ म्यूजियम पुन: 2018 में वसुन्धरा राजे ने आऊवा गाँव में स्थापित करवा दिया। सुगाली माता का एक मुख मानव का व बाकी विभिन्न पशुओं के है।

कैवायमाता/अंबिका माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

किणसरिया गाँव, परबतसर (नागौर) में इनका मन्दिर है। मन्दिर का निर्माण 999 ई. में दुर्लभराज/चच्च चौहान ने करवाया। इनके मन्दिर के पास स्थित हरे-भरे स्थल को औरण कहते हैं। यह दहिया राजवंश की कुल देवी है।

दधिमाता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

मंदिर का निर्माण 836 ई. में प्रतिहार शासक भोजराज प्रथम के समय हुआ। गोठ मांगलोद (जायल, नागौर) में इनका मन्दिर है। यह दाधिच / दाहिमा ब्राह्मणों की कुल देवी हैं। दधिमाता मन्दिर का निर्माण प्रतिहारकाल में महामारु शैली में करवाया गया। त्रेतायुग में दधिमाता ने अवतार लेकर विकटासुर राक्षस का वध किया था। महाराजा स्वरूपसिंह के पुत्र प्राप्ति दधिमाता के आर्शीवाद से हुई।

उष्ट्रवाहिनी देवी/सारिका देवी माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इसे अंता देवी भी कहा जाता है।
  • इनका मन्दिर बीकानेर व जोधपुर में है। यह पुष्करणा ब्राह्मणों की कुलदेवी है।
  • यह एकमात्र देवी है जो ऊँट पर सवार है।

करणी माता RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • माना जाता है कि जब करणी माता के पुत्र लाखा की मृत्यु हो गई तब करणी माता ने उसे पुनर्जीवित कर दिया तब यमराज आया तथा करणी माता से कहा इसे मार दो क्योंकि यह नियम के विरूद्ध है लेकिन करणी माता ने लाखा को नहीं मारा तब यमराज ने कहा- मैं आपके वंशजों को कभी यमलोक नहीं आने दूंगा तब करणी माता ने कहा मेरे वंशज यमलोक न जाकर मेरे मन्दिर में चूहे बनकर रहेंगे।
  • इनका जन्म आश्विन शुक्ल सप्तमी वि. स. 1444, सुवाप गाँव (फलौदी, जोधपुर) में हुआ। मेहाजी कीनिया इनके पिता व देवल बाई इनकी माता थीं। बीटूकेलू के पुत्र देपाजी (देशनोक/साठी का गांव, बीकानेर) के साथ विक्रम संवत 1472 को करणी माता की शादी हुई थी। करणी माता के बचपन का नाम रिद्धि बाई था। माना जाता है करणी माता 21 माह अपनी माता के गर्भ में रही थी।
  • करणी माता के पुजारी को ‘बारीदारजी’ कहा जाता है।
  • करणी माता ने अपनी छोटी बहिन गुलाबो की शादी अपने पति देपाजी से कर दी जिनसे उत्पन्न पुत्र लाखा (लक्ष्मण) को करणी माता ने गोद लिया। श्रावण पूर्णिमा को कोलायत झील (बीकानेर) में करणीमाता के पुत्र लाखा की डूबने से मृत्यु हो गयी जिस कारण चारण जाति के लोग कोलायत झील में स्नान करने नहीं जाते हैं।

नोट – कोलायत (बीकानेर) में सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिल मुनि का कार्तिक पूर्णिमा को मेला भरता है।

  • रिद्धि बाई ने बचपन में अपनी बुआ की विकलांगता को सही किया था। करणी माता के पिता मेहाजी को साँप ने काट लिया जिन्हें करणी माता ने जीवित किया। करणी माता के चमत्कार के कारण देशनोक (बीकानेर) के आस-पास कभी भी ओलों से खेती खराब नहीं होती है तथा आग से कभी भी घर नहीं जलता है।
  • करणी माता बीकानेर में सर्वप्रथम नेहड़ी नामक स्थान पर आई थीं जहाँ स्थित जालवृक्ष के नीचे करणी माता दही बिलौती थीं। करणी माता की आराध्य देवी तेमड़ा माता थीं जिनका मन्दिर देशनोक (बीकानेर) करणी माता के मन्दिर के पास में ही स्थित है। करणी माता के मन्दिर को मठ कहते हैं क्योंकि इसकी आकृति ऊपर से उल्टे कटोरे यानि मठ के समान है। करणी माता के सफेद चूहों को काबा कहते हैं, इनके दर्शन शुभ माने जाते हैं। इस देवी को चूहों वाली
    देवी भी कहते हैं। सफेद चील करणी माता का अवतार है।
  • मेहरानगढ़ दुर्ग व बीकानेर की नींव रिद्धि बाई ने रखी थी। यह बीकानेर के राठौड़ व चारणों की कुल देवी है। मन्दिर में दो बड़े कढ़ाहे हैं जिन्हें सावण-भादवा कहते हैं।

नोट – सावण-भादव महल (डीग, भरतपुर), सावण-भादव झील (सिरोही), सावण-भादव नहर (कोटा) भी है।

  • इनके मन्दिर का निर्माण बीका ने प्रारम्भ किया। कुछ निर्माण करणसिंह ने व इसे पूर्ण सूरतसिंह ने करवाया। करणी माता के मन्दिर का आधुनिक निर्माण गंगा सिंह ने करवाया था। मंदिर का निर्माण कार्य सेठ चाँदमल ढट्ठा ने करवाया। करणी माता मंदिर का मुख्य द्वारा चाँदी का बना है जिसका निर्माण अलवर शासक बख्तावर सिंह ने करवाया। वि. स. 1595 में करणीमाता का दियात्रा गाँव (बीकानेर) में घिनेरु की तलाई में निधन हो गया।
  • करणी माता की आरती को चिरजा कहते हैं जो दो प्रकार की होती है –
  1. घड़ाऊ – : यह आरती विपत्ति के समय की जाती है ।
  2. संघाऊ-: यह आरती शान्ति के समय की जाती है।

नागणेची माता/चक्रेश्वरी माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

इस माता का मूल मन्दिर नगाणा गाँव (बाड़मेर) में है जिसका निर्माण राव सीहा के वंशज धूहड़ ने कर्नाटक से 18 भुजाओं की काष्ठ की मूर्ति लाकर करवाया। इस मूर्ति को रावजोधा के पुत्र राव बीका ने नगाणा गाँव से लाकर मेहरानगढ़ (जोधपुर) में स्थापित करवाया। यह राठौड़ों की कुल देवी हैं। इसका प्रतीक श्येन/बाज/चील पक्षी है। नीम के पेड़ के नीचे इनकी पूजा होती है।

  • मूर्ति धूहड़ के समय लहोड़ा लुंब ब्राह्मण कर्नाटक से लाये। राव बीका ने बीकानेर में भी मंदिर का निर्माण करवाया।
  • जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़ के राजचिह्न पर नागणेची का रूप श्येन पक्षी अंकित होता है।
  • नागणेची माता की पूजा करने समय सात गांठों का लकड़ी का डोरा बांधा जाता है, जिसे देवीजी का कड़ा कहा जाता है। मेवाड़ शासक भी नागणेची की पूजा करते है।

चामुण्डा माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इनका मन्दिर मेहरानगढ़ दुर्ग में है जिसमें 2008 के नवरात्रों के समय मची भगदड़ में मारे गये लोगों की जाँच हेतु जसराज चोपड़ा समिति बनायी। यह गुर्जर प्रतिहारों की कुल देवी तथा राठौड़ों की इष्ट देवी हैं प्रतिहारों में इंदा प्रतिहारों की कुलदेवी है।
  • अन्य मंदिर-
  • चामुंडा गाँव, जोधपुर- यहाँ स्थित मन्दिर की मूर्ति चट्टान से स्वतः प्रकट हुई थी। यहाँ माता गुर्जर प्रतिहारों की शाखा इंदावंश की कुलदेवी हैं।
  • मण्डौर, जोधपुर- यहाँ स्थित मंदिर का निर्माण राव चूंडा ने करवाया।
  • मेहरानगढ़, जोधपुर- 1460 ई. में रावजोधा ने मण्डौर से मूर्ति लाकर मेहरानगढ़ दुर्ग में मन्दिर क्षतिग्रस्त हो गया जिसका पुनः निर्माण तखतसिंह ने करवाया। प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी को मंदिर में ध्वजा, माता के वस्त्र व रंग-रोगन किया जाता है तथा जीर्णोद्वार दिवस मनाया जाता है।

नोट – चामुण्डा माता का एक अन्य मन्दिर चितौड़ दुर्ग में भी है।

चामुण्डा माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • चामुण्डा माता का मन्दिर अजमेर में है। यह चौहानों की कुल देवी है। चामुण्डा माता का मन्दिर पृथ्वीराज चौहान ने 1183 ई. बनवाया। चामुण्डा माता को चन्दरबरदाई का आराध्य देवी माना जाता है।

पीपाड़ माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इनका मन्दिर ओसियाँ (जोधपुर) में है।

आईजी माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • जन्म 1415 ई. अंबापुर (GJ) भाद्रपद शुक्ल-2। इनका मन्दिर बिलाड़ा (जोधपुर) में है। भीखा डाबी इनके पिता तथा रैदास इनके गुरु थे। इनके बचपन का नाम जीजी बाई/मानी बाई था। यह दुर्गा का अवतार मानी गयी हैं। सिरवी जाति की यह कुल देवी हैं।
  • मांडु (मालवा) शासक इन्हें अपनी बेगम बनाना चाहता था। यह रामदेवजी के अनुयायी थीं तथा 11 नियमों का डोरा पंथ (1468 ई.) चलाया। इनके मन्दिर को दरगाह तथा समाधि स्थल को बढेर कहा जाता है। इनके मन्दिर में दीपक की ज्योति से केसर टपकती है। आईजी माता का मन्दिर नीम के पेड़ के नीचे होता है। हर माह की शुक्ल द्वितीया को इनका मेला भरता है। 1500 ई. को आईजी माता ने गोविंद देवजी राठौड को अपने आसन पर बिठाया तथा डोरा पंथ का दीवान बनाया। जो प्रथम दीवान था।
    • सांचिया माता
  • जैन व हिन्दू धर्म के लोग इस माता को मानते है जिस कारण इसे सांप्रदायिक सद्भाव की देवी कहते हैं।
  • इनका मन्दिर ओसियाँ (जोधपुर) में है। यह ओसवालों व परमारों की कुल देवी हैं। इनके मन्दिर का निर्माण उपलदेव परमार ने करवाया। सांचिया माता ने उपलदेव परमार के स्वप्न में आकर मंदिर बनाने के लिये कहा तथा कहा कि मेरी मूर्ति भूमि से स्वयं निकलेगी तब भयंकर गर्जना होने लगी जिससे डरकर उपलदेव चिल्लाने लगा जिस कारण माता की मूर्ति आधी ही भूमि से निकली। उपलदेव ने माता का मन्दिर बनवाया तथा औसियां बसाया। साँचिया माता के प्रवेश द्वार पर शैलपुत्री का चित्र है।

लटियाली माताRAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इनका मन्दिर फलौदी (जोधपुर) में है। यह कल्ला राठौड़ों की कुलदेवी हैं। खेजड़ी वृक्ष के नीचे पूजा होने के कारण इन्हें खेजड़बेरी राय भवानी
    कहते हैं।

हिंगलाज माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • बलूचिस्तान (पाकिस्तान) में इनका आदि शक्ति पीठ है। इनका एक अन्य मन्दिर लोद्रवा (जैसलमेर) में है। घड़सीसर (जैसलमेर) में हिंगलाज माता की साल है। इसे चांगली माई व चर्म रोगों की देवी भी कहते हैं यह लोद्रवा के चौहानों की कुल देवी हैं। हिंगलाज माता का जन्म हरिदास गौरिया के घर हुआ था। इनके मन्दिर में तेरहताली नृत्य किया जाता है। यहाँ भगवान शिव की पत्नी सती का ब्रह्मरंध्र रूप (मांग भरने वाला स्थान) गिरा जिस कारण हिंगलाज कहते है। हिंगलाज माता की पूजा चांगला खांप के मुस्लिम करते हैं।

हिंगलाज माता के अन्य मन्दिर-:

  • अराई- अजमेर
  • बीदासर, चुरू- यहाँ नाथों का अखाड़ा स्थित है।
  • बुद्ध गिरी मढ़ी, फतेहपुर, सीकर- यहाँ पूजा गिरी संन्यासी करता है।
  • सिवाना, बाड़मेर-यहाँ कोयलिया गुफा में मंदिर है जिसकी पूजा पूरी संन्यासी करता है।

आवड़ माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इनका मन्दिर जैसलमेर में है। सोहन चिड़ी/सुगन चिड़ी आवड़ माता का रुप है। इनके स्तुति पाठों को चिरजा कहते हैं जो सिगाऊ व घाड़ाऊ दो प्रकार के होते हैं। चांगला खांप के मुसलमान इनकी पूजा करते हैं।
    आवड़ माता को सांगियाजी, मांकड़ियाई, भादरेची, तेमड़ाराच, चालगनेची, डूंगरेची आदि नामों से जाना जाता है ।

तेमड़ा माताRAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इनका मन्दिर जैसलमेर व बीकानेर में है। यह करणीमाता की इष्ट देवी व भाटियों की कुल देवी मानी जाती हैं। आवड़ माता ने हाकरा नदी का जल तान चुल्लू में सोख लिया तथा तैमड़ा पर्वत के राक्षस को मार दिया। आवड़ माता ने राक्षस को तैमड़ी कहा जिसका अर्थ होता है, मुर्दा तब आवड़ माता को तैमड़ माता कहा जाने लगा। करणी माता तैमड़ माता की पूजा करती थी। तैमड़ा माता को द्वितीय हिंगलाज कहते हैं।

स्वांगिया माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • माना जाता है कि भगवान कृष्ण के वंशज यादव/भाटी जब जरासंध में हार गये तब उन्होनें भगवान कृष्ण से जरासंध की हार का युद्ध उपाय पूछा तब भगवान कृष्ण ने कहा जब तक जरासंध के पास देवी से प्राप्त भाला है उसे कोई नहीं हरा सकता तब यादवों ने देवी को प्रसन्न कर जरासंध से भाला वापस मांगने का वरदान मांगा तब देवी ने जरासंध से भाला मांगा लेकिन जरासंध ने देने से मना कर दिया। तब देवी ने जरासंध से युद्ध किया। भाला छीनते समय भाला मुड़ गया। माता ने भाला ग्रहण किया भाले को स्वांग कहते है जिससे देवी का नाम स्वांगिया माता पड़ गया। भाटी वंश तब से प्रतीक के रूप में त्रिशुल लगाते है। इनका मन्दिर जैसलमेर में है। इन्हें उत्तर की ढाल कहते हैं। यह भाटियों की कुलदेवी है। स्वांगिया माता के वंश में मामडिया चारण हुआ जिसके बच्चा नहीं था। हिंगलाज माता के आर्शीवाद से 7 कन्याओं ने मामड़िया चारण के घर जन्म लिया तथा देवी कहलायी। ये कन्याएं आवड़, लांगदे, रूपा, आशी, सेसी, गेहली, हुली थी।

नोट – ढाल तलवार का वार से रक्षा करने वाला होता है।

तनोट माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • तनोट माता ने भाटी शासक केहर की रानी को स्वप्न में पुत्र जन्म की तथा मन्दिर बनाने की बात कही । केहर के पुत्र हुआ जिसका नाम तनुटाय रखा जिसने वि.स. 888 में तनोट माता का मंदिर बनवाया।

देगराय मंदिर – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इनका मंदिर जैसलमेर में है। इस स्थान पर एक राक्षस भैंसों के बीच रहता था जिसे बहादिया भाटी ने आवड़ माता के कहने पर मार दिया। देगराय के मंदिर में सात बहनों की मूर्ति है जो त्रिशुल से भैसों का वध कर रही है। देगराय के मंदिर में रात्रि में ढोल-नगाड़ों की आवाज आती है। इस कारण रात्रि में ठहरना मना है।

तेमड़ा माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • आवड़ माता ने हाकरा नदी का जल तीन सोख लिया तथा तेमड़ा पर्वत के राक्षस को मार दिया। आवड़ माता ने राक्षस को तेमड़ी माता कहा जिसका अर्थ होता है मुर्दा तब आवड़ माता की पूजा करती थी। करणी माता तेमड़ा की पूजा करती थी। तेमड़ा माता को द्वितीय हिंगलाज कहते हैं। भादरियाराय माता –
  • भादरियाराय का मंदिर धोलिया गाँव (जैसलमेर) में है। मान्यता के अनुसार आवड माता बहादिया भाटी के कहने पर यहाँ आई जिस कारण इसे भादरियाराय माता कहते हैं। 1885 ई. में बीकानेर व जैसलमेर के मध्य युद्ध हुआ जिसमें माता के चमत्कार के कारण बीकानेर की हार हुई। महारावल गजसिंह ने मंदिर का निर्माण करवाया। घंटीयाली राय का मंदिर –
  • तन्नोट से लौटते समय स्वांगिया माता ने घंटिया राक्षस का वध किया जिस कारण इसे घंटीयाली माता कहा जाने लगा। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाक सेना ने मूर्ति को खंडित किया जिस कारण घंटीयाली माता के मुख से खून निकलने लगा तथा पाक सैनिक मारे गये।
    • स्वांगिया माता।
  • काला डूंगराय माता, जैसलमेर, निर्माण- जवाहरसिंह
  • इसे नभ डुंगराय माता भी कहते हैं।

तनोट माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इनका मन्दिर तनोट (जैसलमेर) में है। इसे सेना की देवी, थार की वैष्णो देवी, रुमाल वाली देवी B.S.F के जवानों की देवी कहते हैं।
    नोट – वैष्णो देवी का मन्दिर जम्मू-कश्मीर में है। राजस्थान की वैष्णो देवी अबूंदा माता (सिरोही) को कहते हैं।
  • गिर्वा क्षेत्र की वैष्णो देवी – नीमजमाता
  • इस देवी की पूजा B. S. F के जवान करते हैं। 1965 के भारत-पाक के युद्ध के समय पाकिस्तानी सेना द्वारा गिराये गये बम इस माता के चमत्कार के कारण नहीं फटे, आज भी बिना फटे बम माता के मन्दिर में रखे हुए हैं। 1965 की भारत की पाक पर विजय के उपलक्ष्य में मन्दिर के सामने दो विजय स्तम्भ बनाये गये।

नोट – विजय स्तम्भ चित्तौड़गढ़ में है, जिसका निर्माण सांरगपुर विजय (1437 ई.) राणा कुम्भा ने करवाया।

  • मनौती मांगकर इस माता के मन्दिर में पेड़ के रुमाल बांधी जाती है। इस मन्दिर का निर्माण वि. स. 888 में तनुराव भाटी ने करवाया।

परमेश्वरी माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इनका मन्दिर कोलायत (बीकानेर) में है।

क्षेमकरी माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इनका मन्दिर बसंतगढ़ दुर्ग सिरोही व भीनमाल, जालौर में है। यह सोलंकी राजपूतों की कुलदेवी हैं। इन माता को खींवल/खीमल माता भी कहते हैं। मन्दिर का निर्माण 625 ई. में राजा वर्मलाट के समय हुआ। माना जाता है कि यहाँ स्थित पहाड़ी पर उन्तमौजा नामक राक्षस रहता था जो ब्राह्मणों को परेशान करता था तब गौतम ऋषि ने अग्नि से क्षेमकरी माता को प्रकट किया जिसने उन्तमौजा राक्षस का वध किया ।

इन्द्रगढ़ माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इसे बीजासण माता भी कहते है। इनका मन्दिर बूंदी में है। यह हाड़ा शासकों की कुल देवी हैं। मेला- बैशाख पूर्णिमा+ नवरात्र को भरता है।

भद्रकाली/ब्रह्माणी माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

इनका मन्दिर अमरपुरा गाँव, पल्लू (हनुमानगढ़) में है। यह सुनारों की कुल देवी हैं। इस मन्दिर का निर्माण गंगासिंह ने करवाया।

मरमर/आद माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

यह झालावंश की कुलदेवी हैं। मंदिर- बड़ीसादड़ी, कानोड़, गोगुन्दा ।

जावर माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

जावर माता का मन्दिर उदयपुर में है जिसका निर्माण 7वीं सदी में हुआ।

ईडाणा माता – RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

  • इसे मेवल की महारानी कहते है।
  • ईडाणा माता का मन्दिर ईडाणा गाँव, उदयपुर में है। यह देवी रावत जाति की कुल देवी हैं। ईडाणा माता के मन्दिर में अग्नि स्नान किया जाता है।

नोट- अग्नि नृत्य कतरियासर, बीकानेर का प्रसिद्ध है।

धौलागढ़ माता –

धौलागढ़ माता का मंदिर बहतूकला गाँव, अलवर में है। धौलागढ माता का मंदिर लक्खी शाह बनजारे ने धौलगिरी पर्वत पर बनवाया। धौलागढ़ देवी गौड़ ब्राह्मणों की कुलदेवी है। वैशाख शुक्ल एकम से पूर्णिमा तक धौलागढ़ माता का मेला भरता है।

राष्ट्रसेनी/राठासण देवी –

राठासण माता के मन्दिर का निर्माण बप्पाराव ने नागदा (उदयपुर) में करवाया। बप्पा रावल के गुरू हारित ऋषि ने राष्ट्रसेनी माता से मेवाड़ का राज्य मांगा था।

नोट:- हारित ऋषि ने एकलिंग जी से भी बप्पा रावल के लिए मेवाड़ का राज्य मांगा था।

धनोप माता –

धनोपमाता का मन्दिर धनोप गाँव, शाहपुरा (भीलवाड़ा) में है। इस मंदिर में बकरे व भैसें की बलि दी जाती थी। जो वर्तमान में सभी मंदिरों में बन्द है। धनोप माता का मेला चैत्र शुक्ल एकम से दशमी तक भरता है। धनोप माता राजा धुंध की कुलदेवी है।

जोगणिया माता –

जोगणिया माता का मंदिर भीलवाड़ा में है। माना जाता है कि यह अन्नपूर्णा माता थी जिसे बंबावदागढ़ (भीलवाड़ा) के शासक देवा हाड़ा ने अपनी पुत्री की शादी में बुलाया जिसमें अन्नपूर्णा माता जोगन का रूप बनाकर गईं जिस कारण इसका नाम जोगणिया माता पड़ा। मनोकामना पूर्ण होने पर माता के मन्दिर में मुर्गे छोड़े जाते हैं।

मनसा माता –

मनसा माता का मंदिर खेतड़ी, झुंझुनूँ में है। मनसा माता की मूर्ति जमीन से निकली थी जो आधी ही है। दादूदयाल के शिष्य सुन्दरदास ने भी यहाँ तपस्या की थी। मनोकामना पूरी होने के कारण इसका नाम मनसा माता पड़ा। नवरात्रों में यहाँ मेला भरता है।

जिलाड़ी माता –

जिलाड़ी माता का मन्दिर बहरोड़ अलवर में है। जिलाड़ी माता गुर्जर जाति की थी। माना जाता है कि एक बार मुस्लिम सुल्तान ने यादवों की संतोरिया गोत्र के हिन्दुओं को मुस्लिम बनाने के लिए जेल में बंद कर दिया लेकिन जेलदार चुलीवाल तिवाड़ी ने यादवों को आजाद कर दिया। इन यादवों को जिलाड़ी गुर्जरी ने जंगल में छिपाया तथा मुस्लिम बनने से रोका।

झाँतला माता/वटयक्षिणी माता –

झाँतला माता का मन्दिर कपासन, चित्तौड़गढ़ में है। माता की मूर्ति महिषामर्दिनी है, जो वट वृक्ष के नीचे स्थापित की गई। माता के यहाँ लकवे का इलाज होता है।

पिप्पलाद माता –

पिप्पलाद माता का मन्दिर ऊनवास, राजसमंद में है। मन्दिर का निर्माण गुहिल शासक अल्लट ने करवाया।

हर्षतमाता-

  • हर्षतमात का मंदिर आभानेरी (दौसा) में है।
  • मंदिर का निर्माण 8वीं शदी में राजा चांद ने करवाया था। यह मंदिर प्रतिहारकालीन है।
  • हर्षतमाता को उल्लास की देवी कहते है।

दिवाक माता-

दिवाक माता का मंदिर जोलर (प्रतापगढ़) में है।

बिरबड़ी माता/ अन्नपूर्णा माता-

  • राजा हम्मीर ने चितौड़गढ़ दुर्ग मंदिर का निर्माण करवाया। माना जाता है राणा हम्मीर को माता ने राज्य प्राप्ति का आशीर्वाद दिया था।
  • बिरवड़ी माता का एक अन्य मंदिर उदयपुर में भी है।

खलकाणी माता-

  • खलकाणी माता का मंदिर लुणियावास (जयपुर) में है।
  • खलकाणी माता को गधों की देवी कहा जाता है।

नामदेवी माता-

  • नामदेवी माता का मंदिर सांगानेर, जयपुर में है।
  • नामदेवी माता छींपों की कुलदेवी है।

सांभरा माता-

  • सांभरा माता का मंदिर पचपदरा (बाड़मेर) में है।
  • इसे लवणता की देवी कहा जाता है।

कंठेसरी माता-

  • कंठेसरी माता का मंदिर उदयपुर में है।
  • इन्हें आदिवासियों की कुलदेवी कहा जाता है।

रूपावे माता-

  • रूपादे माता का मंदिर नाकोड़ा (बाड़मेर) में है।
  • रूपादे को बरसात की देवी भी कहा जाता है।

नोट – मामादेव बरसात के देवता है।

देवी का नामस्थान
अन्नपूर्णा माताउदयपुर
बेदला माताउदयपुर
अम्बा माताउदयपुर
भंवर मातासादड़ी, प्रतापगढ़
खोरड़ी माताकरौली
मनसा माताचूरू
दुध्या खेड़ी माताकोटा, कनवास
फलौदी माताखेराबाद, कोटा
डाढ़ मातालाड़पुरा, कोटा
चैनामाताभजनेरी, बूँदी
रक्तदंतिका/मातासंथूर, बूँदी
भावल माताभावल, नागौर
पांडवराय मातामेड़ता, नागौर
सती बालाजीबिलाड़ा, जोधपुर
मालणमाताजानरा गाँव, जैसलमेर
घाटारानीसावर, अजमेर
आसपुरी माताआसपुरा, डूंगरपुर
RAJASTHAN ME LOK DEVIYAN

प्रश्न 1 – कंठेसरी माता किसकी कुल देवी मानी जाती है?

उत्तर – कंठेसरी माता आदिवासियों की कुल देवी है।

प्रश्न 2 – कंठेसरी माता का मंदिर कहा है?

उत्तर – राजस्थान में।

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