Ranthambhour ka Chauhan Vansh- रणथम्भौर का चौहान वंश

Ranthambhour ka Chauhan Vansh | रणथम्भौर का चौहान वंश

Ranthambhour ka Chauhan Vansh गोविन्दराज ( स्थापना 1194 ई.)- मोहम्मद गोरी के नायब कुतुबुद्दीन ऐबक ने पृथ्वीराज चौहान तृतीय के पुत्र गोविन्दराज को रणथम्भौर राज्य प्रदान किया था। उसने दिल्ली सल्तनत की अधीनता में शासन किया। इस प्रकार Ranthambhour ka Chauhan Vansh का संस्थापक गोविंदराज को माना जाता है ।

वाल्हणदेव-

वाल्हणदेव ने दिल्ली सल्तनत से संपर्क समाप्त कर लिया था। परिणामस्वरूप 1226 ई. ME सुल्तान इल्तुतमिश NE रणथम्भौर PAR आक्रमण KAR अधिकार KAR LIYA ।

वागभट्ट –

वाल्हणदेव के बाद क्रमशः प्रहलाद और वागभट्ट रणथम्भौर के शासक बने। इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत की अव्यवस्था के दौर में वागभट्ट ने रणथम्भौर पर पुनः अधिकार कर लिया था।

SULTAN नासिरुद्दीन महमूद (1246-1266 ई.) K SAMYA बलबन NE रणथम्भौर PAR 3 असफल आक्रमण KIYE ।

हम्मीरदेव चौहान ( 1282-1301 ई.)-

वागभट्ट का उत्तराधिकारी जैत्रसिंह हुआ। जैत्रसिंह ने अपने जीवन काल में ही तीसरे पुत्र हम्मीर को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था। हम्मीरदेव को ‘हठी शासक’ के रूप में भी जाना जाता है। वह रणथम्भौर के चौहानों में सबसे प्रसिद्ध और अन्तिम शासक था।

सिंहासन पर बैठते ही हम्मीर ने दिग्विजय का आयोजन कर सर्वप्रथम भीमरस के राजा अर्जुन को परास्त किया, तत्पश्चात् माण्डलगढ़, उज्जैन और धार पर आक्रमण कर भोज परमार को पराजित किया। यहाँ से वह उत्तर की ओर मुड़ा तथा चित्तौड़, आबू, वर्धनपुर, चंगा, पुष्कर, खण्डीला, चम्पा और कंकरीला होता हुआ वापस रणथम्भौर पहुँचा।

दिग्विजय की समाप्ति के बाद हम्मीर ने कोटीय यज्ञ का आयोजन किया जो अश्वमेध यज्ञ के समान ही था। इस यज्ञ का संपादन हम्मीर के राजपुरोहित विश्वरूप ने किया था।

हम्मीर व अलाउद्दीन खिलजी

अलाउद्दीन ने 1291-92 में दुर्ग की घेराबंदी की जब वह रणथम्भौर दुर्ग को विजय नहीं कर पाया तो जाते समय अलाउद्दीन ने कहा- “मैं ऐसे 10 दुर्गों को मुसलमान के एक BAL KE BRABAR BHI महत्व NAHI DETA ” ।

हम्मीर व अलाउद्दीन खिलजी- अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के कारण

  • साम्राज्य विस्तार
  • जलालुद्दीन का दुर्ग जीत न पाना।
  • हम्मीर महाकाव्य के अनुसार खिलजी सेना ने गुजरात लौटते समय धन के बँटवारे हेतु विवाद हुआ। उस समय मंगोल नेता मुहम्मद शाह भागकर हम्मीर की शरण आ गया।
  • हम्मीर हठ ME आक्रमण KA KARAN मोहम्मद शाह व चिमना का PREM प्रसंग BATAYA ।

हिन्दुवाट घाटी युद्ध

  • हम्मीर सेनापति धर्मसिंह, भीमसिंह व अलाउद्दीन खिलजी सेनापती उलुग खाँ, नुसरत खाँ के मध्य बनास नदी किनारे हिन्दुवाट घाटी युद्ध हुआ।
  • जिसमें हम्मीर विजय हुआ, हम्मीर ने शाही सेना महिलाओं से शहर में मट्ठा बिकवाया।
  • उलुग खाँ, नुसरत खाँ ने झाइन दुर्ग जीत लिया व रणथम्भौर दुर्ग की घेराबन्दी के समय नुसरत खाँ मारा गया। अलाउद्दीन स्वयं इस वक्त यहाँ आया व इनके साथ इतिहासकार अमीर खुसरो भी आया।
  • AMEER खुसरो KE अनुसार दुर्ग ME SONE KE EK DANE K BADLE अनाज KA EK दाना भी नसीब NAHI THA ।

रणथम्भौर/ राजस्थान का प्रथम साका 11 जुलाई, 1301

  • रणमल व रतिपाल ने हम्मीर से गद्दारी की।
  • हम्मीर के नेतृत्व में केसरिया हुआ व हम्मीर की पत्नी रंगदेवी व पुत्री पद्ममला(देवलदे/नेतनदे) के नेतृत्व में जल जौहर हुआ। राजस्थान का प्रथम साका पूर्ण हुआ।
  • DURG VIJAY K BAD अमीर खुसरो NE कहा- ‘AAJ कुफ्र (धर्म विरोधी) KA GAD इस्लाम KA GHAR HO GYA ।”
  • जसवन्त सिंह (मारवाड़) KI MOUT PAR औरंगजेब NE कहा THA KI- AAJ कुफ्र KA DARWAJA TUT GYA ।”
  • रणथम्भौर DURG KO अलाउद्दीन खिलजी NE उलुग KHAN KO सौंप DIYA ।
सेनापतीशासक
रणमल, रतिपालहम्मीर
आल्हा उदलपरमर्दी देव चन्देल
गौरा, बादलरतनसिंह
जयमल, फत्ताउदयसिंह
RABTHMBHOUR DURG

हम्मीर के इस महान त्याग और स्वाभिमान का ओजस्वी वर्णन नयनचन्द्र सूरी (हम्मीर महाकाव्य), व्यास भाँउड (हम्मीरायण), जोधराज (हम्मीररासो) और चन्द्रशेखर (हम्मीरहठ) ने अपनी रचनाओं में प्रमुखता से किया है।

हम्मीर ने अपने पिता जैत्रसिंह के 32 वर्षो के सफल शासन की स्मृति में रणथभौर दुर्ग में 32 खम्भों की छतरी का निर्माण करवाया था। इसे न्याय की छतरी भी कहते हैं।

जालौर के चौहान

प्रसिद्ध कवि माथ (शिशुपाल वथ). और खगोलविद ब्रह्मगुप्त (ब्रहासिद्धान्त) की जन्मभूमि जालौर महर्षि जावालि की तपोभूमि होने के कारण प्राचीन काल में जाबालिपुर नाम से जाना जाता था। जाल वृक्ष की अधिकता होने के कारण जावालिपुर को जालौर नाम से जाना गया। जालौर के किले को सोनगढ़ कहा जाता है इस कारण जालौर के चौहान ‘सोनगरा चौहान’ कहलाते हैं।

कीर्तिपाल-

जालौर K चौहान VANS KI स्थापना कीर्तिपाल NE 1181 ई. में की। वह नाडौल के अल्हण चौहान का पुत्र था। नैणसी ने उसे ‘कीतू एक महान राजपूत’ कहा है। कीतू ने परमारों से जालौर और सिवाणा को जीता था।

लाखा ( 1451-1483 ई. ) –

  • ESNE सिरोही KE खोये HUYE क्षेत्रों KO पुनः प्राप्त KIYA ।

जगमाल (1483-1523 ई. ) –

  • मेवाड़ KE RANA रायमल KI पुत्री आनन्दाबाई JO JAGMAL की पत्नी थी, K SAT मनमुटाव K परिणामतः ESNE रायमल K पुत्र पृथ्वीराज KO धोखे SE MARWA DIYA था।

अखैराज देवड़ा-

  • YHA ‘उड़ना अखैराज’ K NAAM से BHI JANA JATA HAI, इसने खानवा K युद्ध ME RANA सांगा KI OR SE भाग LIYA था।

सुरताण देवड़ा-

  • सुरताण देवड़ा NE LAMBE संघर्ष K BAD 1575 ई. में मुगल बादशाह अकबर KI अधीनता स्वीकार KAR ली।

बेरिसाल-

  • ESNE कालिन्दी NAMAK स्थान PAR मारवाड़ K अजीतसिंह KO शरण DI थी ।
  • सिरोही KE शासक शिवसिंह NE 11 सितम्बर, 1823 ई. को अंग्रेजों से सन्धि कर अधीनता स्वीकार कर ली थी। सिरोही राज्य का अन्तिम शासक अभयसिंह था।

हाड़ौती के चौहान

  1. बूँदी का हाड़ा चौहान वंश-

देवासिंह हाड़ा- बूँदी के हाड़ा वंश का संस्थापक देवासिंह (राव देवा) प्रारम्भ में नवाद के अधीन बम्बावदे का ठिकानेदार था। उसने बघाटी के अधिपति जैता मीणा की पराजित कर 1241 ई. में बूँदी में अपनी राजधानी स्थापित की।

समरसिंह – Ranthambhour ka Chauhan Vansh

समरसिंह के पुत्र जैत्रसिंह ने 1264 ई. में कौटिया भील को पराजित कर कोटा पर अधिकार कर लिया था। कोटा के किले का निर्माण जैत्रसिंह ने करवाया था।

बरसिंह-

जैत्रसिंह के पुत्र राव वरसिंह ने 1354 ई. में बूँदी के तारागढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया था।

हम्मीर-

राव हम्मीर के समय मेवाड़ के राणा लाखा ने बूँदी को जीतने की कोशिश की, जिसमें असफल रहने पर राणा ने मिट्टी का नकली दुर्ग बनवाकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की थी

RAV बैरीसाल-

  • यह MALWA K सुल्तान महमूद खिलजी प्रथम DWARA 1458 ई. में बूँदी पर आक्रमण के समय मारा गया था।

रावसुर्जन (1554-1585 ई.)-

  • अकबर द्वारा 1569 ई. में रणथम्भौर पर आक्रमण के समय मेवाड़ की अधीनता में रणथम्भौर पर राव सुर्जन का अधिकार था। राव सुर्जन ने थोड़े विरोध के बाद सन्धि कर मुगल अधीनता स्वीकार कर ली। अकबर ने उसे ‘रावराजा’ की उपाधि और पाँच हजार का मनसब प्रदान किया। राव सुर्जन ने द्वारकापुरी में रणछोड़जी का मन्दिर बनवाया था। राव सुर्जन के दरबारी कवि चन्द्रशेखर NE ‘सुर्जन चरित्र’ OR ‘हम्मीर हठ’ NAMAK ग्रन्थों KI रचना KI ।

रावरतन (1607-1631 ई. ) –

  • राव RATAN KO बादशाह जहाँगीर NE ‘सरबुलन्दराय’ OR ‘RAMRAJ’ KI उपाधियाँ प्रदान KI थी।

RAV शत्रुशाल (1631-1658 ई. ) –

यह सामूगढ़ (1658 ई.) K युद्ध ME दारा KI OR SE लड़ता हुआ MARA GYA था।

राव अनिरुद्ध (1681-1695 ई.)-

  • RAV अनिरुद्ध K BHAI राव DEVA NE 1683 ई. में बूँदी की प्रसिद्ध चौरासी खम्भों की छतरी का निर्माण करवाया था। यह राव शत्रुशाल की छतरी है।

MAHARAV बुद्धसिंह ( 1695-1730 ई.)-

  • मुगल बादशाह बहादुरशाह प्रथम NE ESE ‘महारावराणा’ KI उपाधि प्रदान KI YHI ।
  • इनके समय कोटा के भीमसिंह ने कुछ समय के लिए बूँदी पर अधिकार कर लिया था। इसी समय बादशाह फर्रुखसियर ने बूँदी का नाम फर्रुखाबाद
    किया था।

महाराव बिष्णुसिंह

  • बिष्णुसिंह ने 10 फरवरी, 1818 को अंग्रेजों से सन्धि कर ली थी।

MHARAV रामसिंह (1831-1889 ई.)-

  • RAMSINGH K शासन काल ME ही कवि सूर्यमल्ल मिश्रण NE ‘वंशभास्कर’ KI रचना KI थी ।
  • बूँदी का अन्तिम शासक महाराव बहादुरसिंह था।

कोटा का हाड़ा वंश-

माधोसिंह (1631-1648 ई. ) –

  • माधोसिंह बूँदी के रावरतन का पुत्र था, जिसे रतनसिंह ने 1624 ई. ME KOTA KI जागीर प्रदान KI थी ।
  • 1631 ई. में रावरतन की मृत्यु के बाद बादशाह शाहजहाँ ने माधोसिंह को पृथक् रूप से कोटा का शासक स्वीकार कर लिया।

मकुन्दसिंह (1648-1658 ई.)-

  • यह 1658 ई. में धरमत के युद्ध में शाही सेना की और से औरंगजेब के विरुद्ध लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ था।

किशोरसिंह (1684-1696 ई.)-

  • किशोरसिंह NE KOTA K किशोर SAGAR तालाब KA NIRMAN KARWAYA THA ।

रामसिंह ( 1696-1707 ई. ) –

औरंगजेब के पुत्रों के मध्य हुए उत्तराधिकारी संघर्ष में रामसिंह आजम की ओर से लड़ते हुए जाजऊ के युद्ध में मारा गया था।

भीमसिंह (1707-1720 ई. ) –

  • भीमसिंह ने खींचियों से गागरौण छीन लिया तथा कुछ समय के लिए बूँदी पर भी अधिकार कर लिया था।
  • भीमसिंह NE कृष्ण भक्ति K प्रभाव ME APNA NAAM ‘कृष्णदास’ तथा KOTA KA NAAM ‘नन्दग्राम’ KAR DIYA था।
  • बारां में साँवरियाजी के मन्दिर का निर्माण महाराव भीमसिंह ने ही करवाया था।

शत्रुशाल (1756-1764 ई.)-

  • इनके समय कोटा के फौजदार झाला जालिमसिंह (1758-1824 ई.) ने 1761 ई. ME भटवाड़ा K युद्ध ME JAIPUR नरेश माधोसिंह KI SENA KO पराजित KIYA था।
  • भटवाड़ा की विजय के बाद कोटा राज्य के प्रशासन में झाला जालिमसिंह का प्रभाव बढ़ता गया और अन्तत: वह ही कोटा राज्य का वास्तविक प्रशासक बन गया।

उम्मेदसिंह (1770-1819 ई.)- Ranthambhour ka Chauhan Vansh

  • 26 DECEMBER, 1817 KO अंग्रेजों SE सन्धि KAR अधीनता स्वीकार KAR LI ।

किशोरसिंह द्वितीय (1819-1827 ई.) –

  • 1821 ई. ME माँगरोल K युद्ध ME फौजदार झाला जालिमसिंह NE कर्नल टॉड KE नेतृत्व WALI अंग्रेज SENA KI सहायता SE किशोरसिंह द्वितीय KO पराजित KIYA था।
  • KOTA KE अन्तिम शासक महाराव भीमसिंह द्वितीय THE ।

झालावाड़ का हाड़ा वंश-

  • कोटा राज्य द्वारा 1818 ई. की सन्धि के बाद झाला जालिम सिंह ही कोटा का वास्तविक प्रशासक बन गया था। उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र माधोसिंह 1824 ई. में कोटा राज्य का फौजदार नियुक्त हुआ। 1833 ई. ME माधोसिंह KA पुत्र MADANSINGH झाला KOTA राज्य KA फौजदार BANA ।

मदनसिंह झाला –

  • KOTA महाराव रामसिंह द्वितीय OR मदनसिंह K मध्य मतभेदों K KARAN महाराव NE KOTA राज्य KA 1 – तिहाई BHAG 1837 ई. ME मदनसिंह KO DE DIYA, JISKE परिणामस्वरूप झालावाड़ RAJYA KI स्थापना हुई।

1838 ई. में अंग्रेज सरकार ने भी झालावाड़ राज्य को मान्यता दे दी इस प्रकार झालावाड़ राजस्थान की नवीनतम रियासत थी।

Ranthambhour ka Chauhan Vansh ?

प्रश्न – Ranthambhour ka Chauhan Vansh का संस्थापक किसे माना गया है ?

उत्तर – पृथ्वीराज चौहान तृतीय के पुत्र गोविन्दराज को

प्रश्न – राजस्थान का प्रथम शाका कब हुआ ?

उत्तर – रणथम्भौर/राजस्थान का प्रथम साका 11 जुलाई, 1301 को हुआ ।

प्रश्न – जालौर ka Chauhan वंश का संस्थापक किसे माना गया है ?

उत्तर – कीर्तिपाल को

प्रश्न – सामूगढ़ का युद्ध कब हुआ ?

उत्तर – सामूगढ़ का युद्ध (1658 ई.) को हुआ।

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