RAJASTHAN ME REETI RIWAJ OR PRTHAYE – राजस्थान में अगर बात करे रीति रिवाज और प्रथाओं की तो यहा भिन्न भिन्न समाज में अलग – अलग तरह के रीति रिवाज और प्रथाएं
संथारा /सल्लेखना – यह जैन धर्म में होता है। इसमें अन्न-जल छोड़कर मोक्ष प्राप्ति के लिए शरीर त्याग दिया जाता है। चन्द्रगुप्त मौर्य ने श्रवणबेलगोला नामक जगह पर संथारा किया था।
समाधि प्रथा- साधु महात्माओं द्वारा पानी में डूबकर या भूमि में खड्डा खोदकर जीवित समाधि ली जाती है। इस प्रथा को सर्वप्रथम बंद 1844 ई. में जयपुर के पोलिटिकल ऐजेन्ट मेजर लुड़लो ने रामसिंह द्वितीय के समय किया।
बाल विवाह प्रथा – नाबालिक लड़के लड़की की शादी बाल विवाह कहलाता है। बाल-विवाह सर्वाधिक अक्षय तृतीया (वैशाख शुक्ल तृतीया) पर होता है।
विधवा पुनर्विवाह – विधवा महिला को दोबारा शादी करने का अधिकार नहीं था जिसे ईश्वरचन्द्र विद्यासागर व लार्ड डलहौजी ने 27 जुलाई, 1856 ई. में अधिनियम बनाकर धारा 5 के तहत मान्यता दे दी जिसे लागू लार्ड केनिंग ने किया।
दहेज प्रथा – वधू पक्ष द्वारा वर पक्ष को दी जाने वाली राशि व उपहार दहेज कहलाता है। पहले राजा-महाराजा अपनी राजकुमारियों की शादी में दासियाँ दहेज में देते थे। भारत सरकार ने 1961 में अधिनियम बनाकर इसे बन्द किया।
दापा प्रथा- यह दहेज का उल्टा है। इसमें वर पक्ष वधू पक्ष को राशि देता है। इसे वधू मूल्य भी कहते है।
डाकन प्रथा/चुड़ैल प्रथा – यह आदिवासियों में सर्वाधिक होती है। इस प्रथा में किसी महिला को डाकन कहकर गाँव में जला दिया जाता है। 1853 ई. में मेवाड़ भील कोर के जे. सी. ब्रुक ने इस पर रोक लगाई।
कन्या वध – बच्ची के जन्म पर उसका गला घोंटकर, अफीम देकर, में डूबोकर मार दिया जाता था। इस प्रथा का मुख्य कारण टीक व त्याग प्रथा थी। 1833 ई. में कोटा ने कन्या वध को सर्वप्रथम बंद किया।